आरंभ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बाण शान या कि जान का हो दान आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
किसी ने ये फ़िल्म देखी हो या न हो लेकिन ये गीत, ये आवाज़ सभी के ज़हन में है. गीत है फ़िल्म ‘गुलाल’ का और आवाज़ है पीयूष मिश्रा की. स्कूल में जब भी कोई अतिथि आते थे, उनके लिए एक वाक्यांश का प्रयोग किया जाता था, ‘इनका परिचय देना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है!’ पीयूष मिश्रा के लिए ये वाक्यांश सटीक नहीं बैठता, ये वाक्यांश उनके लिए ही बनाया गया है!
हरफ़नमौला हैं पीयूष मिश्रा. ये नाम ज़हन में आते ही यही लगता है कि शायद ही ऐसा कुछ हो जो ये बंदा न कर सके! इमपॉसिबल इज़ आई एम पॉसिबल को ज़्यादा ही सीरियसली ले लिया शायद इन्होंने! प्रकृति ने हर गुण में 2 ग्राम ज़्यादा मिलाकर पीयूष मिश्रा की प्रतिभा में जड़ दिए और उन्होने भी एक-एक फ़न पर अपना नाम लिख छोड़ा. चाहे वो लेखन हो, गायन हो या अभिनय हो.
मकबूल, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, गुलाल, तमाशा, मात्रुभूमि जैसी फ़िल्मों में नज़र आ चुके हैं. पीयूष मिश्रा ने कई फ़िल्मों के लिए गाने भी लिखे हैं. ‘ब्लैक फ़्राइडे’ का अरे रुक जा रे बंदे मिश्रा के ही क़लम से निकला है. पीयूष मिश्रा का एक बैंड भी है ‘बल्लिमारां’, शेर-ओ-शायरी का शौक़ रखने वाले बल्लिमारां से परिचित होंगे. दिल्ली-6 के बल्लीमारां में ही है मिर्ज़ा ग़ालिब की हवेली. पीयूष मिश्रा के इन पहलुओं से तो बहुत लोग वाकिफ़ हैं लेकिन मिश्रा की शख़्सियत के कुछ ऐसे भी पहलु हैं जिससे कम ही लोग जानते होंगे. आज चर्चा करेंगे उन्हीं कुछ सुने-अनसुने पहलुओं पर.
शराब की लत थी
ग्वालियर, मध्य प्रदेश के पीयूष मिश्रा 1996 में नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (National School of Drama, NSD) से पासआउट हुए. इसके बाद उन्होंन दिल्ली में कुछ साल थियेटर किया और फिर 2003 में मुंबई चले गए. The Times of India से बात-चीत के दौरान मिश्रा ने कहा,
‘दिल्ली में 20 साल मैंने सिर्फ़ तीन काम किए- शराब, थियेटर और महिलाएं. मुझे क्लब थियेटर पसंद नहीं था और मैं 24 घंटे थियेटर करता था, मैं बतौर शराबी मशहूर था.’
पीयूष मिश्रा ने कई मौक़ों पर अपने शराब की लत की चर्चा की है. उन्होंने ये स्वीकारा है कि उनकी वजह से उनके अपनों को बेहद तकलीफ़ पहुंची है. The Indian Express से बात-चीत में मिश्रा ने कहा था,
‘मैंने अपनी पत्नी को दुनियाभर की परेशानी दी लेकिन वो मेरे प्रति डेडिकेटेड थीं. मुझे शराब से जुड़ी समस्याएं थीं और अन्य परेशानियां भी. यूं समझ लीजिए की उसने बहुत कुछ झेला. मेरी पत्नी प्रिया ने बुरे वक़्त में मेरा बहुत साथ दिया. लेकिन उस शराब के दौर ने सबकुछ बर्बाद कर दिया, मैं कभी कभी सोचता हूं मैं उस दौर से ज़िन्दा कैसे बच निकला.’
पीयूष मिश्रा ने बताया कि उन्हें अपनी ज़िन्दगी को लेकर डर था, वे बहुत असहाय महसूस करते थे. मिश्रा के शब्दों में, ‘मैंने 80 के दशक में पहली बार बीयर पी… बीमारी को अल्कोहोलिज़्म कहते हैं, मेडिकल नाम है A303. ये बहुत बुरी बीमारी है. मैं दिन में कभी नहीं पीता था लेकिन रात सिर्फ़ शराब ही चलती. ये एक सामाजिक बीमारी है जो न सिर्फ़ आप बल्कि आपके आस-पास के लोग, बीवी और बच्चे सभी झेलते हैं. मैं ख़ुद को दोषी समझता था लेकिन रुक नहीं पाता था.’
पीयूष मिश्रा अपनी बीमारी को लेकर कई डॉक्टर्स से मिले लेकिन कोई इलाज नहीं मिल रहा था. 2005 में उन्हें कुछ लोगों ने एक संस्था के बारे में बताया. संस्था से जुड़कर धीरे-धीरे मिश्रा की शराब की लत छूटी.
‘अगर मैं मदद नहीं लेता तो 2009-10 तक मेरी मौत हो चुकी होती’, पीयूष मिश्रा ने कहा.
