हिमाचल : दुनिया को अलविदा कह गए “हीरो ऑफ कंचनजंघा” कर्नल प्रेम चंद डोगरा

कुल्लू, 05 अक्तूबर : पर्वतारोहण की दुनिया में “स्नो टाइगर” (Snow Tiger) के नाम से जाने जाने वाले कर्नल प्रेमचंद का निधन हो गया है। 1977 में सबसे मुश्किल मार्ग “द नॉर्थ ईस्ट स्पर” (The North East sper) से भारत (India) की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा (Kangchenjunga) के शिखर पर पहुंचने वाले वह दुनिया के पहले भारतीय थे। “हीरो ऑफ कंचनजंघा” (Hero of Kangchenjunga) कर्नल प्रेमचंद के निधन से पर्वतारोहण (Mountaineering) के एक युग का अंत हो गया है।

कर्नल प्रेमचंद ने मंगलवार रात कुल्लू (Kullu) में अपनी आखिरी सांस ली। ऐसा बताया जा रहा है कि वह पिछले कुछ समय से बीमार थे। लाहौल के लिंडर गांव के रहने वाले प्रेमचंद जनजाति संस्कृति व परंपराओं के अग्रणी पक्षधर रहे। लाहौल की वादियों में रहकर ही उन्होंने पहाड़ों पर चढ़ना शुरू किया, जिसमें आगे जाकर उन्हें इसमें एक अलग पहचान दी। उनके पहाड़ों के नापने के जज्बे व जूनून को देखते हुए उन्हें सेन में स्नो टाइगर (Snow Tiger) के नाम से अलंकृत  किया।  कर्नल प्रेमचंद उन पर्वतारोही में से एक थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन पर्वतारोहण में समर्पित कर दिया था। कर्नल प्रेमचंद ने अपने पूरे जीवन में लगभग 30 चोटियों को सफलतापूर्वक फतह किया।

प्रेमचंद दो बार माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) को फतह कर चुके हैं। 1984 में पहली भारतीय महिला सुश्री बिछेन्द्री पाल (Bichendri Pal)  को माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की तकनीक का प्रशिक्षण भी उन्होंने ही दिया था। भारतीय सेना (Indian Army) के साथ अपने कैरियर के दौरान उन्होंने भूटान, सिक्किम, गढ़वाल, कश्मीर, पूर्वी काराकोरम की कुछ सबसे ऊंची चोटियों को सफलतापूर्वक फतह किया।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि उनका पूरा जीवन साहसिक कार्यों के लिए समर्पित रहा। उनके निधन की खबर से पर्वतारोहण जगत में शोक की लहर है।
बता दें कि 1969 में 14000 फीट की ऊंचाई पर स्थित रोहतांग दर्रा को प्रेमचंद ने स्की (Ski) चलाते हुए अकेले ही पार कर दिया था।

       वह भारतीय डोगरा रेजीमेंट (Indian Dogra Regiment) से संबंध रखते है। इसी दौरान सेना और पर्वतारोहण के क्षेत्र में अद्भुत योगदान के लिए कई सम्मान भी  प्राप्त हो चुके हैं। इसमें कीर्ति चक्र, सेना मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल, जॉर्ज मेकग्रेगर मेडल, भारतीय पर्वतारोहण संस्थान द्वारा स्वर्ण पदक, भारतीय पर्वतारोहण संस्थान द्वारा रजत पदक व फ्रेंच मेडल के अलावा भी कई पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं।

   कर्नल प्रेमचंद अपने सम्मान के बारे में कहते थे कि पर्वत चढ़ने से ज्यादा जरूरी है कि आप पर्वतारोहण के क्षेत्र में क्या उदाहरण छोड़ के जा रहे हो और जिस संस्थान से जुड़े हो, उस संस्थान के लिए और देश के लिए क्या कर के जा रहे हो। इसलिए सभी युवा पर्वतारोहियों को संदेश देते हुए कहते हैं कि पर्वतारोहण को अपना जुनून बनाओ न की इसे मात्र अपने व्यवसाय का जरिया।