अगर आप अपने घर में इस गणेश चतुर्थी पर गणपति की स्थापना करने जा रहे हैं तो हम आपको बता रहे हैं पूजा विधि और मंत्र, जिनका पूजा के वक्त उच्चारण करने से आपको गणपति पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। आइए जानें गणेश चतुर्थी पर किस तरह से गणेश प्रतिमा बैठाएं और उनकी पूजा करें।
गणेश चतुर्थी के दिन गणेशजी की मूर्ति स्थापित करके आप अपने घर में गणपति पूजन करने की सोच रहे हैं तो आपको गणपति पूजा की विधि और मंत्रों को भी जान लेना चाहिए। मंत्रों और शास्त्रोक्त विधि से गणेश प्रतिमा की स्थापना करके इनकी पूजा करने से गणपति विघ्नों को दूर करते हैं और मंगलमूर्ति रूप में सभी प्रकार से भक्तों के जीवन में सभी प्रकार से शुभ मंगल लेकर आते हैं। आइए जानें गणेश चतुर्थी पर किस तरह से गणेश प्रतिमा बैठाएं और उनकी पूजा करें।
गणेश पूजा आरंभ विधि पूजा मंत्र
सबसे पहले एक कलश में जल भरकर ले आएं। जहां भी आपने पूजा के लिए मंडप बनाया है वहां आसन बिछाकर बैठ जाएं। हाथ में जल लेकर सबसे पहले हाथ में कुश और जल लें, फिर मंत्र बोलें –
ओम अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपी वा।
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाहान्तर: शुचि:।।
फिर जल को अपने ऊपर और पूजा के लिए रखे सभी सामग्रियों पर इसे छिड़क दें। इसके बाद तीन बार आचमन करें। हाथ में जल लें और ओम केशवाय नम: ओम नाराणाय नम: ओम माधवाय नम: ओम ह्रषीकेशाय नम:। ऐसे बोलते हुए तीन बार हाथ से जल लेकर मुंह से स्पर्श करें फिर हाथ धो लें। इसके बाद जहां गणेशजी की पूजा करनी हो उस स्थान पर कुछ अटूट चावल रखें। इसके ऊपर गणेशजी की प्रतिमा को विराजित करें।
गणेशजी को अपने आसन पर बैठाने के बाद सबसे पहले गणेश चतुर्थी व्रत पूजन का संकल्प लें। बिना संकल्प लिए पूजा न करें। गणेश पूजन संकल्प के लिए हाथ में फूल, फल, पान, सुपारी, अक्षत (अटूट चावल) चांदी का सिक्का या कुछ रुपया, मिठाई, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर हाथ में जल लें फिर संकल्प मंत्र बोलें-
‘ ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2079, तमेऽब्दे नल नाम संवत्सरे सूर्य दक्षिणायने, मासानां मासोत्तमे भाद्र मासे शुक्ले पक्षे चतुर्थी तिथौ बुधवासरे चित्रा नक्षत्रे शुक्ल योगे विष्टि करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकल-पाप-क्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति पूजन -पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
संकल्प करने के बाद कलश की पूजा करें। कलश को गणेशजी के दाईं ओर रखें। कलश पर एक नारियल लाल वस्त्र में लपेटकर इस प्रकार रखें कि केवल आगे का भाग ही दिखाई दे। कलश में आम का पल्लव, सुपारी, सिक्का रखें। कलश के गले में लाल वस्त्र या मौली लपेटें। इसके बाद कलश पर नारियरल रखकर इसके ऊपर एक दीप जलाकर ऱख दें।
हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देवता का कलश में आह्वान करें। साथ ही मंत्र ‘ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांग सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)’ मंत्र बोलें। इस तरह कलश पूजन के बाद सबसे पहले गणेशजी की पूजा करें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी का ध्यान करें और ‘गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।’ मंत्र पढ़ें।