Gujarat Eection 2022: गुजरात में बीजेपी को साल 1990 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखने को मिला। इसके बाद पार्टी ने 1992 से 1995 के बीच इतना व्यापक विस्तार किया कि अपने दम पर सरकार में आ गई। अगर शंकर सिंह वाघेला के एक साल चार दिन के कार्यकाल को छोड़ दिया जाए, तो गुजरात में बीजेपी पिछले 27 सालों से सत्ता में है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि गुजरात बीजेपी का इतना मजबूत गढ़ कैसे बना गया?
नहीं रास आया गठ’बंधन’
जनता दल के नेता चिमनभाई को मुख्यमंत्री बनना था तो उन्होंने बीजेपी की तरफ हाथ बढ़ाया। 4 मार्च, 1990 को 17 साल के लंबे इंतजार के बाद चिमनभाई पटेल दूसरी बार मुख्यमंत्री बन गए। चिमनभाई को बीजेपी के सहयोग से कुर्सी मिली थी, लेकिन कई मुद्दों पर उनके सैद्धांतिक मतभेद पहले से थे। इस सरकार में केशुभाई पटेल उप मुख्यमंत्री थे। लिहाजा पहले से ही चिमनभाई पटेल कई मुद्दों पर बीजेपी के साथ नहीं थे, वे मुस्लिमों के प्रति नरम रुख रख रहे थे। इसी बीच जब अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे विश्व हिंदू परिषद का आंदोलन आगे बढ़ा तो बीजेपी आंदोलन के साथ थी। ऐसे में मतभेद खाई में बदलने लगे। राम मंदिर शिलालेख को लेकर विवाद हुआ। कारसेवकों की रवानगी और बीजेपी की आंदोलन में सक्रियता चिमनभाई को असहज कर रही थी। हालात ऐसे बने कि गतिरोध बढ़ा और आठ महीने बाद गठबंधन टूट गया। दोनों पार्टियों की राहें अलग-अलग हो गईं, हालांकि चिमनभाई पटेल ने कांग्रेस के सहयोग से अपनी सरकार बचा ली। बीजेपी की जगह पर कांग्रेस सरकार में सहयोगी बनी। कांग्रेस ने काफी सारे अहम विभाग लिए। चिमनभाई पटेल को गृह विभाग कांग्रेस को देना पड़ा और सीडी पटेल गृह मंत्री बने।
लतीफ के गढ़ भरी ललकार
इधर, चिमनभाई पटेल सरकार से बाहर निकलने के बाद बीजेपी के सामने फिर संघर्ष का विकल्प था। सत्ता के लिए अपने संख्या बल को बढ़ाने की बड़ी चुनौती थी। बीजेपी के हटने के बाद चिमनभाई पटेल ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार तो बचा ली थी, लेकिन प्रदेश में बहुत कुछ ऐसा घटित हो रहा था जो वे नहीं चाहते थे और जो वे चाहते थे वह हो नहीं पा रहा था। वजह थे गृह मंत्री सीडी पटेल। इसके चलते प्रदेश में गुंडगर्दी बढ़ने की स्थिति का निर्माण हुआ। तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे। तभी अहमदााबद में कांग्रेस के सांसद रउफउल्ला की हत्या कर दी गई। आरोप कुख्याल अब्दुल लतीफ के ऊपर लगा। भय के बीच आक्रोश का माहौल था। अहमदाबाद के कुख्यात डॉन लतीफ का खौफ इतना ज्यादा था कि पोपटीयावाड मोहल्ले में जाने से पुलिस भी डरती थी। इस हत्याकांड से कांग्रेस में गुस्सा था लेकिन वह सत्ता में भागीदार थी, इसलिए मुखर होकर नहीं बोल पा रही थी। विपक्ष में बैठी बीजेपी को बैठे-बिठाए सामने से एक बड़ा मुद्दा मिला। बीजेपी नेता केशुभाई पटेल ने लतीफ के गढ़ पोपटीयावाड में लोक दरबार लगाने का ऐलान कर दिया। केशुभाई गए और दरबार लगाया। इतना ही नहीं उन्होंने लतीफ डॉन से कांग्रेस सरकार की मिलीभगत का आरोप भी लगाया। इसका असर यह हुआ कि आम जनमानस में भी यह धारण बन गई कि लतीफ पर चिमनभाई पटेल का हाथ या फिर उनकी चुप्पी है। लोगों के बीच धीरे-धीरे यह मुद्दा बना गया। लोगों में परसेप्शन बना कि इससे बीजेपी ही निपट सकती है। हुआ भी ऐसा ही। 1995 में बीजेपी सत्ता में आई और इसके बाद नंवबर 1997 में लतीफ एक पुलिस एनकाउंटर में मारा गया। 2017 में आई बॉलीवुड मूवी रईस लतीफ के जीवन पर ही थी। इसमें शाहरुख खान ने लतीफ के किरादार को निभाया था।
अपने दम बना ली ‘सरकार’
एक तरफ बीजेपी चिमनभाई पटेल के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थी तो दूसरी तरफ राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ चुका था। 12 महीने के अंतराल पर अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया गया। इसके बाद मुंबई में सीरियल बम ब्लास्ट हुए। महाराष्ट्र से अलग होकर बने गुजरात में इन सभी बातों की तीखी प्रतिक्रिया थी। रामलला की लहर पर सवार बीजेपी ने कांग्रेस की चुनौती बनी खाम (क्षत्रिय-हरिजन-आदिवासी-मुस्लिम) थ्योरी के खिलाफ हिंदुत्व का कार्ड खेला। इससे पार्टी ने भय, भूख, भ्रष्टाचार हटाने का नारा बुलंद किया। 1992 की अयोध्या की घटना के तीन साल बाद चुनाव हुए तो बीजेपी अपने बूते पर सत्ता में थी। बीजेपी को 121 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस को 45 और 16 निर्दलीय जीते। जनता दल का सूपड़ा साफ हो गया। ये किसी करिश्मे से कम नहीं था। इस जीत का श्रेय लालकृष्ण आडवाणी, केशुभाई पटेल, शंकर सिंह वाघेला के साथ नरेंद्र मोदी को दिया गया। केशुभाई मुख्यमंत्री बने। इसी चुनाव से गुजरात की राजनीति फिर से दो पार्टियों में बंट गई। 2001 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने और फिर यहां से मोदी युग शुरू हुआ। वे 2014 तक मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर उतरी और 30 साल बाद ऐसा हुआ जब किसी पार्टी ने लोकसभा में अकेले दम पर बहुमत हासिल किया। जीत का कारवां 2019 में और आगे बढ़ा और इस बार मोदी मैजिक ने बीजेपी के आंकड़े को 303 सीटों तक पहुंचा दिया।