कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अशोक गहलोत और शशि थरूर के बीच सीधा मुकाबला हो सकता है। इसकी वजह यह है कि राहुल इस रेस में हिस्सा नहीं लेंगे। अगर ऐसा हुआ तो 22 साल बाद दिलचस्प टक्कर देखने को मिल सकती है। जहां तक गहलोत और थरूर का सवाल है तो ये अंदाज और मिजाज से बिल्कुल अलग-अलग हैं। अशोक गहलोत गांधी परिवार के पक्के वफादार हैं। इसके उलट शशि थरूर अपनी बात कहने के लिए जाने जाते हैं।
नई दिल्ली: कांग्रेस में गहमागहमी बढ़ गई है। अगले महीने देश की सबसे पुरानी पार्टी का बॉस चुना जाएगा। जिस तरह की स्थितियां हैं, उनसे एक बात तय है। दो दशक से ज्यादा समय बाद अध्यक्ष पद (Congress President Election) की कमान गांधी परिवार के बाहर का कोई शख्स हाथों में लेगा। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अपनी तरफ से साफ कर दिया है। वह अध्यक्ष पद के चुनाव की दौड़ में नहीं हैं। नॉमिनेशन के लिए वह ‘भारत जोड़ो यात्रा’ छोड़कर वापस नहीं लौटेंगे। अभी तक राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) और सांसद शशि थरूर (Shashi Tharoor) का नाम रेस में फाइनल है। दूसरे उम्मीदवारों को लेकर सस्पेंस बना हुआ है। अगर गहलोत और थरूर में सीधी टक्कर हुई तो मुकाबला दिलचस्प होगा। ये मिजाज और कामकाज दोनों तरह से एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। एक गांधी परिवार का पक्का वफादार है तो दूसरा आजाद खयालातों का है। सामने कोई भी हो, वह अपने मन की बात बोलता है। दरअसल, सवाल यह है ही नहीं कि अध्यक्ष पद की कुर्सी पर कौन बैठेगा। असल बात यह है कि इनमें से कौन कांग्रेस की बीमारी का इलाज करने का दमखम रखता है।
कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए नॉमिनेशन की अंतिम तारीख 30 सितंबर है। इसके लिए अधिसूचना 22 सितंबर को जारी होगी। नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया 24 से 30 सितंबर तक चलेगी। नॉमिनेशन वापस लेने की अंतिम तारीख 8 अक्टूबर है। एक से ज्यादा कैंडिडेट होने पर 17 अक्टूबर को मतदान होगा। नतीजे 19 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे।
बहुत कुछ उलट-पुलट होगा
इस तरह की खबरें हैं कि राजस्थान के सीएम 26 से 28 सितंबर के बीच अध्यक्ष पद चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करेंगे। बुधवार को गहलोत दिल्ली रवाना होंगे। उन्होंने अपनी यात्रा से पहले पार्टी विधायकों की बैठक बुलाई। राजस्थान में अगले साल चुनाव होने हैं। इसके ठीक पहले गहलोत का अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए दावेदारी पेश करना, यह सोचने की बात है। गहलोत अगर केंद्रीय भूमिका की तरफ बढ़ते हैं तो राजस्थान का क्या होगा? क्या जिन सचिन पायलट से उनकी लंबे समय से तकरार है, उनके हाथों में राज्य की बागडोर थमाई जाएगी। इस तरह की खबरें हैं कि अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर वह मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ देंगे। इस तरह पायलट इसी टर्म में राजस्थान के मुख्यमंत्री बन जाएंगे।
थरूर और गहलोत में कई अंतर
गहलोत और थरूर दोनों में कुछ बुनियादी अंतर हैं। राजस्थान के सीएम गांधी परिवार के वफादार हैं। वह लगातार राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने की पैरवी करते रहे हैं। उन्हें संगठन को चलाने और उसे एकजुट रखने का लंबा अनुभव है। वहीं, थरूर की छवि इसके उलट है। वह कांग्रेस में होते हुए भी कांग्रेस का बिल्ला नहीं लगाए हैं। वह अपनी बातों को बेबाकी से रखने के लिए जाने जाते हैं। फिर वह परवाह नहीं करते हैं कि उनके सामने राहुल खड़े हैं या सोनिया। वह कांग्रेस के उन जी-23 नेताओं के समूह में शामिल हैं जिन्होंने 2020 को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी लिखकर समूह ने संगठन में बड़े बदलाव की अपील की थी। सिर्फ इतना ही नहीं, इन नेताओं ने पार्टी की दुर्दशा के लिए केंद्रीय नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया था। ये समूह लंबे समय से कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव की अपील कर रहा था। इस तरह कह सकते हैं कि थरूर गांधी परिवार से खुद को जोड़कर नहीं देखते हैं। वह सोनिया गांधी से मिलकर अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की अपनी इच्छा जता चुके हैं। सोनिया गांधी कह चुकी हैं कि इसमें उनकी भूमिका तटस्थ होगी।
दोनों में कांग्रेस के लिए कौन सही?
