वो दौर भी कमाल का था जब बच्चों के पास मोबाइल फोन, आई पैड, तरह तरह की गेम्स और आधुनिक यंत्रों की बजाए अच्छे-सच्चे दोस्त, बाहर जाने के बहाने, मैदान में खेले जाने वाले खेल, कॉमिक्स और ऐसी तमाम चीजें हुआ करती थीं. ये एक अच्छे बचपन की खास निशानियां थीं. इन्हीं तमाम चीजों में एक नाम आता है साइकिल का.
वही साइकिल जो बर्थडे गिफ्ट से लेकर क्लास में अच्छे नंबर लाने का लालच तक हुआ करती थी. ये वो समय था जब एक बढ़िया साइकिल किसी बच्चे के लिए सबसे बड़ा सपना हुआ करती थी. साइकिल को बिना चढ़े चलाने से शुरू हुआ सफर पहले कैंची और फिर काठी पर बैठ कर चलाने से खत्म होता था.
इसके बाद तो स्टंट्स का दौर शुरू होता था. कौन हाथ छोड़ कर साइकिल चला सकता है और कौन आंख बंद कर के. हमारे बचपन को खूबसूरत बनाने वाली इस साइकिल में भी एक खास नाम था जिसने हमारी साइकिल की ख्वाहिश को पूरा किया और साइकिलों की संख्या घटने नहीं दी. ये नाम था हीरो साइकिल्स. हीरो साइकिल पर बैठा बच्चा सच में खुद को हीरो समझता था.
कहते हैं एक बार हीरो साइकिल कंपनी में हड़ताल हो गई. साइकिलों का निर्माण एकदम से रुक गया. उस समय कंपनी के मालिक खुद मशीन चला कर साइकिल बनाने लगे. जब कंपनी के बड़े अधिकारियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उनका जवाब था कि “आप सब चाहें तो घर जा सकते हैं लेकिन मेरे पास ऑर्डर हैं और मैं काम करूंगा. अगर साइकिल निर्माण नहीं हुए तो एक वक्त के लिए डीलर समझ जायेंगे कि हड़ताल के कारण काम नहीं हो रहा है मगर उस बच्चे के मन को हम कैसे समझाएंगे जिसके माता-पिता ने उसके जन्मदिन पर उसे साइकिल दिलाने का वादा किया होगा. हमारी हड़ताल की वजह से ऐसे कई बच्चों का दिल टूटेगा. लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, मैं हर उस माता पिता का किया हुआ वादा पूरा करूंगा जिन्होंने अपने बच्चे को साइकिल दलाने का वादा किया है.”
ये शब्द थे हीरो साइकिल के मालिकों में से एक ओपी मुंजाल के. ये मुंजाल भाई ही थे जिन्होंने हीरो साइकिल को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा दिया.
पाकिस्तान से शुरू हुई हीरो के हीरोज की कहानी
ये कहानी शुरू होती है पाकिस्तान के कमालिया से. यहीं के रहने वाले बहादुर चंद मुंजाल और ठाकुर देवी के घर में पैदा हुए थे वे हीरो जिन्होंने आगे चलकर हीरो साइकिल को साइकिलों का सुपर हीरो बना दिया. इनके चार बेटे सत्यानंद मुंजाल, ओमप्रकाश मुंजाल, ब्रजमोहनलाल मुंजाल और दयानंद मुंजाल. बहादुर चंद मुंजाल एक अनाज की दुकान चलाकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे. सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि तभी सरकार का ये फरमान आया कि देश दो भागों में बंट रहा है. पाकिस्तान में रह रहे हिंदू और सिखों को भारत लौटना पड़ा. इस लाखों की भीड़ में मुंजाल भाई भी शामिल थे.
50 हजार का लोन लेकर शुरू किया हीरो का सफर
मुंजाल भाई बंटवारे के बाद पंजाब के लुधियाना आ बसे. यहां आने के बाद सबसे बड़ी समस्या रोजगार की थी. इसके लिए मुंजाल भाइयों ने गलियों और फुटपाथों पर साइकिल के पुर्जे बेचने का काम करने लगे. काम धीरे धीरे अच्छा चलने लगा, जिसके बाद मुंजाल भाइयों ने थोक में साइकिल पार्ट्स खरीद कर बेचने की बजाए खुद से साइकिल पार्ट्स बनाने का सोचा. इसके लिए इन्होंने 1956 में बैंक से 50 हजार रुपए का लों लिया और अपनी साइकिल पार्ट्स बनाने की पहली यूनिट लुधियाना में स्थापित की.
यहीं से शुरू हुआ Hero Cycles का सफर क्योंकि मुंजाल भाइयों ने अपनी कंपनी को यही नाम दिया था. कुछ ही समय में इन भाइयों को समझ आ गया कि साइकिल पार्ट्स बना कर बेचने से अच्छा है कि वह खुद से साइकिल निर्माण करें. इसके बाद हीरो साइकिल्स एक दिन में 25 साइकिलें बनाने लगीं. मुंजाल भाइयों और हीरो साइकिल्स की गाड़ी पटरी पर आ चुकी थी और धीरे धीरे उनकी साइकिल बनाने की स्पीड भी बढ़ने लगी. मात्र 10 सालों में उनकी तरक्की दिखने लागि. सन 1966 तक पहुंचते पहुंचते ये कंपनी साल के एक लाख साइकिल तैयार करने लगी.
