नई दिल्ली. भारतीय शेयर बाजारों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की निकासी का सिलसिला जुलाई में भी जारी है. हालांकि, अब एफपीआई की बिकवाली की रफ्तार कुछ धीमी पड़ी है. डॉलर में मजबूती और अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बीच एफपीआई ने जुलाई में 4,000 करोड़ रुपये से अधिक के शेयर बेचे हैं.
ट्रेडस्मार्ट के चेयरमैन विजय सिंघानिया ने कहा, ‘‘कच्चे तेल के दाम नीचे आने के बीच मुद्रास्फीति घटने की उम्मीद के चलते बाजार धारणा में सुधार हुआ है. रिजर्व बैंक के रुपये की गिरावट को थामने के प्रयास से भी धारणा बेहतर हुई है.’’
नौ माह से एफपीआई की लगातार बिकवाली
मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव का हालांकि मानना है कि एफपीआई की शुद्ध निकासी कम रहने का मतलब रुख में कोई बड़ा बदलाव नहीं है. उन्होंने कहा कि जिन कारणों से एफपीआई निकासी कर रहे थे उनमें कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं आया है. पिछले लगातार नौ माह से एफपीआई बिकवाल बने हुए हैं.
मुद्रास्फीति की चिंका बरकरार
यस सिक्योरिटीज के प्रमुख विश्लेषक-अंतरराष्ट्रीय शेयर हितेश जैन ने कहा कि मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर से नीचे आने का स्पष्ट संकेत मिलने के बाद एफपीआई का प्रवाह फिर शुरू होगा. उन्होंने कहा कि यदि ऊंची मुद्रास्फीति को लेकर चीजें दुरुस्त होती हैं, तो ऐसा संभव है कि केंद्रीय बैंक ब्याज दरों के मोर्चे पर नरमी बरतें. इससे एक बार फिर जोखिम वाली परिसंपत्तियों में निवेश बढ़ेगा.
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एक से आठ जुलाई के दौरान एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजारों से शुद्ध रूप से 4,096 करोड़ रुपये की निकासी की है. हालांकि, पिछले कई सप्ताह में छह जुलाई को पहली बार ऐसा मौका आया जबकि एफपीआई द्वारा 2,100 करोड़ रुपये की खरीदारी की गई.
एफपीआई अब तक 2.21 लाख करोड़ रुपये निकाल चुके
जून में एफपीआई ने 50,203 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे. यह मार्च, 2020 के बाद सबसे ऊंचा स्तर है. उस समय एफपीआई की निकासी 61,973 करोड़ रुपये रही थी. इस साल एफपीआई भारतीय शेयरों से 2.21 लाख करोड़ रुपये निकाल चुके हैं. इससे पहले 2008 के पूरे साल में उन्होंने 52,987 करोड़ रुपये की निकासी की थी. एफपीआई की निकासी की वजह से रुपया भी कमजोर हुआ है. हाल में रुपया 79 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया.