हिमाचल के नदी बेसिनों में मार्च, अप्रैल में बर्फ केे पिघलने की रफ्तार लगातार बढ़ी है। 25 फीसदी रफ्तार से ग्लेशियरों के पिघलने से भविष्य के लिए खतरा पैदा हो गया है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हिमाचल के नदी बेसिनों पर दिखाई देना शुरू हो चुका है। प्रदेश के नदी बेसिनों में मार्च-अप्रैल में बर्फ के पिघलने की रफ्तार 2021-22 में 19 से 25 फीसदी रही। 2020-21 में नदी बेसिनों में ग्लेसियर के पिघलने की रफ्तार 4 से 10 फीसदी थी। ऐसे में एक साल के भीतर ही यह रफ्तार दोगुना हो गई है, जो कि भविष्य के खतरे को लेकर साफ तौर पर आगाह कर रही है।
राज्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी व पर्यावरण परिषद के अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। परिषद के वैज्ञानिक ने प्रदेश में रावी, चिनाब, सतलुज व ब्यास बेसिनों में बर्फ बारी व ग्लेशियरों के पिघलने को लेकर अध्ययन किया। अध्ययन के मुताबिक प्रदेश के सभी नदी बेसिनों में 2021-22 में अक्तूबर से अप्रैल तक बर्फबारी 19.47 फीसदी अधिक हुई। 2020-21 के मुकाबले बर्फबारी अधिक होना बेहतर माना गया, जबकि 2020-21 में 2019-20 के मुकाबले नदी बेसिनों में 18 फीसदी कम बर्फबारी हुई थी। बीते साल सर्दियों में अक्तूबर व नवंबर में बर्फबारी होने को सकारात्मक ट्रेंड माना गया।
रावी, चिनाब बेसिन में तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर
अध्ययन में यह भी खुलासा हुआ है कि रावी व चिनाब बेसिन में ग्लेशियरों के पिघलने में तेजी से इजाफा हुआ है। इसका मुख्य कारण पीर पंजाल की पहाडिय़ां हैं, क्योंकि पश्चिमी विक्षोभ को पीर पंजाल की श्रेणियों ने रोका, जिससे यह नाकारात्मक प्रवृत्ति देखने को मिली। इससे चेनाब बेसिन में 2021-22 में मार्च से मई माह में चंबा, डल्हौजी व मनाली में तापमान बढ़ा, जबकि रावी बेसिन में भी यही स्थिति रही। नतीजतन इन दोनों बेसिनों में ग्लेसियर व बर्फ तेजी से पिघल गई। मगर ब्यास व सतलुज बेसिन में प्रवृत्ति सकारात्मक रही।