फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों बहुमत से पीछे हुए, अब क्या होगा?

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इमेज कैप्शन,बहुमत के लिए मैक्रों को 289 सीटों की ज़रूरत थी

इमैनुएल मैक्रों के दोबारा राष्ट्रपति बने दो महीने से भी कम वक़्त हुआ है और वह नेशनल असेंबली में नियंत्रण खो चुके हैं. ऐसा एक वामपंथी और एक अति-दक्षिणपंथी गठबंधन को मिली बड़ी जीत के कारण हुआ है. मैक्रों को दूसरे चरण के चुनावी नतीजों में रविवार को गहरा झटका लगा है.

मैक्रों ने मतदाताओं से ठोस बहुमत की अपील की थी लेकिन सेन्ट्रिस्ट गठबंधन ने चुनाव में दर्जनों सीटे गंवा दीं जिसकी वजह से फ़्रांस की राजनीति कई हिस्सों में बँट गई है.

हाल ही में मैक्रों की ओर से प्रधानमंत्री नियुक्त की गईं एलिजाबेथ बोर्न ने कहा कि स्थिति अभूतपूर्व है.

राष्ट्रपति आवास से एलिज़ाबेथ के अपने घर लौटते ही पेरिस की राजनीति में तूफ़ान आ गया. उन्होंने कहा कि आधुनिक फ़्रांस ने कभी भी इस तरह की नेशनल असेंबली नहीं देखी.

उन्होंने कहा, “ये हालात हमारे देश के लिए जोख़िम भरे हैं. इससे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर समस्या पैदा होगी. हम कल साधारण बहुमत बनाने की कोशिश करेंगे.”

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हालाँकि, इस बहुमत की संभावना भी न के बराबर दिखती है क्योंकि संसद में दो अन्य बड़े समूह दूर-दूर तक गठबंधन में रुचि लेते नहीं दिख रहे हैं. अर्थव्यवस्था मंत्री ब्रूनो ली मेयर का कहना है कि बहुमत के लिए काफ़ी सोच-विचार करने की ज़रूरत है.

वहीं, धुर-वामपंथी नेता जीन-लुस मेलेनचोन मुख्यधारा की सभी लेफ्ट पार्टियों को कम्युनिस्ट्स और ग्रीन्स के साथ एक गठबंधन में लाने की अपनी सफलता पर ख़ुश हैं. इस गठबंधन का नाम न्यूप्स दिया गया है.

उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि राष्ट्रपति की पार्टी पूरी तरह हार चुकी है और अब हर संभावना उनके हाथों में है.

इस बीच, मरीन ले पेन और उनकी धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रीय रैली पार्टी भी आठ सीटों से 89 पर पहुंचने के बाद ख़ुशी के मूड में थीं. उन्होंने कहा, “इमैनुएल मैक्रों का एडवेंचर ख़त्म हो गया और अब उनकी सरकार को अल्पमत में भेज दिया गया है.”

अगर मौजूदा प्रधानमंत्री अब बहुमत पाने के लिए दक्षिणपंथी रिपब्लिकन की ओर रुख़ करेंगे तो इससे अच्छा संदेश नहीं जाएगा. पार्टी चेयरमैन क्रिस्टियन जैकब ने कहा कि ये परिणाम एक राष्ट्रपति के लिए ‘चुभने वाली विफलता’ जैसी है, जो अब फ्रांस के अतिवादियों को ताक़तवर बनाने का नतीजा भुगत रहे हैं.

संवैधानिक क़ानून के प्रोफ़ेसर डोमिनिक रुसो मैक्रों के लिए कहते हैं, “अब वह मज़बूत नहीं रहे.” उन्होंने समाचार एजेंसी एएफ़पी से कहा, “मैक्रों के लिए ये पाँच साल सिर्फ़ मान मनौव्वल और संसदीय स्तर पर समझौते करने में ही बीत जाएंगे.”

