Hijab Verdict : वो तीन मूल संवैधानिक मुद्दे जिन पर बंट गए हिजाब विवाद की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के दोनों जज

हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच की राय मूल अधिकारों के मुद्दे पर एक दूसरे से उलट रही। पसंद की आजादी का अधिकार, धार्मिक क्रियाकलापों की आजादी का अधिकार और बंधुत्व के मामले में जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया का फैसला एक दूसरे के उलट रहा।

नई दिल्ली : कर्नाटक के सरकारी स्कूल, कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने गुरुवार को खंडित फैसला सुनाया। एक जज ने प्रतिबंध को सही ठहराया तो दूसरे ने गलत। तीन प्रमुख मुद्दों पर जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की राय एक दूसरे के उलट थी। ये मुद्दे हैं- पसंद की आजादी, धार्मिक क्रियाकलापों का अधिकार और बंधुत्व यानी भाईचारा। दो जजों की बेंच के खंडित फैसले का मतलब है कि अब मामला बड़ी बेंच के पास जाएगा जिसमें कम से कम तीन जज होंगे।

हिजाब पर फिलहाल क्या?
अब जबतक कि कोई ‘उचित बेंच’ जिसमें कम से कम तीन जज हों, इस मामले पर फैसला नहीं करती, कर्नाटक सरकार का हिजाब बैन का फैसला लागू रहेगा। राज्य सरकार ने 5 फरवरी को सरकारी शिक्षण संस्थानों में हिजाब समेत सभी तरह के धार्मिक पहनाओं को पर रोक का सर्कुलर जारी किया था। इस सर्कुलर को कर्नाटक हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने सही ठहराया था। 5 फरवरी से पहले राज्य के कई शिक्षण संस्थानों में स्टूडेंट हिजाब या भगवा शॉल पहनकर आने की जिद कर रहे थे जिसकी वजह से सर्कुलर लाना पड़ा।

जस्टिस हेमंत गुप्ता के फैसले की मुख्य बातें
16 अक्टूबर को रिटायर होने जा रहे जस्टिस हेमंत गुप्ता को फोकस इस सवाल के जवाब पर था- ‘क्या स्टूडेंट किसी सेक्युलर संस्थान में अपनी धार्मिक आस्था के हिसाब से बर्ताव कर सकते हैं?’ उन्होंने अपने फैसले को 11 हिस्सों में बांटते हुए संवैधानिक अधिकारों के आईने में इसका परीक्षण किया। जस्टिस गुप्ता ने समानता के अधिकार (आर्टिकल 14), अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पसंद का अधिकार (आर्टिकल 19), गोपनीयता और गरिमा का अधिकार (आर्टिकल 21) और धार्मिक क्रियाकलापों का अधिकार (आर्टिकल 25) के मद्देनजर मुस्लिम छात्राओं के सरकारी शिक्षण संस्थानों में जहां यूनिफॉर्म लागू है, वहां हिजाब पहनने के अधिकार के औचित्य पर विचार किया।
‘स्कूल में यूनिफॉर्म आर्टिकल 14 के तहत समानता की गारंटी’
स्कूल, कॉलेजों में यूनिफॉर्म को सही ठहराते हुए जस्टिस गुप्ता ने कहा, ‘इसका उद्देश्य यह है कि स्टूडेंट्स के बीच यूनिफॉर्म को लेकर समानता हो। यह सिर्फ एकरूपता को बढ़ावा देने और स्कूलों में सेक्युलर माहौल को प्रोत्साहित करने के लिए है। यह संविधान के आर्टिकल 14 के तहत जिस अधिकार की गारंटी मिली है, उसके हिसाब से है। लिहाजा धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर अंकुश को संविधान के भाग 3 (मूलभूत अधिकारों) के साथ पढ़ा जाना चाहिए जैसा कि आर्टिकल 25 (1) में अंकुश की बात कही गई है।’

‘कोई स्टूडेंट स्कूल में धार्मिक क्रियाकलाप के लिए नहीं जाता’
उन्होंने कहा कि कोई स्टूडेंट स्कूल में धार्मिक क्रियाकलाप के लिए नहीं जाता और इसलिए राज्य के पास सेक्युलर स्कूल परिसर के भीतर हिजाब पहनने को प्रतिबंधित करने की शक्ति है। उन्होंने कहा कि राज्य के फंड से चलने वाले सेक्युलर स्कूल में धार्मिक विश्वासों को नहीं थोपा जा सकता है। जस्टिस गुप्ता ने अपने फैसले में कहा, ‘यूनिफॉर्म को लागू करना अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन नहीं, बल्कि आर्टिकल 14 के तहत समानता के अधिकार को सुनिश्चित करता है।’

