GD Birla: आजादी के लिए धन लुटाने वाला सेनानी, अंग्रेजों को चुनौती देकर खड़ा किया था Birla Group

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देश को आजाद कराने में बहुत से क्रांतिकारियों ने अपना खून बहाया, बहुत से स्वतंत्रता सेनानी जेल गए, बहुत से आजादी के लड़ाकों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया. इतिहास ऐसे कई बलिदानियों की गाथा लिख चुका है लेकिन उन दानियों पर बहुत ही कम बात होती है जिन्होंने आजादी की इस लड़ाई में अपना पैसा बहाया और फिर देश को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

आज हम एक ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानी और देश के जाने माने बिजनस ग्रुप के संस्थापक की कहानी आपको बताने जा रहे हैं. इन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम की मुहिम जारी रखने के लिए धन का दान किया, बल्कि दलितों को उनका अधिकार दिलाने के लिए भी लड़े. आजादी के बाद इन्होंने अपना साम्राज्य मजबूत करने के साथ-साथ भारत की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत किया.

हम बात कर रहे हैं भारत से सबसे बड़े बिजनेस साम्राज्यों में से एक बिड़ला ग्रुप के संस्थापक और देश की आजादी में अहम योगदान देने वाले घनश्याम दास बिड़ला की.

ऐसे मिला ‘बिड़ला’ उपनाम

Ghanshyam Das Birla  Wiki

आज के दौर में अमीरी की पहचान बताने के लिए लोग ‘अंबानी’ सरनेम का प्रयोग करते हैं लेकिन वो भी एक दौर था जब बिड़ला का नाम लिया जाता था. बिड़ला हमारे देश के सबसे पुराने और सबसे मजबूत बिजनेस साम्राज्यों में से एक रहा है. इसी बिड़ला ग्रुप के संस्थापक थे घनश्याम दास बिड़ला.

10 अप्रैल 1894 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के पिलानी गांव में जन्मे घनश्याम दास बिरला एक मारवाड़ी माहेश्वरी समुदाय से संबंध रखते थे. घनश्याम दास के साथ ‘बिड़ला’ उपनाम जुड़ा नवलगढ़ के बिड़ला परिवार के कारण. इसी परिवार के शिवनारायण बिड़ला की कोई संतान नहीं थी. ऐसे में उन्होंने जी.डी बिड़ला के पिता बलदेव दास को गोद लिया और फिर बलदेव दास बन गए बलदेव दास बिड़ला. इस तरह ये उपनाम घनश्याम दास और उनकी आने वाली पीढ़ियों के साथ जुड़ा.

बिड़ला नाम को आगे बढ़ाया

शिवनारायण बिड़ला का परिवार मारवाड़ी समुदाय के पारंपरिक व्यवसाय साहूकारी के लिए जाना जाता था लेकिन शिवनारायण बिड़ला इससे हटकर अलग क्षेत्र में व्यापार का विकास करने के लिए जाने गए. उनके दत्तक पुत्र और घनश्याम दास के पिता बलदेव दास ने अपने भतीजे फूलचंद सोधानी के साथ मिलकर अफीम का व्यवसाय किया और इसे सफल बनाया. उनके साथ साथ घनश्याम दास के बड़े भाई जुगल किशोर भी इसी व्यापार में आगे बढ़े.

बलदेव दास बिड़ला ने 1884 में बॉम्बे में शिवनारायण बलदेव दास और कलकत्ता में 1897 में दलदेव दास जुगल किशोर नामक फार्मों की शुरुआत की. यहां से वह चांदी, रुई, अनाज आदि का व्यापार करते थे. बलदेव दास के चार बेटे थे, जुगल किशोर, रामेश्वर दास, घनश्याम दास और ब्रज मोहन. इन सभी में घनश्याम दास बिड़ला सबसे ज्यादा कामयाब रहे.

