सैलून में दोस्ती, नहीं देख पाया दोस्त को भूखा-प्यासा…व्रत को बनाया रोजा

देश भर में हिन्दुओं के नवरात्र व मुस्लिम समुदाय के रमजान का महीना चल रहा है। हिन्दू-मुस्लिम के बीच तनाव की खबरें अक्सर चर्चा में आती रही हैं।
मौजूदा हालात पर कबीर जी की ये पंक्तियां खरी उतरती हैं :

आए एक ही देश से, उतरे एक ही घाट
हवा लगी जू संसार की, हो गए बारह बाट।

नवरात्र व रमजान एक साथ चल रहे हैं। इसी बीच हम आपको सैलून में काम करने वाले दोस्तों की एक सकारात्मक सोच से मुखातिब करने जा रहे हैं। हालांकि दोस्ती लड़कपन की है, लेकिन एक-दूसरे के ‘धर्म’ का सम्मान करना अब सीखा है।

दरअसल, सचिन (21) नवरात्र का उपवास तो रखता ही है, लेकिन इसे रमजान के महीने में रखे जाने वाले रोजे की तरह निभाता है। दोस्त फरहान (23) की तरह ही दिन भर पानी ग्रहण नहीं करता है। एक दोस्त दिन भर साथ रहकर भूखा-प्यासा रहकर सैलून में काम करता रहे, ये बात सचिन को ठीक नहीं लगी तो नवरात्र के उपवास को रोजे में बदल लिया।

बता दें कि दोनों जिगरी दोस्त शहर के नामी ब्यूटी सैलून ‘छाया मेकओवर’ में कार्यरत हैं। मेकअप आर्टिस्ट छाया चौधरी से बातचीत के दौरान ही इस बात का खुलासा हुआ कि हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल तो उनके सामने भी है। फरहान के साथ सचिन ने रोजा रखने का फैसला लिया। शाम को अन्य स्टाफ के साथ इफ्तारी भी करते हैं। फिर दोनों शाम का खाना मिलजुल कर बनाते हैं।  इतना ही नहीं, दोनों दिन-भर एक दूसरे का सहयोग करते हैं।

ब्यूटी आर्टिस्ट छाया ने बताया कि उनके सैलून के स्टाफ में दोनों धर्म के युवक-युवतियां कार्यरत हैं। चूंकि रोजे व व्रत एक साथ चल रहे हैं, लेकिन सभी कार्य में अपना पूरा सहयोग दे रहे हैं। आपसी भाईचारे के साथ दिन कब निकल जाता है, पता ही नहीं चलता। उन्होंने बताया कि अक्सर सभी शाम को रोजा इफ्तारी के वक्त ही फलाहार लेते हैं।

आपसी भाईचारे के साथ रोजा इफ्तारी

मुस्लिम युवतियां हैं, जो रोजा रख रही है, लेकिन उनकी भावना हिन्दू पर्व नवरात्रि के लिए भी कम नहीं है। अक्सर उनके साथ ही भजन संध्या में हिस्सा लेती हैं, मां की आरती करती हैं।

कुल मिलाकर आपसी सदभाव का ये जीता जागता उदाहरण दिल को सुकून देने वाला है। नई पीढ़ी इस बात को बखूबी समझ रही है कि भेदभाव से किसी की भी तरक्की नहीं होगी। एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करेंगे, तो निश्चित रूप से सभी का भला होगा।

हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द को बयां करती हैं ये पंक्तियां यहां एकदम सटीक बैठती हैं :-

बेहद हसीन वो शाम हो जाए
जब… हिन्दू में हो ख़ुदा
और…मुस्लिम में  राम नाम हो जाए।
कितना अनोखा पैगाम हो जाए
जब हर घर में गीता का कलाम हो जाए।