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जीत के बाद वामपंथी नेता मेलेनचोन

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इमेज कैप्शन,जीत के बाद वामपंथी नेता मेलेनचोन अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए

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अप्रैल महीने में माहौल कुछ और था, जब मैक्रों ने मरीन ली पेन को हराया और दूसरी बार राष्ट्रपति बने. उनके पास 300 से अधिक सीटें थीं लेकिन बहुमत बनाए रखने के लिए उन्हें 289 सीटों की ज़रूरत थी. हालाँकि, अब उनके पास केवल 245 सीटें ही हैं.

आधे से अधिक मतदाताओं ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया और वोटिंग प्रतिशत केवल 46.23 फ़ीसदी ही रहा. वोटरों ने धुर-दक्षिणपंथी नेशनल रैली पार्टी और लेफ्ट पार्टियों के गठबंधन न्यूप्स को समर्थन दिया है.

जिन मंत्रियों ने अपनी सीट गंवाई उनमें स्वास्थ्य मंत्री ब्रिजिट बोरगोईगन भी शामिल हैं. वो अपने धुर-दक्षिणपंथी प्रतिद्वंद्वी से 56 वोटों से हार गईं. इसके अलावा ग्रीन ट्रांज़िशन मंत्री अमेले डे मोंतचालिन को भी हार का सामना करना पड़ा. हालाँकि, यूरोप मंत्री क्लिमेंट बीन ने पहले दौर में पिछड़ने के बावजूद अपनी सीट बचा ली.

क़रीबियों को झटका

इमैनुएल मैक्रों के क़रीबी सहयोगियों में से एक और नेशनल असेंबली के अध्यक्ष रिचर्ड फेरांद भी न्यूप्स गठबंधन के प्रतिद्वंद्वी से हार गए. इसके अलावा ग्वाडुहलूप आइलैंड में सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट जस्टिन बेनिन को भी हार का सामना करना पड़ा है.

जीत के बाद वामपंथी नेता मेलेनचोन ने कहा कि ये नतीजे ‘मैक्रों’ के लिए नैतिक हार है. मेलेनचोन ने कहा कि अब वो इस लड़ाई में अपनी भूमिका बदल रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मेरी प्रतिबद्धता किसी भी पद से ऊपर है और ये आख़िरी दम तक रहेगी.’

पाँच साल पहले इमैनुएल मैक्रों ने आशा की लहर पैदा कर दी थी और उन्होंने नए चेहरों को चुनाव लड़ाया था. इस बार ये नए चेहरे न्यूप्स गठबंधन और नेशनल रैली पार्टी की ओर से दिए गए.

इन परिणामों के कारण अब संसद में मैक्रों की पार्टी को प्रतिद्वंद्वियों के साथ गठबंधन बनाने पर विचार करना होगा. अब मैक्रों के लिए कोई भी नया क़ानून पास करवाना भी मुश्किल हो सकता है.

मैक्रों

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मैक्रों के किन सुधारों पर ख़तरा?

मैक्रों ने देश में बढ़ती महंगाई को काबू में करने का वादा किया था लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वी इस मुद्दे पर एकदम अलग राय रखते हैं. मैक्रों की ओर से लाए बड़े प्रस्तावों में लाभ योजना में सुधार, टैक्स में कटौती और रिटायरमेंट की उम्र को 62 से बढ़ाकर 65 साल करना है.

उनकी पेंशन की उम्र से जुड़े सुधार के प्रस्ताव का रास्ता भी बहुत कठिन है, हालांकि इसपर उन्हें रिपब्लिकन का समर्थन मिल सकता है.

इसके बाद कार्बन न्यूट्र्रैलिटी और पूर्ण रोज़गार के लिए प्रस्ताव भी है. उन्होंने हाल ही में शासन का एक ‘नया तरीका’ भी सुझाया था, जिसमें उन्होंने नेशनल काउंसिल फॉर रिफाउंडेशन के गठन की मांग की थी. फ़्रांस को अधिक लोकतांत्रिक बनाने के मक़सद से इसमें स्थानीय लोगों को शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया था.