दो शादी की, दोनों पत्नि चल बसीं

Ghanshyam Das Birla Twitter

1905 में घनश्याम दास का विवाह पिलानी के नजदीक स्थित चिड़ावा गांव के महादेव सोमानी की बेटी दुर्गा देवी से हुआ. 1909 में दुर्गा देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम लक्ष्मी निवास रखा गया. दुर्भाग्य शादी के 5 साल बाद ही दुर्गा देवी को टीबी हुआ और वह इस दुनिया से चल बसीं. सन 1912 में घनश्याम दास बिड़ला ने महेश्वरी देवी से दूसरा विवाह किया लेकिन कुछ ही सालों बाद चार बच्चों को जन्मद देने के बाद वह भी टीबी की चपेट में आ गईं और 6 जनवरी 1926 को इस दुनिया से चल बसीं. इसके बाद घनश्याम दास ने विवाह नहीं किया और अपना सारा समय अपने व्यापार में लगाने लगे. उनकी उम्र मात्र 32 साल थी.

केवल 5वीं तक की पढ़ाई

Ghanshyam Das Birla Twitter

शिक्षा की बात करें तो घनश्याम दास मात्र पांचवी कक्षा तक ही पढ़ पाए थे लेकिन व्यापार में वह पढ़े लीखों को पीछे छोड़ने की क्षमता रखते थे. घनश्याम दास परिवार की परंपरागत साहूकारी व्यवसाय को निर्माण के क्षेत्र में मोड़ना चाहते थे. इसलिए कोलकाता चले गए. व्यापार में उन्होंने हमेशा अपने दूरदर्शी नजारियों का उपयोग किया. व्यापार के लिए भी शुरुआत में उन्होंने ऐसा व्यवसाय चुना जिसमें अभी तक किसी अन्य भारतीय ने कदम नहीं रखा था. ये व्यापार था जूट का, इसी व्यापार के लिए वह कलकत्ता आए थे क्योंकि बंगाल जूट का सबसे बड़ा उत्पादक था. उस समय जूट के व्यापार पर अंग्रेजों का एकछत्र राज था.

एक कमरे के मकान में रहकर अंग्रेजों को दी थी चुनौती

उन दिनों घनश्याम दास अपने भाई के साथ एक कमरे के मकान में रहते थे.  उसी कमरे में  सोते थे ,खाना बनाते थे तथा कपड़ा धोते थे. इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत दिखाते हुए अंग्रेजों को चुनौती दी और इस व्यापार में उतर गए. हालांकि उन दिनों अंग्रेजों को चुनौती देना पानी में रह कर मगरमच्छ से वैर करने जैसा था लेकिन घनश्याम दास ने हार नहीं मानी. जैसा कि पहले से ही ये अंदाजा था कि घनश्याम दास के इस प्रयास में अंग्रेज अड़चन जरूर डालेंगे, वैसा ही हुआ. सबसे पहले तो जूट के व्यापार के लिए सभी बैंकों ने उन्हें कर्ज देने से मना कर दिया. दूसरी तरफ जब बिड़ला अपने व्यवसाय के लिए अच्छी जमीन खरीदने गए तो वहां भी अंग्रेजों ने उन्हें पीछे धकेलने की कोशिश की. दरअसल, अंग्रेज ये नहीं चाहते थे कि जूट के व्यवसाय में कोई भारतीय उन्हें टक्कर दे.

अंग्रेजों ने खड़ी कीं मुश्किलें

Ghanshyam Das Birla Wiki

अपनी मिल शुरू करने में भी उन्हें काफी मुश्किल हुई. उन्हें मिल के लिए विदेशी मशीनें मंगवानी थीं लेकिन रुपए का भाव गिरने के कारण उन मशीनों की कीमत एकदम से दोगुनी हो गई. हालांकि इनमें से कोई भी परेशानी घनश्याम दास बिड़ला को अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ने से न रोक सकी. उन्होंने जूट का व्यापार शुरू कर दिया. यहां भी उनकी दूरदर्शिता काम आई. जब वह विदेश से कोई नई मशीन मंगवाते तो उसके स्पेयर पार्ट्स भी साथ में ही मंगवा लेते थे. ऐसे में मशीन के अचानक खराब होने के बाद भी काम नहीं रुकता था.

घनश्याम दास बिड़ला की एक खासियत ये थी कि जब भी वह कोई काम करते तो इस विश्वास के साथ करते कि ये जरूर सफल होगा. उनका ये विश्वास और धैर्य हमेशा काम आया. जूट के व्यापार में भी उनका धैर्य रंग लाया. उसी दौरान प्रथम विश्व युद्ध ठन गया, जिसके कारण पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में जूट की कमी हो गई. ये समय बिड़ला के लिए आगे बढ़ने का था और वह बढ़े भी.

