इतिहास के पन्नों से: वो बन्दर जिनकी मौत के बाद इंसान ने खोजा था अंतरिक्ष तक पहुंचने का रास्ता

आज भले ही इंसान अंतरिक्ष तक पहुंचने का रास्ता ढूंढ चुका है लेकिन एक समय ऐसा भी रहा था जब अंतरिक्ष मानव के लिए मात्र एक रहस्य था. शायद तब जब भी कोई रात के समय आसमान की तरफ देखता होगा तो यही सोचता होगा कि आखिर उन चमकीले तारों सितारों और चांद का क्या रहस्य है ? बहुत सी ऐसी बातें होंगी जो उन दिनों इंसानों के दिमाग में घूमती होंगी. लेकिन समय के साथ हर रहस्य से पर्दा उठता गया और आज हमारे पास उन दिनों के कई ऐसे अनसुलझे सवालों के जवाब मौजूद हैं. लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इसका श्रेय किसे दिया जाएगा. सभी ने तो वैज्ञानिकों की पीठ थपथपा दी मगर उन्हें किसी ने याद नहीं रखा जिनके कारण इंसान के लिए अंतरिक्ष के दरवाजे खुले. आइए जानते हैं उनके बारे में जिन्होंने इंसानों की जिज्ञासा को शांत करने के लिए अपने प्राण दे दिए :     

वो दौड़ जिसका शिकार हुए बंदर  

अंतरिक्ष में जानवर airandspace

1950-60 के दौर में अमेरिका की नासा और सोवियत संघ की ‘रोस्कोस्मोस’ के बीच अंतरिक्ष में सबसे पहले पहुंचने की स्पर्धा चल रही थी. इसी स्पर्धा को जीतने के लिए नासा ने 1948 से टेस्टिंग के तौर पर बंदरों को स्पेस में भेजना शुरू कर दिया था. स्पेस की दुनिया में अपने इस प्रतिद्वंदी रोस्कोस्मोस से आगे रहने के लिए नासा ने 1958 में गोर्डो नाम के बंदर को अंतरिक्ष में भेजा लेकिन उसकी मौत हो गयी. इसके साल भर बाद 28 मई 1959 को मिस बेकर और एबल नाम के बंदरों को अंतरिक्ष में भेजा गया. दोनों मिशन पूरा करने के बाद सुरक्षित वापस लौट आए.

एबल और मिस बेकर पृथ्वी की कक्षा से जिंदा वापस लौटने वाले पहले बंदर थे. 500 किलोमीटर ऊपर भारहीनता ने बंदरों की हालत खस्ता कर दी थी. जिस कारण लैंडिंग के कुछ ही देर बाद एबल की मौत हो गयी. मिस बेकर 1984 में 27 साल की उम्र पूरी करने के बाद दुनिया से विदा हुई. 

 

फिर बारी आई चिंपैंजी की  

अंतरिक्ष में जानवर outsider

सैम भाग्यशाली रहा कि उस पर मिस बेकर और एबल की तरह भारहीनता के प्रयोग नहीं किये गए. सैम नाम के बंदर के जरिए अंतरिक्ष यात्रियों को जिंदा रखने वाले कैप्सूल का टेस्ट हुआ. सैम इस टेस्ट में कामयाब रहा. कुत्ते और बंदरों के बाद इंसान के बेहद करीब माने जाने वाले चिम्पांजी को अंतरिक्ष यात्रा के लिए चुना गया. 1961 में अमेरिका ने हैम नाम के चिम्पांजी को अंतरिक्ष में भेजा. उसने छह मिनट तक भारहीनता का सामना किया. वह जिंदा वापस लौटा. उसके शरीर का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिली कि भारहीनता में शरीर कैसे काम करता है. 

जानवरों ने खोला इंसान के लिए रास्ता 

कुत्तों, बंदरों और चिम्पांजी को अंतरिक्ष में भेजने के बाद इंसान भी अंतरिक्ष में गया. लेकिन ऐसा नहीं है कि अब दूसरे जीवों को अंतरिक्ष में भेजने का चलन बंद हो गया है. यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने 2007 में टार्डीग्रेड नाम के सूक्ष्मजीवों को अंतरिक्ष में भेजा था. वे 12 दिन जीवित रहे. उनकी मदद से पता किया गया कि निर्वात और सौर विकिरण जीवन पर कैसा असर डालते हैं. जीव जंतुओं की मदद से भले ही इंसान के लिए अंतरिक्ष तक पहुंचने के रास्ते खुल गए लेकिन इसके लिए कई कई बेजुबानों को अपनी जान गंवानी पड़ी. आने वाले समय में हो सकता है कि इंसान दूसरे ग्रह पर भी पहुंच जाए. लेकिन हमें उन जानवरों के त्याग, असहनीय पीड़ा को कभी नहीं भूलना चाहिए जिन के कारण आज हम अंतरिक्ष में कदम रख पाए हैं.