हेमकुंड साहिब से पहले अटलाकोटी ग्लेशियर है। इस ग्लेशियर में भी 10 फुट के करीब बर्फ जमी है। जबकि हेमकुंड साहिब में 8 से 12 फुट तक बर्फ है। सरोवर भी पूरी तरह से बर्फ से गम ढका है। जिसको देख कर अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है कि यहां पर सरोवर है या जमीन।
हेमकुंड साहिब के दर्शन करने वालों के लिए समय गुरुद्वारे का यह दृश्य बेहद मनमोहक होगा। इस समय चारों तरफ बर्फ की चादर बिछी नजर आ रही है। हेमकुंड साहिब तक बर्फ की स्थिति और पैदल मार्ग के हालात जानने के लिए ब्रिगेड कमांडर ब्रिगेडियर अमन आनंद, ऑफिसर कमांडर कर्नल सुनील यादव (418 इंडीपेन्डेन्ट इंजीनियर कॉर्प0), कैप्टन मानिक शर्मा, सूबेदार मेजर नेकचंद एवं हवलदार हरसेवक सिंह गये हैं। सैन्य जवानों द्वारा हेमकुंड साहिब तक के मार्ग की यह ताजा और मनमोहक तस्वीरें उपलब्ध करायी हैं जिससे पता चलता है कि इस समय पूरे रास्ते में कितनी बर्फ है।
कब से शुरू हो रही यात्रा
विदित हो कि श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा इस वर्ष 20 मई से आरंभ होने जा रही है। यात्रा मार्ग से बर्फ हटाकर मार्ग बनाने का कार्य भारतीय सेना के जवानों द्वारा ही किया जाता है। मौसम की परिस्थिति को देखते हुए भारतीय सेना के जवानों ने आश्वस्त किया है कि 20 अप्रैल से बर्फ कटान व मार्ग बनाने का कार्य सेना द्वारा प्रारंभ कर दिया जाएगा। 20 मई 2023 से शुरू होने वाली यात्रा में किसी भी प्रकार व्यवधान व विघ्न नहीं आएगा एवं श्रृद्धालु सुखद ढंग से निर्विघ्न यात्रा करके गुरूघर का आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे।
वहीं गोविंद घाट गुरुद्वारा के मुख्य प्रबंधक सरदार सेवा सिंह ने भी घांघरिया जाकर ट्रस्ट गुरुद्वारे का निरीक्षण किया। 15 अप्रैल से ट्रस्ट के सेवादार एवं अन्य कारीगर इत्यादि यात्रा की तैयारी के लिए घांघरिया गुरूद्वारे के लिये प्रस्थान कर करेंगे। वहां पहुंच कर यात्रा के लिए पहले ही सभी व्यवस्थाएं पूरी कर ली जाएं। इसके साथ ही भारतीय सेना के ठहरने आदि की व्यवस्था भी की जाएगी। इसके अलावा लोक निर्माण विभाग के अंतर्गत पुलना से घांघरिया तक कार्य करने के लिए के लिए 70 मजदूर लगाए गये हैं। जिलाधिकारी हिमांशु खुराना हो रहे सरकारी कार्यों पर पूर्ण रूप से नजर बनाए हुए हैं।
15 किमी का पैदल ट्रैक, बर्फ से ढका
बता दें कि ऋषिकेश से हेमकुंड साहिब की दूरी लगभग 290 किमी है। पुलना गांव के बाद लगभग 15 किमी का पैदल ट्रैक है। जो इस समय पूरी तरह से बर्फ से ढका हुआ है। यहां से बर्फ को काट कर रास्ता बनाने का चुनौतीभरा काम सेना की जिम्मेदारी होता है। यह गुरुद्वारा समुद्र तल से लगभ्ग 15 हजार फुट ऊंचाई पर स्थित है। यहां अक्टूबर से मई तक बर्फ की बर्फ रहती है जिस वजह से यात्रा करना मुश्किल होता है। संभवत: पारा ज्यादा न चढ़ा तो मई माह में कपाट खुलने के अवसर पर श्रद्धालुओं को यहां बर्फ देखने को मिल सकती है।
हेमकुंड साहेब जाने के लिए अलकनंदा नदी को पार करने के बाद गोविंदघाट से ट्रैक शुरू होता है। जो जिग-जैग, खच्चर ट्रैक, सीढ़ीदार खेतों और वनस्पतियों की एक खड़ी चढ़ाई वाले घाटी के जरिए होता है। बीच में लक्ष्मण गंगा अलकनंदा के दर्शन होते हैं। यहां 7 किलोमीटर की पगडंडी में प्राकृतिक वैभव से भरपूर झरने वाले स्थल भी शामिल है। जंगली गुलाब और कई तरह के फूलों की रंगत प्रकृति के सौंदर्य को और भी बढ़ा देती है। सड़कों के किनारे चाय नाश्ते के स्टॉल यात्रियों में और भी ऊर्जा का संचार कर देते हैं।
विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी
इस ट्रेक पर होते हुए जब यात्री पुल तक पहुंचते हैं तो वहां से आगे पगडंडी और भी कठिन चढ़ाई वाली हो जाती है। यहां से 2 किलोमीटर का ट्रैक घांघरिया तक का है जो हेमकुंड साहिब साहिब की यात्रा और विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी का आधार शिविर है। यहां से हेमकुंड साहिब की दूरी 6 किलोमीटर की है लेकिन यहां से बेहद कठिन चढ़ाई शुरू होती है।
ट्रैकिंग आने वाले पर्यटकों को गुरुद्वारा साहिब के पास स्थित फूलों की मनमक घाटी, झरने, बर्फ से ढकी चोटियां और चीड़ व ओक के पेड़ों से आच्छादित जंगल, नदियां मनमोहक नजारे देखने को मिलते हैं। हेमकुंड साहिब के दर्शन करने के बाद यात्रियों के लिए वहां ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है। जिस वजह से उन्हें दर्शन करने के बाद गोविंदघाट के लिए वापस लौटना होता है। हालांकि पहाड़ों में मौसम अचानक रंग बदलते हैं जिस वजह से यात्रियों को गर्मी के मौसम में भी गर्म कपड़े साथ लेकर चलना पड़ता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार पूर्व में हेमकुंड साहिब को लोकपाल के रूप में जाना जाता था यहां पर एक झील जो श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण के ध्यान के मैदान थे उसी झील के किनारे एक सुंदर मंदिर लक्ष्मण का भी बना हुआ है। हेमकुंड जाने वाले यात्री लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के भी दर्शन करते हैं।