जेएनयू फिर सुर्खियों में है। दोबारा कारण अच्छे नहीं हैं। इस बार जेएनयू में ब्राह्मण और बनिया निशाने पर हैं। इन्हें भारत छोड़ो की धमकी दी गई है। धमकी देते हुए जेएनयू की दीवारें लाल कर दी गई हैं। कभी बुद्धिजीवियों को गढ़ने की टकसाल कहा जाने वाला यह विश्वविद्यालय हाल में विवादों को रोक पाने में बार-बार फेल हुआ है।
जेएनयू में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज-1 और 2 के भवन की दीवारें गुरुवार को ब्राह्मण और बनिया समुदाय विरोधी नारों से लाल कर दी गईं। इनमें ‘ब्राह्मण भारत छोड़ो’ की धमकी दी गई। ब्राह्मण और बनिया समुदाय के लोगों को निशाने पर लेते हुए चेताया गया कि उनके पीछे ब्रिगेड आ रही है। रक्तपात होगा। इस धमकी को गंभीरता से लिया गया है। लेना भी चाहिए। हाल में जिस तरह जेएनयू का रिकॉर्ड रहा है, उसे किसी भी तरह से अच्छा नहीं कहा जा सकता है। यह राष्ट्र विरोधी और नफरत फैलाने वाली गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है। आए दिन इस यूनिवर्सिटी में विवाद होते रहे हैं। मामला पुलिस तक पहुंच गया है। इसे लेकर शिकायत दर्ज कराई गई है। जेएनयू के शिक्षक भी इस घटना से आहत हैं। यूनिवर्सिटी के शिक्षक संघ ने एक बयान में कहा कि इस तरह की घटनाओं के बारे में सुनकर दुख हुआ। बयान के मुताबिक, ‘जेएनयूटीए इस अत्यंत निंदनीय कृत्य की कड़े से कड़े शब्दों में निंदा करता है। यह विविधता की भावना और सभी विचारों को जगह देने के जेएनयू के मूल लोकाचार का उल्लंघन करता है।’
आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला
छात्रों के एक धड़े ने इसके लिए कम्युनिस्ट विचारधारा रखने वाले छात्रों को दोषी ठहराया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एवीबीपी) ने कहा है कि इस प्रकरण के लिए वामपंथी जिम्मेदार हैं। इन छात्रों ने जेएनयू की दीवारों पर लिखे गए अपशब्दों को लेकर निंदा की है। वहीं, बीजेपी ने इसके पीछे गहरी साजिश जताई है। उसका कहना है कि यह भारत को तोड़ने की कोशिश है। लेफ्ट ने इसे बीजेपी का नफरत फैलाने का एजेंडा बताया है।
किसे है ब्राह्मणों और बनियों से नफरत?
‘ब्राह्मण परिसर छोड़ो’, ‘रक्तपात होगा’, ‘ब्राह्मण भारत छोड़ो’ और ‘ब्राह्मणों और बनिया, हम तुम्हारे पास बदला लेने आ रहे हैं…’। ये नारे दिखाते हैं कि यूनिवर्सिटी में एक ऐसा तबका जड़े जमा चुका है जो हर बार विवाद करवाता है। इसका काम उकसाने और भावनाएं भड़काने का है। विश्वविद्यालय के अंदर देश विरोधी नारे लगते रहे और देश के ‘टुकड़े-टुकड़े’ चाहने वालों को ऐसा करने दिया गया, यह कैसे मुमकिन है। भला कैसे दीवारों पर कोई समुदाय विशेष विरोधी नारे लिख गया और किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई। कहीं यह किसी बड़ी घटना की आहट तो नहीं है? क्यों छात्रों में नफरत के बीज पड़ गए हैं? अचानक क्यों देश का माहौल जहर से भर गया है? जेएनयू में जो कुछ हुआ है वह बड़े खतरे का अंदेशा जता रहा है। इसे किसी भी तरह से सिर्फ विश्वविद्यालय का मामला समझकर छोड़ा नहीं जा सकता है।