HAS शिल्पी ने मासूम बेटे की परवरिश सहित दी कैंसर को मात, दूसरी बार हौंसले से जीती जंग

एक प्रशासनिक अधिकारी बनना किसी जंग को जीतने से कम नहीं होता। इसके बाद होनहार बेटी अढ़ाई साल के मासूम को गोद में लेकर कैंसर को हरा दे तो दूसरी जंग में विजय मानी जा सकती है।

    करीब सवा साल से एसडीएम (SDM) के पद पर तैनात शिल्पी बेक्टा हौसले के दम पर प्रेरणा, खासकर उन लोगों के लिए बनी है जो जीवन में हताश व निराश होकर हार मान लेते हैं। वो न केवल कैंसर जैसी बीमारी से लड़ी, बल्कि जीती भी है। 2012 में बेटी के  एचएएस (HAS) अधिकारी बनने पर परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था। 2018 में अचानक ही कैंसर डिटेक्ट हुआ तो परिवार में मायूसी का आलम पैदा हुआ।

2019 में पहली रेडिएशन थेरेपी (radiation therapy) के बाद सिर पर एक बाल भी नहीं था। खुद का चेहरा देखकर डरी नहीं, बल्कि अढ़ाई साल के मासूम बेटे को भी दुलार देती रही। इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में कैंसर से पीडित रोगियों के लिए एचएएस अधिकारी शिल्पी बेक्टा (HAS Shilpi Bekta) एक रोल माॅडल भी बनी है।

 महिला प्रशासनिक अधिकारी को करीब से जानने वाले बताते हैं कि कैसर की बीमारी सुनते ही होश फाख्ता हो जाते हैं, लेकिन वो नहीं घबराई। बल्कि खुद को जंग लड़ने के लिए तैयार कर लिया। होनहार व बहादुर बेटी के जहन में अपनी नानी के शब्द हमेशा आया करते थे….नानी कहा करती थी ‘चोट लगने पर दर्द होता है, मगर कष्ट आपका अपना विकल्प होता है’।

हालांकि, पूरा परिवार शिल्पी के साथ खड़ा था। बहन तीमारदारी के लिए न्यूयार्क से पहुंच गई थी। लेकिन हर कोई ये जानता था कि केवल व केवल शिल्पी का हौसला ही उसे नवजीवन दे सकता है। खास बात ये है कि मूलतः शिमला जनपद के कोटखाई के खनेटी की रहने वाली शिल्पी बेक्टा एक कुशल प्रशासनिक अधिकारी भी हैं। हर वक्त जरूरतमंदों की सेवा के लिए तत्पर रहती हैं।

भावुक करने वाले पल….
पीजीआई चंडीगढ़ (PGI Chandigarh) में रेडिएशन थैरिपी के लिए जाने के दौरान अढ़ाई साल का बेटा (अब 7 साल) भी साथ जाया करता था। मम्मी के सिर पर बाल न देखकर हैरान होता होगा। महिला अधिकारी की मानें तो शायद वो कुछ समय भी रहा था। पति एडवोकेट अरुण गोयत की गोद में बेटे को देखकर शिल्पी का संकल्प और दृढ़ हो जाता था।

ऐसा हुआ…
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में एसडीएम शिल्पी बेक्टा ने कहा कि परिवार में पहले किसी को कैंसर रिपोर्ट नहीं हुआ था। 2018 में मुझे कैंसर होने का पता चला। परिवार कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हो गया। बहन न्यूयार्क से लंबी छुट्टी लेकर पहुंच गई। 2019 में पहली रेडिएशन थैरेपी हुई। 8 महीने मेडिकल लीव पर रही। एक साल के भीतर ही शिल्पी ने कार्यभार संभाल लिया था। सुजानपुर में एसडीएम रहने के दौरान अवैध खनन पर नकेल कसने को लेकर भी चर्चा में आई थी।

कैसे हराया कैंसर….
वो बताती हैं, दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए। घंटों योगा किया करती थी। लाइफ स्टाइल में कुछ बदलाव किए। वर्कआउट भी प्राथमिकता में शामिल किया। जीवन से जुड़ी सकारात्मक व प्रेरणादायक किताबें पढ़ा करती थी। ये सब कुछ ट्रीटमेंट से अलग था। ये आपको डॉक्टर नहीं देते हैं, बल्कि खुद करना होता है।

बिना कोचिंग के एचएएस…
2012 में परिवार की मेधावी बेटी शिल्पी बेक्टा ने बगैर कोचिंग के ही हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक परीक्षा (Himachal Pradesh Administrative Exam) को उत्तीर्ण किया था। बैंक पीओ की नौकरी छोड़ दी, क्योंकि जन सेवा की ललक थी। पिता, एक्साइज विभाग में अतिरिक्त आयुक्त के पद से रिटायर हुए हैं। मां, बैंक अधिकारी रही। धर्मशाला में ही दसवीं की पढ़ाई की थी। मौजूदा में यहीं पर एक प्रशासनिक अधिकारी हैं।

पंजाब विश्वविद्यालय से माइक्रो बाॅयोलाॅजी की पढ़ाई करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) में पीएचडी की पढ़ाई के लिए भी दाखिला मिल गया था। युवाओं को एक कामयाब प्रशासनिक अधिकारी के बारे में संदेश को लेकर कहती हैं कि नियमित पढ़ाई लाजमी है। खुद की मेहनत पर विश्वास रखना चाहिए।