1986 में हीरो ने रच दिया इतिहास
सफर यहीं नहीं रुका बल्कि आने वाले दस साल में इनकी साइकिल बनाने की क्षमता बढ़ कर सालाना पांच लाख से अधिक पहुंच गई. 1986 तक आते आते Hero Cycles ने हर साल 22 लाख से अधिक साइकिलों का उत्पादन कर एक नया इतिहास रच दिया था. हीरो अब साइकिल बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी थी. इनकी कामयाबी का अंदाजा आप इस बात से लगा लीजिए कि जो कंपनी कभी दिन के 25 साइकिल बना रही थी वो 1980 के दशक में हर रोज 19 हजार साइकिल तैयार करने लगी. के उत्पादन के साथ दुनिया की सबसे ब़़डी साइकिल कंपनी का दर्जा हासिल किया.
इसी क्षमता की कारण 1986 में Hero Cycles का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल उत्पादक कंपनी के रूप में दर्ज किया गया. साइकिल बाजार में 48 फीसदी हिस्सेदारी के साथ Hero Cycles भारत सहित मध्य पूर्व, अफ्रीका, एशिया और यूरोप के 89 देशों में साइकिल निर्यात करती है.
मुंजाल भाइयों की सोच ने बनाया इसे कामयाब
हीरो साइकिल की कामयाबी के पीछे मुंजाल भाइयों की सोच का बहुत बड़ा हाथ है. कंपनी बढ़ने के साथ साथ मुंजाल भाई अपने डीलर्स, वर्कर और ग्राहकों को साथ लेकर चले. कभी इनसे ऊपर अपने फायदे को नहीं रखा. सन 1990 एक ऐसा साल था जब साइकिल बाजार में हीरो ने दूसरी कंपनियों को बहुत पीछे छोड़ दिया था.
ऐसे में हीरो को पता था कि वह अपनी साइकिलों को किसी भी दाम पर बेचें और कितना भी मुनाफा कमाएं उनकी सेल डाउन नहीं होगी लीकीन इसके बावजूद उन्होंने अपनी कंपनी के फायदे में डीलर्स को हिस्सेदारी दी. ऐसी बातों ने कर्मचारियों और डीलर्स को हीरो साइकिल्स से बांधे रखा. इसी तरह साल 1980 में हीरो साइकिल का एक लोडेड ट्रक एक्सिडेंट के बाद जल गया.
ऐसे में किसी भी कंपनी को सबसे पहले अपने नुकसान के बारे में सोचना चाहिए लेकिन मुंजाल भाइयों ने इस घटना के तुरंत बाद ये पूछा कि ड्राइवर तो ठीक है ना ? इसके बाद उन्होंने मैनेजर को ऑर्डर दिया कि जिस डीलर के पास ये ट्रक जा रहा था उसे फ्रेश कंसाइनमेंट भेजा जाए क्योंकि इसमें डीलर की कोई गलती नहीं है. हमारे नुकसान की भरपाई वो क्यों करे.
आज भी होती है इनके मैनेजमेंट की तारीफ
हीरो साइकिल्स का मैनेजमेंट इतना शानदार था कि इसकी तारीफ बी.बी.सी. और वर्ल्ड बैंक ने भी की है. इसके साथ ही लंदन बिजनेस स्कूल और इंसीड फ्रांस में हीरो कंपनी पर entrepreneurship के लिए केस स्टडी किया जाता है. हीरो की सफलता किस स्तर पर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2004 में इसे ब्रिटेन ने सुपर ब्रांड का दर्जा दिया था. 14 करोड़ से अधिक साइकिलों का निर्माण करने वाली ये हीरो कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी का दर्जा हासिल कर चुकी है. इसके दुनिया भर मे 7500 से अधिक आउटलेट्स हैं जहां 30 हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं.
शुरू हुआ हीरो मोटर्स का सफर
साइकिल के अलावा मुंजाल ब्रदर्स ने हीरो ग्रुप के बैनर तले साइकिल कंपोनेंट्स, ऑटोमोटिव, ऑटोमोटिव कंपोनेंट्स, आईटी, सर्विसेज जैसे प्रोडक्ट भी तैयार किये. इनमें से कई प्रोडकस्ट हीरो मोटर्स के अधीन तैयार होते हैं. साइकिल की दुनिया में अपनी बादशाहत कायम करने के बाद हीरो ग्रुप ने हीरो मैजेस्टिक के नाम से टूव्हीलर बनाने की शुरुआत की.
इसके बाद इसने 1984 में हीरो ने जापान की दिग्गज दोपहिया वाहन निर्माता कंपनी Honda के साथ हाथ मिलाते हुए Hero Honda Motors Ltd की स्थापना की. इस कंपनी ने 13 अप्रैल 1985 में पहली बाइक CD 100 को लॉन्च किया. करीब 27 सालों तक एक साथ काम करने के बाद 2011 में ये दोनों कंपनियां अलग हो गईं और फिर हीरो ने शुरू की हीरो मोटोकॉर्प. फिलहाल ये कंपनी हर साल 75 लाख साइकिल बनाती है.
चले गए मुंजाल भाई
मुंजाल भाइयों की बात करें तो इनमें सबसे बड़े भाई दयानंद मुंजाल 1960 के दशक में इस दुनिया को अलविदा कह गए. वहीं अन्य तीनों भाइयों का निधन एक साल के भीतर ही हो गया. 13 अगस्त 2015 को ओमप्रकाश मुंजाल, 1 नवंबर 2015 को बृजमोहन लाल मुंजाल और 14 अप्रैल 2016 को सत्यानंद मुंजाल इस दुनिया से चल बसे. अब इस कंपनी की कामान ओमप्रकाश मुंजाल के बेटे पंकज मुंजाल के हाथ में है.