Herbal Gulal: हिमाचल की नौणी विवि ने पहली बार जंगली फूलों से तैयार किया हर्बल गुलाल

नौणी विवि के वैज्ञानिकों ने हर्बल गुलाल तैयार किया है। इसका सफल परीक्षण भी किया जा चुका है। अब जल्द इसे बाजार में उतारा जाएगा।

हर्बल गुलाल

जंगली और उपयोग किए गए फूलों से नौणी विवि के वैज्ञानिकों ने हर्बल गुलाल तैयार किया है। खास बात यह है कि इस गुलाल से स्किन की एलर्जी नहीं होगी। इससे खुशबू भी आएगी। वैज्ञानिकों ने कई तरह के जंगली फूलों से इसे तैयार किया है। पांच रंगों में यह गुलाल तैयार किया है। इसमें बैंगनी, हरा, लाल, पीला और मैरून रंग शामिल हैं। इनके मिश्रण से अन्य रंग भी तैयार किए जा सकते हैं। इसका सफल परीक्षण भी किया जा चुका है। अब जल्द इसे बाजार में उतारा जाएगा। इसमें जंगली गेंदा, गुलाब और चमेली समेत फूलों की कई अन्य किस्मों का इस्तेमाल किया गया है।

यह खास तौर पर उन लोगों के लिए लाभदायक होगा, जो होली और शादी समारोह में गुलाल लगाने से परहेज करते हैं। बाजार में उतारने के बाद किसानों को भी इसकी तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाएगा। जानकारी के अनुसार हर्बल रंग पौधों के स्रोतों से प्राप्त होते हैं। इसलिए पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। त्वचा पर बुरा प्रभाव नहीं डालते हैं। कोविड काल में फूलों की बिक्री और इसका प्रयोग न होने से पुष्प उत्पादकों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है। अब किसान इसका प्रयोग हर्बल रंग तैयार करने के लिए भी कर सकते हैं।

सिंथेटिक रंग शरीर के लिए हानिकारक
सिंथेटिक रंगों को बनाने में बड़ी मात्रा में अपशिष्ट पैदा होता है। यह स्वास्थ्य के लिए खतरा, प्रदूषण का कारण बनता है और पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ता है। सिंथेटिक होली के रंगों में अभ्रक, अम्ल, क्षार, और कई बार सस्ते जहरीले तत्व शामिल हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं और बालों और त्वचा की विभिन्न समस्याओं जैसे कि घर्षण, जलन, खुजली, चकत्ते, आंखों में संक्रमण, बालों का खुरदरापन आदि का कारण बनते हैं।– डॉ. संजीव चौहान, निदेशक अनुसंधान, नौणी विवि 

वैज्ञानिक और छात्रा का मुख्य योगदान
विवि के फ्लोरिकल्चर एवं लैंडस्केप आर्किटेक्चर विभाग में वैज्ञानिक डॉ. भारती कश्यप और एमएससी की छात्रा गुलशन बीरसांटा ने कोविड के बीच किसानों की समस्या को देखते हुए इस तकनीक पर कार्य शुरू किया। इसमें जंगली समेत किसानों की ओर से तैयार फूलों से हर्बल गुलाल बनाने की तकनीक विकसित की है। भारत में किसानों की ओर से उगाई जाने वाली प्रमुख फूल फसलें गुलाब, गेंदा और कार्नेशन हैं। तीनों का उपयोग भी रंग निकालने के लिए किया जा सकता है। इसके बाद इससे गुलाल तैयार किया जाता है।

ऐसे तैयार होता है रंग
फूलों की पंखुड़ियों को अलग कर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है। पानी में तब तक उबाला जाता है, जब तक पंखुड़ियां अपना पूरा रंग न छोड़ दें। इस मिश्रण को एक से दो घंटे के लिए ठंडा किया जाता है। इसके बाद अवशेषों को अलग करने के लिए तरल रंग के अर्क को छलनी से गुजारा जाता है। अर्क में ब्राइटनिंग एजेंट और साइट्रिक एसिड या नींबू का उपयोग किया जाता है। यह तरल रंग का अर्क अरारोट पाउडर के साथ मिलाया जाता है और 5-6 दिनों के लिए छाया में प्लास्टिक की चादरों पर सुखाया जाता है। अच्छी तरह से सूखने के बाद इसे पीसकर पेपर बैग में पैक किया जाता है। विभिन्न मोर्डेंट और डाई सहायकों की मात्रा को बढ़ाकर या घटाकर विभिन्न रंगों को तैयार किया जाता है।

किसानों के लिए वरदान होगी तकनीक
यह तकनीक किसानों के लिए वरदान साबित होगी। इसे सीखकर किसान रंग तैयार कर सकेंगे, जिससे वे अपने उत्पाद को एक पर्यावरण हितैषी उत्पाद में बदल सकते हैं। अपनी आय में भी बढ़ोतरी कर सकते हैं। – प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल, कुलपति, नौणी विवि