संस्कृत भाषा में बनाई गई इस कुंडली की लंबाई 314 फीट है। इसे देश की सबसे लंबी कुंडली माना जाता है, लेकिन इनती लंबी कुंडली बनाने और राजस्थान से उसका संबंध होने की कोई जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है। यह रहस्य आज भी बना हुआ है कि इतनी लंबी कुंडली क्यों बनाई गई थी।
117 साल पहले बनाई गई थी जन्म पत्री।
Rajasthan News: देश के ज्यादातर हिस्सों में बच्चे के जन्म के बाद कुंडली (जन्म पत्री) बनाने की परंपरा है। माना जाता है कि जन्म कुंडली से बच्चे के भविष्य और आचार-विचार सहित कई बातों का पता चल जाता है। ऐसे में परिवार के लोग जन्म के बाद पंड़ित जी से अपने बेटे-बेटी के लिए कुंडली बनवाते हैं, लेकिन राजस्थान के जोधपुर जिले के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में 117 साल पहले एक महिला कुंडली बनाई गई थी। इसकी लंबाई 314 फीट है। इनती लंबी कुंडली बनाने का रहस्य आज भी अनसुलझा हैं। माना जाता है कि यह कुंडली देश के सबसे लंबी कुंडली है।
दरअसल, राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर में कई प्राचीन ग्रंथ और पांडुलिपियां रखी हुईं हैं। जहां कई रिसर्चर रिसर्च करते हैं। शहर के इसी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में एक महिला यश कंवरी की कुंडली भी रखी हुई है। 117 साल पहले ओशान सिंह ने इस कुंडली को बनाया था।
ओशन सिंह ही यश कंवरी के पिता है। संस्कृत भाषा में बनाई गई इस कुंडली की लंबाई 314 फीट है। इस कारण इसे देश की सबसे लंबी कुंडली माना जाता है, लेकिन इनती लंबी कुंडली बनाने और राजस्थान से उसका संबंध होने की कोई जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है। ऐसे में यह रहस्य आज भी बना हुआ है कि आखिर इतनी लंबी कुंडली क्यों बनाई गई थी।
ग्रह नक्षत्रों के माध्यम से भविष्य दर्शाने वाली यश कंवरी की कुंडली दिखने में बेहद सुंदर और कलात्मक है। जिसमें सुंदर बेलबूटों को बॉर्डर के अलावा राशियों के अलग-अलग स्वरूपों को विभिन्न पशुओं के भाव और दशाओं के साथ वर्णन करने वाले चित्रों को भी बनाया गया है। जन्म पत्री में भाव-लाभ कुंड, दशम, शत्रु भाव और संतान भाव कुंडलिका के अलावा लग्न सहित जीवन की कई अन्य चीजों का भी विस्तार से उल्लेख किया गया है।
देश की सबसे बड़ी जन्म कुंडली। – फोटो : सोशल मीडिया
बता दें कि जोधपुर के राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान करीब 25 विषयों के दुर्लभ ग्रंथ संग्रहित हैं। जहां कई प्राचीन जन्म कुंडलियां भी रखी हुईं हैं। कई सालों से सैकड़ों साल पुरानी प्राचीन पाण्डुलिपियों और ग्रंथो को संग्रहण कर यहां रखा गया हैं। इन ऐतिहासिक धरोहरों की देखभाल विशेष तौर पर की जाती है।