बिड़ला ग्रुप की रखी नींव

इसके बाद सन 1919 में घनश्याम दास बिड़ला ने उस साम्राज्य की नींव रखी जो साल दर साल फलता फूलता रहा. जी हां, यही वह साल था जब उन्होंने 50 लाख की लागत से ‘बिड़ला ब्रदर्स लिमिटेड’ की स्थापना की. इसके बाद उन्होंने ग्वालियर में एक मील शुरू किया. इसके बाद घनश्याम दास द्वारा शुरू किया गया बिड़ला ग्रुप का ये सफर कभी रुका ही नहीं. हिंदुस्तान मोटर्स की स्थापना कर इस ग्रुप ने भारत को कार उद्योग में उतारा. देश की आजादी के बाद कई पूर्व यूरोपियन कंपनियों को खरीद कर चाय और टेक्सटाइल उद्योग में निवेश किया. इसके साथ ही सीमेंट, रसायन विज्ञान, स्टील पाइप जैसे क्षेत्रों में भी आगे बढ़े.

स्वतंत्रता संग्राम को दी आर्थिक मजबूती

GD Birla Family Mahatma Gandhi Twitter

एक तरफ घनश्याम दास बिड़ला व्यापार के क्षेत्र में अंग्रेजों को चुनौती दे रहे थे तो इसी दौरान वह देश के स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़े रहे. बताया जाता है कि घनश्याम दास बिड़ला 1916 में पहली बार महात्मा गांधी से मिले. समय के साथ साथ इन दोनों में गहरी मित्रता हुई. आगे चल कर बिड़ला महात्मा गांधी के करीबी मित्र होने के साथ साथ उनके सलाहकार एवं सहयोगी के रूप में भी जाने गए. अपनी हत्या से 4 महीने पहले से महात्मा गांधी घनश्याम दास बिड़ला के दिल्ली निवास पर ही रह रहे थे.

एक तरफ दूसरे क्रांतिकारी जहां खून बहाकर और जेल जा कर स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन रहे थे वहीं घनश्याम दास उन गिने चुने स्वतंत्रता सेनानियों में से थे जो आर्थिक रूप से देश को आजाद कराने की मुहिम में जुटे हुए थे. उन्होंने कई मौकों पर स्वतंत्रता आंदोलन के लिए आर्थिक मदद दी और अन्य धन्नासेठों से भी आजादी की लड़ाई में समर्थन करने की अपील की.

इसके साथ ही भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान घनश्याम दास ने एक ऐसे व्यवसायिक बैंक का सपना देखा जो पूरी तरह से भारतीय पूंजी और प्रबंधन से बना हो. उनका ये सपना यूनाइटेड कमर्शियल बैंक के रूप में 1943 में पूरा हुआ. इस बैंक की स्थापना कोलकाता में की गई. भारत के सबसे पुराने व्यवसायिक बैंकों में से एक इस बैंक को अब यूको (UCO) बैंक के नाम से जाना जाता है.

जब अंग्रेजों ने जारी किया था वारेंट

GD BirlaWiki

युवा घनश्याम दास शुरुआत में क्रांतिकारी गतिविधियों का हिस्सा भी रहे. इसके लिए अंग्रेज पुलिस ने उनके खिलाफ वारंट भी जारी किया था. राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानियों की ग्रंथमाला लिखने वाले लेखक डॉ. रामधारी सैनी के अनुसार 22 वर्षीय घनश्याम दास बिड़ला उस समय अंग्रेजी प्रशासन की नजर में आ गए थे जब उन्होंने अपने कमरे में कारतूस से भरी पेटी छुपाई थी. उन दिनों घनश्याम दास कोलकाता के मारवाड़ी क्लब का हिस्सा थे.

