ईरान (Iran) में इस समय एक क्रांति की शुरुआत हो चुकी है। हिजाब के खिलाफ महिलाएं बड़े पैमाने पर प्रदर्शन कर रही हैं। इन प्रदर्शनों के बीच ही महासा अमीनी की मौत ने इसमें एक नया जोश भर दिया है। अब यहां महिलाएं अपने हिजाब को उतार कर फेंक रही हैं। माना जा रहा है कि यह प्रदर्शन देश में हिजाब की परंपरा को एक नए मोड़ पर लेकर जा सकता है।
तेहरान: ईरान में हिजाब के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों ने दुनिया को उस एतिहासिक पल की याद दिला दी जो बर्लिन की दीवार के गिरने का गवाह बना था। बर्लिन की दीवार साम्यवाद का प्रतीक बन गई थी। इस दीवार ने पूंजीवाद का एक चेहरा दुनिया को दिखाया था। अब बात करते हैं कि ईरान की जहां पिछले कुछ समय से हिजाब को लेकर लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। इन प्रदर्शनों की वजह से यह देश एक नई क्रांति का केंद्र बना हुआ है। हो सकता है आने वाले दिनों में यहां भी एक नया इतिहास लिखा जाए। यहां हिजाब को महिलाएं उस एक वजह के तौर पर देख रही हैं जो उनके व्यक्तित्व को कमजोर करता है। साथ ही साथ हिजाब व्यक्तिवाद के सिद्धांत के भी विपरीत है।
पहचान को छीनता है हिजाब
ईरान की महिलाओं का मानना है कि हिजाब उनसे उनकी पहचान को छीनता है। वो इसे एक ऐसी साजिश के तौर पर देखती हैं जो उन्हें अनुशासन की तरफ इस हद तक धकेले देता है कि सरकारें उनसे सवाल करने लगती हैं। ईरान के सारी में लगातार पांचवें दिन हिजाब जलाए गए हैं। उरमिया, पिरानशहर और केरमनशाह में तीन प्रदर्शनकारियों की मौत भी हो गई है जिसमें से एक महिला है।
इसके बाद भी यहां महिलाएं पीछे नहीं हटना चाहती हैं। माशा अमीनी की मौत के बाद से महिलाएं और भड़क गई हैं। वो लगातार हिजाब के कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं और मॉरल पुलिसिंग के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। ईरान में हिजाब कानूनों को भी एक क्रांति के बाद ही लागू किया गया था। अब यह कानून एक क्रांति की वजह से ही खबरों में है।
क्या कहता है हिजाब कानून
सन् 1979 में जब ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई तो उस समय सभी महिलाओं के लिए एक सख्त ड्रेस कोड लागू कर दिया गया। इस ड्रेस कोड के तहत उन्हें हिजाब से सिर ढंकने और ढीले कपड़े पहनने के लिए कहा गया। उन्हें ऐसे कपड़े पहनने को मजबूर किया गया जिससे सार्वजनिक स्थानों पर उनके शरीर का कोई हिस्सा न नजर आए। यहां की मॉरल पुलिस जिसे गश्त-ए-एरशाद कहा जाता है, उसे एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई। उसे जिम्मा दिया गया कि वह हिजाब न पहनने वाली हर महिला को घेरे और उससे इसकी वजह पूछे।
पुलिस पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी डाली गई कि हर महिला ‘सही’ कपड़ों में ही बाहर निकले। अधिकारियों को इतनी शक्ति दी गई कि वो नियमों का न मानने वाली महिलाओं को रोक लें और उनसे सवाल कर सके कि उनके बाल क्यों दिख रहे हैं, उनकी पैंट या फिर ओवरकोट बहुत छोटे हैं या तंग हैं, या फिर उन्होंने इतना मेकअप क्यों किया है? नियमों को न मानने वाली महिला को जुर्माना अदा करने के अलावा जेल या बेंत से मारने की सजा तक का प्रावधान किया गया।
साल 2014 से जारी है मुहिम
साल 2014 में ईरान की महिलाओं ने अपनी ऐसी फोटोग्राफ्स और वीडियोज को शेयर करना शुरू किया जो हिजाब के कानूनों के विपरीत थीं। ये महिलाएं दरअसल एक ऑनलाइन प्रोटेस्ट अभियान का हिस्सा थीं जिसे ‘माई स्टेलथी फ्रीडम’ नाम दिया गया था। बस यहीं से ईरान की महिलाओं को हिजाब के खिलाफ आवाज उठाने की ताकत मिली थी। कई तरह के आंदोलन चलाए गए जिसमें ‘व्हाइट वेडनेसडे’ और ‘गर्ल्स ऑफ रेवॉल्यूशन स्ट्रीट’ सबसे अहम है।
ईरान में इस समय जारी प्रदर्शन में पुरुष भी शामिल हैं। 16 और 23 साल के युवकों की मौत ने साबित कर दिया है कि हिजाब, ईरान में सिर्फ कट्टरपंथ की निशानी बनकर रह गया है। ईरान की बहादुर महिलाएं इस प्रदर्शन से जरा भी न तो थकी हैं और न ही उन्हें किसी तरह का कोई डर लग रहा है। बल्कि वह रोजाना शांतिपूर्ण तरीके से अपने हक की आवाज उठा रही हैं। युवा लड़कियां दीवारों पर ग्रैफिटी बना रही हैं और अमीनी का नाम लिख रही हैं।
सुप्रीम लीडर खुमैनी खामोश
महिलाओं ने अब यूरोप के देशों से अपील की है कि वो ईरान की सरकार को संभालें। महिला प्रतिनिधियों को हिजाब के साथ राजनयिक मीटिंग्स में शिरकत करने पर ईरानी महिलाएं पश्चिमी देशों को फटकार लगा रही हैं। हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन ईरान में किसी इतिहास से कम नहीं है। ईरान के सुप्रीम लीडर अली खुमैनी ने बुधवार को अपने पहले सार्वजनिक भाषण में इस पूरे विरोध प्रदर्शन पर कुछ भी कहने से साफ इनकार कर दिया।
वह तेहरान में सीनियर मिलिट्री लीडर्स को संबोधित कर रहे थे। उनके भाषण को सरकारी टीवी पर टेलीकास्ट किया गया था। लेकिन अगर ईरान में हिजाब कानून को खत्म किया जाता है तो करोड़ों महिलाओं के लिए यह आजादी का पल होगा तो दुनिया एक और इतिहास बनते देखेगी।