Good News : बचपन से दिव्यांग.. वीलचेयर पर होकर भी जिंदगी को रफ्तार दे रहे विनोद की कहानी, हमें लड़ना सिखाती है

Lucknow Vinod Story: लखनऊ के एक ऐसे विनोद की कहानी जो 7 महीने की उम्र से दिव्यांग है। उसके बावजूद कभी हिम्मत नहीं हारी। चलने में असमर्थ होने के बावजूद खुद के परिवार का खर्च चलाने के लिए हजारों लोगों के घरों में खाना पहुंचा चुके हैं। हर कोई उनके जज्बे को सलाम करता है।

 
Lucknow delivery boy story
लखनऊ: मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। भगवान का बनाया हुआ सबसे खूबसूरत तोहफा है इंसान, जो किसी भी चाहत को अंजाम दे सकता है। फिर उसका शरीर भले अधूरा क्यों ना हो। आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं जो दिव्यांग है, लेकिन उनकी लगन और मेहनत देखकर आप सलाम करेंगे। लखनऊ के एक ऐसे विनोद की कहानी जो 7 महीने की उम्र से दिव्यांग है। उसके बावजूद कभी हिम्मत नहीं हारी। चलने में असमर्थ होने के बावजूद खुद के परिवार का खर्च चलाने के लिए हजारों लोगों के घरों में खाना पहुंचा चुके हैं। जो भी उनसे मिलता है, उनके हौसले को सलाम करता है। उन्हें उनके कार्य के लिए बधाई देता है। बेहतर जीवन की शुभकामना भी। हौसले उनके लिए प्रेरणा हैं और वे अन्य लोगों के लिए। जब लोग छोटी-छोटी बातों को लेकर किस्मत से लेकर तमाम चीजों को कोसने के लिए बैठ जाते हैं, विनोद उनके सामने अपने हौसले के साथ उठ खड़े होने, जूझने, लड़ने की प्रेरणा देते हैं।

आलस उचित नहीं
दरअसल, लखनऊ में ग़ाज़ीपुर गांव के रहने वाले 31 वर्षीय विनोद वर्मा पिछले करीब डेढ़ साल से घर-घर फूड डिलीवरी ब्वॉय का काम कर रहें हैं। जिससे वो हर महीने 12 से 15 हजार रुपए कमा लेते हैं। विनोद का कमर के नीचे का हिस्सा 7 महीने की उम्र पूरी तरह से पैरालाइज्ड है। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। कहते हैं, आलस कहां तक उचित है। हम अपनी स्थिति पर रो सकते हैं, या फिर उठ सकते हैं। खड़े हो सकते हैं। लड़ सकते हैं। जीत सकते हैं। लेकिन, आलस करेंगे तो सब कुछ मुश्किल, बहुत ही मुश्किल होता चला जाएगा।

भीख तो मांग नहीं सकते इसलिए…
बावजूद इसके सच्ची लगन और दृढ़ संकल्प के चलते कभी भी अपनी इस कमज़ोरी को अपने आगे नहीं आने दिया। विनोद का कहना है कि भीख तो मांग नहीं सकते इसलिए डिलीवरी बॉय का काम करते हैं। मनुष्य अगर अपना आलस छोड़ दे तो वह कुछ भी कर सकता है। बस हौसला और जज्बा रखने की जरूरत होती है।

विनोद की पत्नि भी हैं दिव्यांग
विनोद का कहना है कि भगवान आपको मनुष्य बनाकर इस धरती पर भेजता है लेकिन किस्मत आपको खुद ही बनानी पड़ती है। जब वो आप बना लोगे तो, काम तो काम है दुनिया आपके कदम चूमेगी। बता दें कि विनोद इलेक्ट्रिक साईकिल से फूड डिलीवरी का काम करते हैं जो एक बार चार्ज करने पर करीब 50 किलोमीटर का सफर तय करती है। यानी कुल मिलाकर विनोद रोजाना 10 से 12 लोगों के घरों में खाना पहुंचा देते हैं।



दो बच्चे..पत्नी भी हैं दिव्यांग

इस काम से जो कमाई होती है उससे वह चार लोगों का अपना परिवार चलाते हैं। विनोद के घर में उनको मिलाकर 4 लोग हैं जिसमें एक बच्चा 8 साल का है जो पढ़ाई करता हैं। वहीं दूसरा बच्चा 3 साल का है। बता दें कि विनोद की पत्नी भी दिव्यांग हैं।c