नौकरी न मिलने से हुए थे निराश, अब 1 ट्रक मधुमक्खी से लाखों रुपये कमाते हैं कौशांबी के ये ‘बी-मैन’

उत्तर प्रदेश के कौशांबी के रहने वाले संजय मौर्या मधुमक्खी पालन से लाखों रुपये सालाना कमाते हैं। उन्होंने बी-कीपिंग में करियर बनाने के लिए युवाओं को प्रेरित करने का काम किया है।

संजय मौर्य

 

कौशांबी: ‘कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो’ कवि दुष्यंत की इन पंक्तियों को प्रयागराज के संजय मौर्या ने सच करके दिखाया है। वह इन दिनों में कौशांबी जिले के कनवार गांव के वीराने में डेरा जमाए हुए हैं। संजय अगले 10 दिनों तक कौशांबी के अलग-अलग हिस्से में रहकर बी-कीपिंग करेंगे। उसके पास मौजूदा समय में एक ट्रक मक्खियां हैं, जिनसे वह सालाना 4 लाख रुपये कमाते हैं।

प्रयागराज के हड़िया के छोटे से गांव मुलनापुर में रहने वाले संजय कुमार मौर्या बी-कीपिंग किसान है। संजय ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ़ आर्ट्स हिंदी विषय से किया है। शुरुआती दौर में आम बेरोजगार युवाओं की तरह उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया, लेकिन नौकरी हाथ नहीं आई। संजय मौर्या ने बताया कि नौकरी से दूर होकर उन्होंने खुद के रोजगार की सोची। पिता रूप नारायण से 50 हज़ार रुपये लेकर 25 बॉक्स खरीद कर मधुमक्खी पालन (बी-कीपिंग) शुरू किया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज उनके पास एक ट्रक मक्खियां हैं, जिनसे वह 4 लाख रुपये सालाना कमाते हैं।

बी-कीपिंग फार्मर संजय मौर्या परिवार में सबसे बड़े हैं। उनसे छोटा एक भाई है जो निजी व्यवसाय करता है। संजय मौर्या परिवार संयुक्त है। घर में माता-पिता के अलावा पत्नी पुष्पा मौर्या एवं 2 बेटे अंकित मौर्या, अमन मौर्या एवं बेटी अंजलि मौर्या है। संजय मौर्या के पिता छोटे किसान है, जिन्होंने परंपरागत खेती कर उन्हें और उनके भाई को बीए-एमए तक की पढ़ाई कराई। संजय मौर्या के मुताबिक उन्होंने बी-कीपिंग के जरिये अपने बड़े बेटे अंकित मौर्या को बीटेक की पढ़ाई कराई। वह दिल्ली में रहता है। बेटी अंजलि बीएससी (सेकेंड ईयर) की छात्रा है और सबसे छोटा बेटा 9 की पढाई कर रहा है। यह सब कुछ वह मधुमक्खी पालन कर अपनी मेहनत से कर सके हैं। वह सालाना मक्खियों से 4 लाख रुपये कमा लेते हैं।

संजय कुमार मौर्या ने बताया कि वह भी आम बेरोजगार जैसे नौकरी न मिलने पर कुंठित हो रहे थे। फिर उनके एक रिस्तेदार ने उन्हें बी-कीपिंग के बारे में जानकारी दी। साल 2005 में उन्होंने बी-कीपिंग 50 हज़ार रुपये से शुरू की। 25 बॉक्स से शुरू हुआ रोजगार आज 350 बॉक्स तक पहुंच गया है। उनके पास एक इराक मक्खिया मौजूदा समय में हैं, जिसके लिए भोजन एकत्रित करने के लिए वह यूपी एमपी समेत कई जिलों में 7-8 महीने घर से बाहर रहते हैं। मार्च के बाद फसलों की कटाई होने पर वह मार्च से सितम्बर माह तक घर में रहते हैं। इन मक्खियों से वह साल भर में 4 लाख रुपये तक की शहद निकल कर ब्रिक्री कर लेते हैं।

क्या है बी-कीपिंग

बी-कीपिंग यानी मधुमक्खी पालन, जिसे बेहद कम खर्च में साधारण से साधारण व्यक्ति कुछ जरूरी सावधानियों के साथ शुरू कर सकता है। इसके लिए किसी विशेष ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं होती। उद्यान अधिकारी सुरेंद्र राम भास्कर ने बताया कि बी-कीपिंग के लिए भारत सरकार प्रधानमंत्री 2017 में मीठी क्रांति को हरी झंडी दिखाई थी, जिसके तहत नेशनल बी-कीपिंग एंड हनी मिशन की शुरुआत की गई। जिसके तहत प्रधानमंत्री हनी मिशन योजना के तहत 10 बॉक्स इच्छुक लाभार्थी को दिए जाते है। जिले में हनी मिशन योजना का कोई भी लाभार्थी नहीं है। हार्टिकल्चर मिशन के तहत 16 लाभार्थी जिले में बी-कीपिंग कर रहे है।