‘बंधुत्व को सिर्फ एक समुदाय के चश्मे से नहीं देखा जा सकता’
मुस्लिम पक्ष ने दलील दी थी कि मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने की इजाजत से दूसरे स्टूडेंट्स को सहिष्णुता और दूसरे धर्मों के प्रति सम्मान की सीख मिलेगी। इसे बंधुत्व का संवैधानिक लक्ष्य हासिल होगा। इस पर जस्टिस गुप्ता ने अपने फैसले में लिखा कि बंधुत्व एक आदर्श लक्ष्य है लेकिन इसे केवल एक समुदाय के चश्मे से नहीं देखा जा सकता। यह देश के सभी नागरिकों के लक्ष्य है भले ही उनकी जाति, लिंग और मजहब कुछ भी हो।

जस्टिस सुधांशु धूलिया के फैसले की मुख्य बातें

‘हिजाब अनिवार्य धार्मिक प्रथा है या नहीं, इसमें हाई कोर्ट का उलझना था गैरजरूरी’
दूसरी तरफ, जस्टिस सुधांशु धूलिया की राय अलग रही। उन्होंने कहा कि हिजाब अनिवार्य धार्मिक प्रथा है या नहीं, इसका इस विवाद से कोई मतलब ही नहं है। असली मुद्दा तो मुस्लिम लड़कियों के ड्रेस चुनने की आजादी के अधिकार का है। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट का इस गैरजरूरी सवाल में उलझना ठीक नहीं था कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं। जस्टिस धूलिया ने कहा कि हाई कोर्ट को राज्य सरकार के सर्कुलर की समीक्षा संविधान के आर्टिकल 19 के तहत मिले पसंद की आजादी के अधिकार के तहत करनी चाहिए थी।

क्या है बिजोय एम्मानुएल केस जिसके आधार पर दिया फैसला
जस्टिस धूलिया ने सुप्रीम कोर्ट के 1986 के बिजोय एम्मानुएल केस के इकलौते फैसले के आधार पर अपना फैसला सुनाया। दरअसल, उस केस में सुप्रीम कोर्ट ने यहोवा मत को मानने वाली 3 लड़कियों के स्कूल से निष्कासन को रद्द किया था। लड़कियों ने स्कूल में असेंबली के दौरान राष्ट्रगान नहीं गाया था, जिस वजह से उन्हें निष्कासित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि लड़कियों ने भले ही राष्ट्रगान का गायन नहीं किया लेकिन वो उस वक्त सम्मान में खड़ी हुई थीं। इसलिए इसे स्कूल के अनुशासन का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता।

‘लड़कियां हिजाब पहनना चाहती हैं, इसमें गलत क्या है’
जस्टिस धूलिया ने कहा, ‘सभी याचिकाकर्ता हिजाब पहनना चाहती हैं। क्या लोकतंत्र में यह मांग करना बहुत ज्यादा हो गया? यह पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता या स्वास्थ्य के खिलाफ कैसे हो गया? या संविधान के भाग 3 के किसी प्रावधान के खिलाफ कैसे हो गया?’ उन्होंने ये सवाल उठाते हुए राज्य सरकार के 5 फरवरी के सर्कुलर को रद्द कर दिया।

‘हिजाब बैन प्राइवेसी का उल्लंघन, गरिमा पर हमला और सेक्युलर शिक्षा से वंचित करना’
जस्टिस धूलिया ने कहा, ‘किसी लड़की को स्कूल के गेट में घुसने से पहले हिजाब उतारने को कहना तो सबसे पहले उसकी प्राइवेसी का उल्लंघन है, फिर यह गरिमा पर हमला है और आखिरकार यह उसे सेक्युलर एजुकेशन से वंचित करना है। ये साफ तौर पर भारतीय संविधान के आर्टिकल 19 (1), आर्टिकल 21 और आर्टिकल 25 (1) का उल्लंघन है।’

जस्टिस धूलिया ने कहा, ‘हिजाब पर प्रतिबंध का मतलब है कि हम एक लड़की को शिक्षा से मना कर रहे हैं। एक लड़की के लिए अब भी स्कूल गेट तक पहुंचना बहुत आसान नहीं है।…सवाल ये है कि क्या हम एक लड़की की जिंदगी को बेहतर बना रहे होते हैं जब हम महज इस आधार पर उसे शिक्षा से वंचित कर रहे हों कि वह हिजाब पहनती है।’