ब्रह्माण्ड (Univese) के कई रहस्यों में सबसे ज्यादा जटिल और उलझे हुए उसकी उत्पत्ति से संबंधित हैं. मजेदार बात यह है कि जैसे जैसे हमारे वैज्ञानिकों को पुराने समय के ब्रह्माण्ड की नई जानकारियां मिलती जा रही है पहेलियां और ज्यादा उलझती जा रहा है. इनमें से एक ऐसे ब्लैक होल (Black Hole) के बारे में हैं जो ब्रह्माण्ड के बनने के एक अरब साल बाद के समय तक बन चुके थे. लेकिन उन सुपरमासिव ब्लैक होल (Supermassive Black Hole) के बनने की प्रक्रिया का समय अभी के ज्ञात समय के हिसाब से बहुत ही कम है. नए अध्ययन में यह बताने का प्रयास किया गया है कि इतने कम समय में ब्लैक होल कैसे बन गए होंगे.
बड़े बड़े सवाल
जिस ब्लैक होल की बात हो रही है वह कोई सामान्य ब्लैक होल नहीं बल्कि हमारे सूर्य के भार से ही अरबों गुना बड़ा ब्लैक होल था. जब वैज्ञानिकों को इस ब्लैक होल का पता चला तो उनके जहन में एक ही सवाल आया कि आखिर बिग बैंग के बाद इतनी जल्दी यह ब्लैक बना कैसे और इतना विशाल आकार कैसे ले सका. इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सुपरकम्प्यूटर सिम्यूलेशन के जरिए पता लगा है कि इस तरह के ब्लैक होल की उत्पत्ति कैसे हुई होगी.
इतनी जल्दी कैसे
शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि वह ब्लैक होल बिना किसी जरूरी हालात के कैसे बन गया. ब्लैक होल बनने के लिए अस्थिर किस्म की ठंडी गैस कैसे मिली जो तारों में सिमट जाती है और वह तारा आज के तारों से भी बड़ा था. इस सबके बिना ही ये ब्लैक होल कैसे बन गया और इतना विशाल आकार भी कैसे बना पाया इसकी ही व्याख्या करने का प्रयास इस अध्ययन में किया गया है.
शुरुआती समय के ब्लैक होल
यूके के पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी के खगोलवैज्ञानिक डेनियल वालेन ने बताया, “आज सुपरमासिव ब्लैक होल बहुत ही विशाल गैलेक्सी के केंद्र में पाए जातै हैं जो सूर्य से करोड़ों अरबों गुना भारी होते हो सकते हैं. साल 2003 में हमें क्वेजार मिलना शुरू हुए जो बहुत ही चमकीले सुपरमासिव ब्लैक होल थे जो शुरुआती ब्रह्माण्ड मे खगोलीय लाइट हाउस का काम करते थे. जो बिग बैंग के बनने के एक अरब साल बाद के पहले भी हुआ करते थे.
20 साल बाद बदलता विचार
वालेन ने बताया कि यह किसी को भी समझ में नहीं आया कि शुरुआत के समय में ये क्वेजार बन कैसे गए. यह खोज उत्साहजनक है क्योंकि इसने ब्रह्माण्ड में बने पहले सुपरमासिव ब्लैक होल के बारे में 20 साल से चल रहे विचार को बदला है. सुपरमासिव ब्लैक होल के निर्माण के बारे में दो तरह की विचारधारा हैं.
एक लंबी प्रक्रिया
पहले को बॉटम-अब प्रतिमान कहते है. इसके मुताबिक एक विशाल तारा मरने के बाद सूर्य से सौ गुना भारी ब्लैक होल छोड़ जाता है.इस प्रतिमान के मुताबिक समय के साथ बहुत सारे ब्लैक होल बनते हैं और उनका विलय होता रहता है जिसके बाद वे सूर्य से करोड़ों अरबों गुना भारी हो जाते हैं. लेकिन यह मत शुरुआती ब्रह्माण्ड के क्वेजार से मेल नहीं खाता है.
तेजी से निर्माण की संभवना
एक दूसरी विचारधारा के मुताबिक अगर हम किसी बड़े तारे से शुरुआत करें जो सूर्य से एक लाख गुना भारी हो तो ऐसे ब्लैक होल जल्दी बन सकते हैं. इस तरह के तारे सिकुड़ कर करीब ढाई लाख साल के अंदर ही विशाल ब्लैक होल में बदल सकते हैं. लेकिन आज इस तरह के विशालकाय तारे कहीं नहीं दिखाई देते हैं. और हमारे पास ऐसे तारों के निर्माण प्रक्रिया की कोई जानकारी भी नहीं है और ना ही ये वर्तमान ज्ञात प्रक्रिया से बन सकते हैं.
लेकिन कम्प्यूटर सिम्यूलेशन दर्शाते हैं कि शुरुआती ब्रह्माण्ड में हालात अलग थे. इतने विशाल तारे बहुत ही दुर्लभ लेकिन घने, अस्थिर और ठंडी गैसे की शक्तिशाली धाराओं के किनारे बन सकते हैं. खगोलविज्ञानियों को लगता है कि इसके साथ शक्तिशाली पराबैंगनी विकिरण या गैसों के सुपरसॉनिक बहाव और डार्क मैटर जैसी दूसरी स्थितियों की भी जरूरत होगी. लेकिन क्वेजार के वातावरण में ऐसी कोई भी परिस्थिति नहीं पाई गई, बल्कि केवल प्रिमोर्डियल बादलों से ही ऐसे पिंड बन सकते हैं.