राजस्थान की शाही शराब: 100ML नीट से तैयार कर सकते हैं 30 लीटर, फिर भी अच्छे अच्छों की हैसियत से बाहर

Mahansar Heritage Wine: राजस्थान के महनसर की हैरिटेज शराब की दुनिया भर में डिमांड है। यहां की शराब को शाही माना जाता है। गंगानगर शूगर मिल में महनसर के शराब फॉर्म्यूले से ही वाइन तैयार की जाती है। हम महनसर की हैरिटेज वाइन के बारे में बता रहे हैं, जिसकी शराब प्रेमियों के बीच अलग ही डिमांड है।

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जयपुर: शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। नवभारत टाइम्स.कॉम शराब के साथ किसी भी किस्म के नशे का समर्थन नहीं करता है। लेकिन राजस्थान के शाही इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां की शराब का देश और विदेशों में काफी डिमांड रहा है। राजस्थान में राजशाही परिवारों के साथ यहां के शाही शराब की भी अपनी ही पहचान रही है। आज हम महनसर की हैरिटेज वाइन के बारे में बता रहे हैं, जिसकी शराब प्रेमियों के बीच अलग ही डिमांड है।

महेंद्र सिंह फैमिली की देन है हैरिटेज वाइन
महेंद्र सिंह परिवार के सदस्य दयाल सिंह शेखावत ने बताया कि हैरिटेज वाइन उनके ही परिवार की देन है। जखोड़ा गांव में रहने वाले दयाल सिंह का कहना है कि उनके परदादा करणी सिंह की बनाई शराब से ही महनसर की हैरिटेज वाइन फेमस हुई है। उन्होंने बताया कि दादू सा अपने पिता चंदन सिंह से कुछ अनबन होने के चलते गांव से चले गए थे। रास्ते में उनको एक महात्मा मिले, जिन्होंने दादू सा को अपने पास रखा। महात्मा ने ही कुछ आर्युवेदिक दवाइयों से करणी सिंह को आसव बनाने की विधियां बताई। इसके बाद करणी सिंह ने और भी ऋषियों से बातचीत करके कुछ प्रयोग किए और बाद में विभिन्न प्रकार के शराब का निर्माण शुरू किया। महनसर और आसपास के इलाकों में पहले शराब बनाने का काम कलाल समुदाय से आने वाले लोग करते थे। लेकिन करणी सिंह के इंट्रेस्ट के बाद राजघराने में भी शराब बनने लगी।

करणी सिंह ने ईजाद की 50 किस्म के शराब बनाने का फॉर्म्यूला
दयाल सिंह ने बताया कि उनके परिवार के पास आज भी करीब 50 किस्म के शराब बनाने की विधि है। इसमें सबसे प्रचलित है सौंफ की शराब। इसमें सौंफ के अलावा गुड़, रांग, मिश्री और दूध के मिश्रण से तैयार की जाती है। कुमार्यासव शराब बेहद शाही होती है। क्योंकि इसे बनाने में छह महीने से ज्यादा का वक्त लगता है। कुमार्यासव को ग्वारपाठा (एलोवेरा) भी कहते हैं। इस शराब को बनाने के लिए करीब 100 किस्म की दवाइयों को शराब में भीगोकर करीब छह महीने रखी जाती है। इसके बाद एलोवेरा का प्रयोग करके शराब डिस्टिलड होती थी। डिस्टिलड होने के बाद में करीब 50 तरह की दवाइयां पोटली के रूप में उस शराब में दो या चार दिन के लिए रखी जाती है।

100 ML से तैयार की जा सकती है 30 लीटर शराब
इसके अलावा कनकासव शराब की चर्चा इतिहास और किस्से कहानियों में खूब मिलती है। दयाल सिंह ने बताया कि कनकासव शराब दरअसल बेहद पावरफुल होती है। इसकी वजह यह है कि करणी सिंह ने 5 तरह के जहर से इसको तैयार किया था। यह बेहद कम मात्रा में भी हो तो पानी मिलाकर इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को परोसी जाने वाली शराब है। इसे झेलना सबके बस की बात नहीं होती है, इसलिए परिवार की ओर से इसका चलन बंद कर दिया गया था। उन्होंने बताया कि अगर 100 ML कनकासव शराब हो तो पानी में मिलाकर इससे करीब 20 से 30 लीटर शराब तैयार की जा सकती है।

गंगानगर शूगर मिल के साथ है करणी सिंह के परिवार की डील
बता दें कि वसुंधरा राजे सिंधिया की सरकार के दौरान करणी सिंह के परिवार का गंगानगर शूगर मिल के साथ एक कांट्रेक्ट हुआ था। इसके तहत महनसर राजघराने ने हेरिटेज शराब बनाने का फॉर्म्यूला गंगानगर शूगर मिल के साथ शेयर किया गया है। इस कॉन्ट्रेक्ट के तहत महनसर घराने की सौंफ और सेब-संतरा शराब के फॉर्म्यूले के तहत गंगानगर शूगर मिल शराब बनाने के लिए यूज करती है।
दयाल सिंह ने बताया कि करणी सिंह को कश्मीर राजघराने ने भेंट स्वरूप कस्तूरी भेंट की थी। इसके बाद करणी सिंह ने कस्तूरी के प्रयोग से चंद्रहास शराब तैयार की। फिलहाल चंद्रहास शराब का पेटेंट गंगानगर शूगर मिल के पास ही है। दयाल सिंह ने बताया कि अब उनका परिवार इसलिए शराब नहीं बना सकता है क्योंकि यह कानून के खिलाफ है। बिना लाइसेंस शराब बनाना जुर्म है, इसलिए उनका परिवार इससे दूर है। हालांकि उन्होंने कहा कि जब उनके दादा-परदादा शराब बनाते थे तब वह पूरी प्रक्रिया में गांव के कुछ लोगों की मदद लेते थे। वही उन्हीं मददगारों ने शराब बनाने के कुछ फॉर्म्यूले सीख लिए और बाद में प्रचारित कर दिया। इस वजह कुछ लोग इस पेशे में आज भी लगे हुए हैं।