एक खांटी कांग्रेसी दूसरा बिल्कुल बिंदास मिजाजी, ऐसे में बड़ा सवाल यह कि क्या इन दोनों में से किसी के अध्यक्ष बनने से कांग्रेस का भला होगा। इसका जवाब सीधा और सपाट नहीं है। हालांकि, एक बात तय है कि कांग्रेस में बदलाव की जरूरत है। सोनिया के बाद राहुल और राहुल के बाद सोनिया का कॉम्बिनेशन फेल हो चुका है। पिछले कुछ सालों में पार्टी देश में सिमटती गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी को चुनौती पेश करने में वह बिल्कुल नाकाम हो रही है। यहां तक क्षेत्रीय दलों ने उसके लिए खतरा पैदा कर दिया है। आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और जदयू जैसे दल विपक्ष की भूमिका निभाने की दावेदारी पेश कर रहे हैं।
ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को अपनी बीमारी ठीक करनी होगी। पार्टी में नई ऊर्जा और सोच की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है कि कमान गांधी परिवार से बाहर किसी व्यक्ति के पास जाए। गहलोत के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है। वह संगठन को एकजुट कर सकते हैं। गांधी परिवार के वह वफादार हैं। जो पार्टी में किसी तरह का बदलाव नहीं चाहते हैं वे भी उनके साथ सहज होंगे। उनके खिलाफ विरोध के सुर उठने की आशंका नहीं है। हालांकि, ड्रॉबैक यह है कि राजस्थान के बाहर उनकी पहचान बहुत ज्यादा नहीं है। पार्टी अध्यक्ष बन जाने के बाद भी वह गांधी परिवार के दबाव में ही रह सकते हैं। उनके लिए अपनी चीजें लागू करना इतना आसान नहीं होगा।
थरूर के साथ भी पॉजिटिव-निगेटिव
यही चीज थरूर के साथ है। उनके मामले में भी कई पॉजिटिव और निगेटिव हैं। थरूर के साथ सबसे बड़ा पॉजिटिव यही है कि उनकी छवि स्थानीय नहीं है। वह जाना-पहचाना चेहरा और नाम हैं। उन्हें कोई हांक नहीं सकता है। राहुल और सोनिया भी नहीं। यानी कांग्रेस की सबसे बड़ी पोस्ट संभालने पर वह अपने तरीके से काम कर सकते हैं। हालांकि, निगेटिव यह है कि पार्टी के अंदर उनकी स्वीकार्यता को लेकर सवाल खड़े हो सकते हैं। पार्टी में उनसे सीनियर कई लीडर्स हैं। जो धड़ा गांधी परिवार का धुर समर्थक है, उसे थरूर की छतरी के नीचे आने में दिक्कत हो सकती है। यह कांग्रेस में विरोध के सुर बढ़ा सकता है।
राहुल गांधी ने 2019 में आम चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद सोनिया गांधी ने पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर जिम्मेदारी संभाली थी। राहुल इन दिनों कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हुए हैं। वह तकरीबन साफ कर चुके हैं कि उन्हें अध्यक्ष पद के चुनाव में हिस्सा नहीं लेना है। यह और बात है कि उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर प्रस्ताव पारित हो रहे हैं।