यहीं उनकी मुलाकात क्रांतिकारी बंगाली युवक विपिन गांगुली से हुई. तब जकरिया स्ट्रीट के एक मकान में रह रहे घनश्याम दास ने विपिन गांगुली के कहने पर कारतूस से भरी पेटी छुपाई थी. विपिन गांगुली ने अपने साथियों के साथ मिल कर हथियारों के एक बड़े खेप से डॉ पेटियां गायब की थीं. जिनमें से एक में बंदूकें और दूसरे में कारतूस था. बंदूकें क्रांतिकारियों में बांट दी गईं और कारतूस वाली पेटी घनश्याम दास बिड़ला के कमरे में छुपा दी गई.

हालांकि बाद में इस पेटी को यहां से हटा दिया गया लेकिन कुछ समय बाद अंग्रेजों को इसकी भयानक लग गई. इस केस में कई क्रांतिकारी गिरफ्तार हुए और  इसी क्रम में बिड़ला की गिरफ्तारी का वारंट जारी हुआ. हालांकि उन दिनों बिड़ला उटकमंड यानी ऊटी-तमिलनाडु में थे. जब उन्हें इस खबर के बारे में पता चला तो नाथद्वारा और पुष्कर जाकर कई दिनों तक सबकी नजरों से दूर रहे हे. बाद में जब ये वारंट रद्द हुआ तब वह कलकत्ता लौट आए.

घनश्याम दास बिड़ला 1926 में ब्रिटिश इंडिया के केंद्रीय विधानसभा के लिए चुने गए. इसके बाद उन्हें 1932 में महात्मा गांधी के साथ मिलकर दिल्ली में हरिजन सेवक संघ की स्थापना की. इस संघ के अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने हरिजनों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी है. वह हरिजनों को मंदिरों प्रवेश दिलाने के लिए लंबे समय तक लड़ाई लड़ते रहे.

शिक्षा के क्षेत्र में किया काम

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इन सबके अलावा घनश्याम दास बिड़ला ने वो काम किए जिनकी वजह से लाखों बच्चे अपने भविष्य में शिक्षा का उजाला कर सके. उन्होंने 1943 में पिलानी में बिड़ला इंजीनियरिंग कॉलेज और भिवानी में टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट आफ टैक्सटाइल एंड साइंसेज की स्थापना की. 1964 में बिड़ला इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड साइंस हो गया. इन्हीं परोपकारी और देश के हित में किये कार्यों के लिए उन्हें 1957 में भारत सरकार द्वारा देश के दूसरे सर्वश्रेष्ठ सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

हमेशा लिया धैर्य से काम

GD BirlaBirla Family

घनश्याम दास बिड़ला अपने धैर्य के लिए भी जाने जाते हैं. ऐसा ही एक किस्सा है जो सिद्ध करता है कि उनमें धैर्य की कोई कमी नहीं थी. बिगड़ती स्थिति को देख उनके भाई उनसे हमेशा पूछा करते थे कि आखिर भाग्य हमारा साथ क्यों नहीं दे रहा है. इसी प्रश्न के उत्तर में एक बार घनश्यामदास बिड़ला ने अपने भाई से कहा कि, “अपने हाथ को ध्यान से देखो. इससे बड़ी दुनिया में कोई ताकत नहीं है. हमारा वक्त भी आएगा, जब हमारे हाथ हमारा मुकदर सवार देंगे. सिर्फ तुम अपने हाथों की तरफ देखा करो और अपनी इच्छा के बारे में अपने हाथों को बताया करो कि यह हमें दुनिया में सम्मान और पैसा दोनों दिलाएं.”

इसी बीच उन्होंने अपने भाई को अपना सबसे बड़ा राज बताते हुए कहा था कि, “मैंने ईश्वर से कभी कुछ नहीं मांगा, मैं सिर्फ अपने दोनों हाथों से ही मांगता हूं. मेरे लिए दोनों हाथ ही देवता हैं.”

कभी एक कमरे के मकान में किराये पर रह कर जूट का व्यापार शुरू करने वाले घनश्याम दास बिड़ला ने जब 11 जून 1983 को 89 वर्ष की आयु में हमेशा के लिए अपनी आंखें बंद कीं, उस समय बिड़ला ग्रुप में 200 कंपनियों का साम्राज्य खड़ा कर देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रही थी. उस समय उनकी कुल संपत्ति 2500 करोड़ बताई गई थी.