2000 औरतों को दे चुकी हैं ड्राइविंग की ट्रेनिंग, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कर रहे प्रयास

ड्राइविंग के फिल्ड में महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. लेकिन, इसकी शुरुआत कुछ वर्षों पहले ही मजबूती से हुई थी. गुलेश कुमार ने भी पति की मौत के बाद साल 2007 में उबर के लिए ड्राइविंग की शुरुआत की थी.

 

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक़ गुलेश के पति की जब मौत हुई तो उनके साथ उनका 9 साल का बेटा था. ऐसे में आर्थिक रूप से एक बड़ी चुनौती उनके सामने आ गई. गुलेश पहले एक डिपार्टमेंटल स्टोर में जॉब करती थीं. इसके बाद उन्होंने ड्राइविंग का चुनाव किया.

bhaskar.com

गुलेश इसके पहले अपने पति के अलावा किसी के साथ कार में नहीं बैठी थीं. ऐसे में उन्होंने ड्राइविंग का चुनाव किया. इसके बाद वह उबर के लिए काम करने लगीं. अब वह 2 हजार रुपये रोज कमा लेती हैं. अब छोटे शहरों की भी महिलाएं इस काम में आगे लगी हैं.

पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में सुष्मिता दत्ता टू व्हीलर होंडा एक्टिवा चलाती हैं और लोगों को मंजिल तक पहुंचाती हैं. वह पिछले तीन साल से इंडियन ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क कंपनी ओला के लिए कार ड्राइविंग कर रही हैं. 

सुष्मिता के मुताबिक़, वह अपने कमाए पैसे से बच्ची को गिफ्ट देती हैं तो खुशी होती है. वह चाहती हैं कि दूसरी महिलाएं भी आगे आएं और अपनी जिंदगी संवार ले. 

bhaskar.com

अब दिल्ली के एक एनजीओ आजाद फाउंडेशन इसी तरह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की कवायद कर रही है. इसकी संस्थापक सुष्मिता अल्वा साल 2008 से काम कर रही हैं. वह अबतक लगभग 2000 महिलाओं को ड्राइविंग की ट्रेनिंग दे रही हैं.