Gujarat Assembly Election: रामायण की ‘सीता’ ने ढहा दिया कांग्रेस का किला…दीपिका चिखलिया की जीत का किस्सा

गुजरात के वडोदरा शहर की दुनियाभर में एक अलग पहचान है। शैक्षणिक नगरी, कला नगरी और संस्कारी नगरी के तौर पर इस शहर को जाना जाता है। गायकवाड़ रियासत का केंद्र रहा वडोदरा 1991 से पहले तक कांग्रेस का गढ़ था, लेकिन 1991 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के ‘सीता’ दांव ने इस वडोदरा को भगवा दुर्ग बना दिया। कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा।

अहमदाबाद: 1990 के मार्च महीने की बात है, गुजरात की बागडोर चिमनभाई पटेल के हाथों में थी। जनता दल और बीजेपी गठबंधन की सरकार के वह मुख्यमंत्री थे। तो दूसरी तरफ देश में राम मंदिर आंदोलन गति पकड़ रहा था। मंदिर मुद्दे पर आए तनाव के बाद सरकार में बीजेपी कोटे के मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया। नतीजा यह हुआ कि 25 अक्टूबर, 1990 को जनता दल और बीजेपी का गठबंधन टूट गया, हालांकि चिमनभाई पटेल ने कांग्रेस के सहयोग से अपनी कुर्सी बचा ली। गठबंधन टूटने से बीजेपी विपक्ष में आ गई। सरकार से बाहर हुई बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती थी कि 1991 के लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कैसे किया जाएगा? पार्टी ने चिमनभाई पटेल की सरकार में मंत्री रहे और तेजतर्रार नेता नलिन भट्ट का नाम वडोदरा लोकसभा के लिए सोचा, लेकिन पार्टी के सामने दुविधा यह फंस गई कि, अगर नलिन को सांसद का चुनाव लड़ाते हैं, तो मध्य गुजरात में लीडरशिप का वैक्यूम क्रिएट हो जाएगा और इसका पार्टी को नुकसान हो सकता है। नलिन उस वक्त बड़े नेता थे। वडोदरा सीट से किसको लड़ाया जाए? इस पर पार्टी में मंथन चल रहा था।

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वडोदरा लोकसभा से नामांकन भरने से पूर्व लालकृष्ण आडवाणी के साथ दीपिका चिखलिया और नरेंद्र मोदी। फोटो: फेसबुक अकाउंट से

पंचमहाल से थी लड़ाने की तैयारी
गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री उस वक्त शंकर सिंह वाघेला भी भाजपा में थे। वे बतौर पार्टी नेता रामानंद सागर के सफल टेलीविजन धारावाहिक रामायण में सीता का किरदार निभा रही दीपिका चिखलिया को चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन उनकी मंशा दीपिका को पंचमहाल से लड़ाने की थी। पार्टी में विचार-विमर्श हुआ और सुरेशा मेहता ने नलिन भट्ट पर फंसे पेंच के बाद उन्हें वडोदरा (तब बड़ौदा) से लड़ाने का फैसला किया गया। धारावाहिक रामायण की लोकप्रियता उन दिनों बहुत ज्यादा था। लोग अपना कामकाज छोड़कर रामायण सीरियल देखते थे। लोग इसके लिए पहले से तैयारी करते थे। घरों में टीवी की संख्या काफी कम थी। लोगों को जैसे ही पता चला कि बीजेपी की तरफ से रामायण की सीता चुनाव लड़ेगी। तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मुंबई में रहने वाली दीपिका चिखलिया ने अंतत: भाजपा नेता वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में पर्चा भरा। अभिनय की दुनिया से एकदम राजनीति में आई दीपिका को राजनीति की कतई समझ नहीं थी। उनके लिए सबकुछ नया था, लेकिन गुजरात की संस्कारी नगरी में उनकी उम्मीदवारी को अभूतपूर्व समर्थन मिला। जब वे प्रचार के लिए निकली तो संस्कारी नगरी को लोग सड़कों पर थे, एक झलक देख लेने को आतुर थे। महिलाओं में दीपिका की दीवानगी खूब दिखी।

दीपिका चिखलिया की वडोदरा से जुड़ी तस्वीरें। ऊपर सगुणा भट्ट के साथ दीपिका। नीचे चुनाव प्रचार के दौरान आनंदीबेन पटेल और दिवंगत भाजपा नेता नलिन भट्ट के साथ दीपिका।

