प्रथम विश्व युद्ध (First World War 28 जुलाई 1914 – 11 नवंबर 1918) से पहले तक भारतीयों को ब्रिटिश सेना में अफ़सर रैंक पर नियुक्त नहीं किया जाता था. अंग्रेज़ भारतीयों को शामिल तो करते थे लेकिन उन्हें सेना में नीचे के रैंक दिए जाते थे. गौरतलब है कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद ये सोच बदली.
युद्ध खत्म होने के बाद 1919 में कई भारतीय मूल के सैनिकों को किंग्स कमिशन दिया गया और उन्हें बतौर अफ़सर सेना में शामिल किया गया. भारत के पहले चीफ़ ऑफ आर्मी स्टाफ, फ़ील्ड मार्शल के एम करियप्पा (Field Marshal KM Cariappa) उन्हीं में से एक भारतीय थे.
ब्रिटिश मिलिट्री ने लगभग 12,00,000 लाख भारतीय सिपाहियों को युद्ध लड़ने के लिए भेजा. भारतीय सैनिकों ने फ़्रांस, बेल्जियम, मिस्त्र, मेसोपोटामिया, गालीपोली, सिनाई में लड़ाई लड़ी. उन सिपाहियों में से लगभग 1,30,000 सिख सिपाही थे. चार भारतीयों ने आरएफसी (रॉयल फ़्लाइंग कॉर्प्स) और आरएएफ (रॉयल एयर फ़ोर्स) के हवाईजहाज़ उड़ाए और उन्हीं में से एक थे ग्रुप कैप्टन सरदार हारदित सिंह मलिक, जिन्हें फ़्लाइंग सिख कहा जाता है.
कौन थे सरदार हरदित सिंह मलिक?
1894 में हरदित सिंह मलिक का जन्म रावलपिंडी, पंजाब (अब पाकिस्तान) में एक अमीर सिख परिवार में हुआ. हरदित एक बड़ी हवेली में, घोड़ा-बग्घी, नौकर-चाकर, प्राइवेट ट्यूटर से पढ़ते हुए बड़े हुए. अपने माता-पिता की दूसरी संतान थे हरदित जिन्हें 14 साल की उम्र में पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड भेजा गया. बता दें कि यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य थे हरदित. 1910 के दशक में वे ऑक्सफ़ोर्ड स्थित Balliol College से मॉर्डन हिस्ट्री में पढ़ाई कर रहे थे. वे खेल-कूद में भी आगे थे और ससेक्स क्रिकेट क्लब की तरफ़ से क्रिकेट खेलते थे, गोल्फ़ भी खेलते थे.
1916 में रेड क्रॉस जॉइन किया
प्रथम विश्व युद्ध के आगाज़ के बाद हरदित सिंह मलिक ने भी सेना में शामिल होने का निर्णय लिया. ग्रैजुएट होने के बाद 1915 में उन्होंने रॉयल फ़्लाइंग कॉर्प्स (RFC) जॉइन करने की कोशिश की. अंग्रेज़ों को हर भारतीय में एक ‘क्रांतिकारी’ नज़र आता था- गर्म दिमागी मतवाले जो ब्रिटिश सत्ता को खत्म करना चाहते हैं. उन्होंने ज़मीन पर लड़ने के लिए लाखों भारतीय सिपाही रिक्रुट किए लेकिन हवाईजहाज़ उड़ाने के लिए किसी भी भारतीय को नहीं चुना.
Times को दिए एक साक्षात्कार में हरदित सिंह मलिक ने बताया कि भारतीयों के लिए कोई वैकेंसी नहीं थी इसलिए 1916 में उन्होंने फ़्रेंच सेना जॉइन की और रेड क्रॉस की तरफ़ से लड़े. मलिक Aeronautique Militaire से जुड़ने ही वाले थे कि ऑक्सफ़ोर्ड के उनके पूर्व ट्यूटर ने RFC कमांडर को खत लिखा और मलिक को एक मौका देने की सिफ़ारिश की. मलिक को RFC के Sopwith Camels में बतौर सेकेंड लेफ़्टिनेंट Squadron Number 28 भर्ती कर लिया गया.
भारत का पहला फ़ाइटर पायलट ब्रिटेन की तरफ़ से लड़ा लेकिन अपनी शर्तों पर. हरदित सिंह मलिक पग्ग धारी सिख थे और उन्होंने अपनी पगड़ी नहीं उताड़ी. वे एक विशेष रूप से तैयार किया गया हेलमेट अपनी पगड़ी के ऊपर पहनते थे और इसी वजह से उनका नाम ‘फ़्लाइंग सिख’ पड़ा.
हवाई जहाज़ पर दुश्मन के 400 बुलेट्स
हरदित सिंह मलिक ने फ़्रांस और इटली में कई कॉम्बैट मिशन्स में हिस्सा लिया. 1917 में, बेल्जियम के आकाश में जर्मनी के जवानों के साथ उन्होंने हवा में भी युद्ध किया. बादलों में छिपे Sopwith Camels के चार हवाईजहाज़ों को अचानक दुश्मनों ने चारों तरफ़ से घेर लिया. मलिक को पैर में दो गोलियां लगई और दुश्मनों की लाइन के पीछे उनका हवाई जहाज़ क्रैश हो गया. मलिक का काफ़ी खून बह रहा था, वे बेहोश थे. उनके प्लेन पर दुश्मनों ने 400 से ज़्यादा बुलेट्स दागे थे. कहा जाता है कि उस दौर में किसी कॉम्बैट फ़ाइटर पायलट जीवन प्रत्याशा सिर्फ़ 10 दिन थी. हारदित सिंह मलिक जीवित बच गए और युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने इंडियन सिविल सर्विसेज़ जॉइन किया. उन्होंने ये भांप लिया था कि ब्रिटिश एयर फ़ोर्स में भारतीय पायलट्स के लिए ज़्यादा स्कोप नहीं था.
कनाडा में भारत के पहले हाई कमिश्नर
प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रितानिया सरकार ने भारतीय सिपाहियों की जांबाज़ी को पहचान दी. भारत को एक Sopwith Camel प्लेन दिया गया. ये प्लेन हरिदत सिंह मलिक खुद उड़ाकर मैंचेस्टर में रखे गए समारोह तक ले गए.
भारत में भी हरदित सिंह मलिक को उचित सम्मान मिला. 1944 में वे पंजाब में वरिष्ठ मंत्री के पद पर रहे. भारत की आज़ादी के बाद मलिक को कनाडा में भारत का पहला हाई कमिश्नर बनाकर भेजा गया. वहां उन्होंने भारतीयों को कनाडा की नागरिकता दिलाने में अहम भूमिका निभाई. 1956 में फ़्रांस में भारतीय राजदूत की भूमिका निभाने के बाद वे रिटायर हुए.
सरदार हारदित सिंह मलिक को जो दो जर्मन गोलियां लगी थी उन्हीं के साथ, 1985 में 90 की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली. मार्च 2021 में ब्रिटिश सरकार ने फ़्लाइंग सिख सरदार हारदित सिंह मलिक की एक प्रतिमा लगाने की घोषणा की थी. ये प्रतिमा अप्रैल 2023 तक स्थापित होने की संभावना है.