एक समय था जब ख़ुद को नीच मानते थे पीयूष मिश्रा
पीयूष मिश्रा का कहना है कि शराब ने उनके अंदर की अच्छाई की हत्या कर दी थी. लड़कियां और महिलाएं उन्हें फ़ोन करके पूछती, ‘सर कल रात आपको क्या हुआ था?’ लेकिन उन्हें बीती रात उन्होंने क्या किया, क्या कहा कुछ भी याद नहीं रहता था. उस समय उन्हें एहसास हुआ कि उनके अंदर बहुत गुस्सा, जलन और सेक्स करने की तीव्र इच्छा मौजूद है. उनकी पत्नी प्रिया 2006 में उन्हें एक संस्था के पास ले गई और तब उन्हें पता चला कि वो आध्यात्मिक तौर पर बेहद कमज़ोर हैं.
पीयूष मिश्रा ने कहा, ‘शराब तो बस एक लक्षण था. असल समस्या थी कि मैं गंदा, नीच और नैतिक तौर पर भ्रष्ट इंसान था. मैं सिर्फ़ अपने बारे में सोचता था और अपनी पत्नी या अपने बड़े बेटे की परवाह नहीं करता था. मैंने लिखना शुरु किया और जब मैंने अपना लिखा हुआ पढ़ा तो मुझे पता चला कि पिछले 20 सालों में मैंने 99 प्रतिशत केस में सिर्फ़ ग़लत किया है. हर मामले में ग़लती मेरी थी. मैंने शराब की लत छोड़ चुके कुछ लोगों से बात की और मुझे मदद मिली.’
पीयूष मिश्रा ने न सिर्फ़ अपनी समस्याओं को समझा बल्कि उनको सुलझाने के लिए वो हर इंसान से मिलकर माफ़ी भी मांगते रहे. धीरे-धीरे उनकी हालत में सुधार होता गया.
पत्नी को घर से भगाकर की थी शादी
पायूष मिश्रा ने अपनी पत्नी को उनके चेन्नई स्थित घर से भगाया था और शादी की थी. पीयूष मिश्रा ने बताया कि सिर्फ़ उनसे शादी करने के लिए उन्होंने अपना सबकुछ छोड़ दिया था और दिल्ली आकर रहने लगी थी. उन्होंने ये भी स्वीकारा की उन्होंने एक समय तक अपनी पत्नी के लिए कुछ भी नहीं किया था. पीयूष मिश्रा अपनी पत्नी की ग़ैरमौजूदगी में पराई महिलाओं को घर पर लाते थे, जब वो बेहतरी की ओर बढ़ने लगे तब उन्होंने ये सब खुलकर अपनी पत्नी को बताया.
पीयूष मिश्रा कहते हैं, ‘आज मेरी पत्नी और बच्चे ही मेरा सबकुछ हैं और मेरी कोशिश रहती है कि मैं उन्हें तकलीफ़ न दूं.’
एक ज़माने में लेफ़्टिस्ट थे
पीयूष मिश्रा अपने दोस्त एन.के.शर्मा की वजह से सीपीएम (CPM) के मार्ग पर चलने लगे. वो कहते हैं कि वो अपने दोस्त एन.के के सामने नास्तिक बनते थे लेकिन हक़ीक़त में भगवान पर विश्वास करते थे.
पीयूष मिश्रा के शब्दों में, ‘कम्युनिज़म एक बेहद दिलचस्प विषय है. 1989 में मेरे दोस्त एन.के.शर्मा ने मेरा परिचय इससे करवाया, 1989 में. 1992 में पंजाब जल रहा था और हम सड़कों पर विद्रोह गीत गाते चलते थे. मैंने तब ज़िन्दगी में पहली बार असली की एके-47 देखी. मैं आशीष विद्यार्थी, शूजीत सरकार, मनोज बाजपेई, इमतियाज़ अली के साथ था. मैंने वो हर काम किया जो एक लेफ़्टिस्ट करता था. लेफ़्टिस्ट बनकर मैंने काफ़ी कुछ सीखा- काम की एहमियत, अनुशासन, समय पर पहुंचना.’
‘मैंने प्यार किया’ के लिए ऑडिशन दिया था
सलमान खान और भाग्यश्री की ‘मैंने प्यार किया’ के लिए पायूष मिश्रा ने ऑडिशन दिया था. फ़िल्म में बतौर लीड एक्टर कास्ट किया जाने वाले था मिश्रा को लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सूरज बड़जात्या ने सलमान ख़ान को लीड रोल दिया. पायूष मिश्रा की बॉलीवुड में एंट्री ‘दिल से’ से हुई. कास्टिंग डायरेक्टर तिगमांशू धुलिया ने मणि रत्नम से मिश्रा को कास्टर करने को कहा.
गुलाल के बाद ब्रेन स्ट्रोक हुआ था
गुलाल में पायूष मिश्रा ने गज़ह का अभिनय किया और ये बॉलीवुड की बेहतरीन फ़िल्मों में से एक है. रिलीज़ के बाद उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ था. रिलीज़ के बाद उन्हें अपनी पत्नी और कुछ रिश्तेदारों से मिलने अमेरिका जाना था लेकिन एयरपोर्ट पर ही उनके हाथ कांपने लगे. वो इम्मिग्रेशन भी ठीक से भर नहीं पा रहे थे और जैसे-तैसे अमेरिका पहुंचा. वहां जाकर उनकी हालत बिगड़ी और उन्हें पता चला कि उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ था. उनका कहना है कि निर्देशक विशाल मिश्रा की वजह से वे अपनी पुरानी ज़िन्दगी में लौट पाए.
पीयूष मिश्रा ज़िन्दगी की कई समस्याओं से लड़कर जिस मकाम तक पहुंचे हैं, वहां पर उनसे सिर्फ़ प्रेरणा ही ली जा सकती है.