सीता आई… और पैर छूकर अभिवादन
प्रचार और सभाओं के दौरान पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं सीता आई…सीता के साथ स्वागत करते और पैर भी छूते। दीपिका की उम्मीदवारी से कांग्रेस का मजबूत गढ़ दरकने लगा। दीपिका का मुकाबला दो बार सांसद रहे चुके रंजीत सिंह गायकवाड़ से था। कांग्रेस के गढ़ में पहली बार कमल खिल रहा था। पार्टी नेता उत्साहित थे। नतीजे आए तो अनुमान एकदम सटीक निकले। दीपिका चिखलिया को 49.98 फीसदी वोट मिले। उन्होंने कांग्रेस के किले को ध्वस्त कर दिया और दिग्गज कांग्रेसी नेता रंजीत सिंह को हार का सामना करना पड़ा। वे 34 हजार से अधिक मतों हारे। तो वहीं दो मिनट नहीं बोल पाने वाली दीपिका प्रचार करते-करते आधे घंटे तक भाषण देना सीख गईं। दिवंगत नलिन भट्ट की पत्नी सगुणा नलिन भट्ट कहती हैं कि हम मैरून कलर की अपनी कार में लेकर प्रचार के लिए निकले थे। दीपिका चिखलिया की उम्मीदवारी को लोगों ने वकाई में हाथों-हाथ लिया था।

पार्टी को जबरदस्त फायदा
दीपिका चिखलिया के सीता के किरदार की लोकप्रियता और राम मंदिर आंदोलन की पृष्ठभूमि का पार्टी को फायदा जबरदस्त फायदा मिला। पहली बार वडोदरा में कमल खिला। दीपिका पूरे पांच साल तक सांसद रहीं, लेकिन इस दौरान वडोदरा बीजेपी का गढ़ बन गया। 1996 के चुनाव कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला हुआ। कांग्रेस उम्मीदवार महज 17 वोटों से जीत पाए तो दूसरे नंबर पर बीजेपी के उम्मीदवार जीतू सुखड़िया रहे। दो साल बाद फिर लोकसभा के चुनाव हुए तो बीजेपी ने 1998 कांटे के संघर्ष में कांग्रेस के पास गई सीट को छीन लिया। 1998 से 2022 तक कांग्रेस को कभी भी जीत नहीं मिल पाई। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां से लड़े और 5.70 लाख वोटों से जीते। बीजेपी के सीता दांव ने कांग्रेस के किले को भगवा दुर्ग में बदल दिया। दीपिका चिखलिया के वडोदरा से लड़ने का असर यह हुआ कि कांग्रेस का विधानसभा में भी कमजोर हो गई। पिछले कई विधानसभा चुनावों से पार्टी को शहर में कोई सीट नहीं मिल पा रही है। दीपिका के सीता के किरदार की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी उनसे मिले थे।

कांग्रेस का हो गया सफाया
1991 से 1996 तक वडोदरा की सांसद रही दीपिका चिखलिया जब चुनाव जीती थी, तब वे महज 26 साल की थीं। दीपिका वर्तमान में मुंबई में रहती हैं। मुंबई में पैदा हुई दीपिका को बचपन से ही अभिनय की दुनिया पंसद थी। दीपिका चिखलिया के पति हेमंत टोपीवाला एक बिजनेसमैन हैं। दीपका की दो बेटियां हैं, निधि और जूही हैं। वे हाल ही में तब सुर्खियों में आई थीं। जब दीपिका चिखलिया वेस्टर्न आउटफिट में दिखी थीं। तो सोशल मीडिया पर यूजर्स के तरह-तरह के कमेंट का सामना करना पड़ा था। उन्होंने अपनी पोस्ट में उन्होंने लिखा था चेंज एंड ट्रांसफॉर्मेशन। लोकसभा की सदस्य रह चुकी दीपिका सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय रहती हैं। दीपिका काफी सारी फिल्मों में काम कर चुकी हैं, आखिरी बार वे निर्देशक अमर कौशिक की बाला फिल्म में नजर आई थी। हाल ही में रिलीज हुआ गाना ‘मेरे घर राम आए हैं’ दीपिका पर शूट किया गया है। इसे मनोज मुंतसिर ने लिखा है और जुबिन नौटियाल ने गाया है। दीपिका से जुड़ा यह किस्स इतना दिलचस्प है कि वडोदरा के लोग 1991 के लोकसभा के चुनाव को आज याद करते हैं, जिसने बीजेपी का पहली बार कमल खिलाया था।