हिमाचल: जोगिंद्रनगर हर्बल गार्डन में ट्रायल सफल, बीज अंकुरण से तैयार होंगे अब रुद्राक्ष के पौधे

हिमाचल: जोगिंद्रनगर हर्बल गार्डन में ट्रायल सफल, बीज अंकुरण से तैयार होंगे अब रुद्राक्ष के पौधे

बीज अंकुरण माध्यम से पौधे तैयार करने में प्रदेश और देश में संभावित यह पहला सफल प्रयास है। पूर्व में इस तरह के वैज्ञानिक ट्रायल पर काम नहीं हुआ है।

रुद्राक्ष का पौधा।
रुद्राक्ष का पौधा।

प्रदेश में एयर लेयरिंग के बजाय बीज अंकुरण से अब रुद्राक्ष के पौधे तैयार होंगे। हर्बल गार्डन जोगिंद्रनगर और नेरी के वनस्पतिज्ञ (बॉटनिस्ट) पिछले काफी दिनों से बीज के माध्यम से रुद्राक्ष के अंकुरण व्यवहार का अध्ययन करने का प्रयास कर रहे हैं। जोगिंद्रनगर हर्बल गार्डन में इसका ट्रायल सफल रहा है। वहीं, हमीरपुर के नेरी गार्डन में भी इसके प्रयास जारी हैं। यहां 10 में से पांच बीज सफल अंकुरित हुए हैं। बीज अंकुरण माध्यम से पौधे तैयार करने में प्रदेश और देश में संभावित यह पहला सफल प्रयास है। पूर्व में इस तरह के वैज्ञानिक ट्रायल पर काम नहीं हुआ है।

अभी हर्बल गार्डन में रुद्राक्ष के मदर प्लांट (किसी पुराने पौधे) पर गुट्टी लगाकर यानी एयर लेयरिंग से रुद्राक्ष के पौधे उगाए जाते हैं। इसमें दूसरे पौधे पर रुद्राक्ष की जड़ें आने पर पॉलीबैग में शिफ्ट करके सीजन आने पर पौधे किसानों को उपलब्ध करवाए जाते हैं। अब रुद्राक्ष के बीज अंकुरित करके इसके पौधे तैयार करने में हर्बल गार्डन जोगिंद्रनगर के वनस्पतिज्ञों ने सफलता हासिल की है।

जोगिंद्रनगर के परियोजना अधिकारी एवं वरिष्ठ बॉटनिस्ट उज्ज्वल दीप शर्मा ने बताया कि रुद्राक्ष के फलों में बहुत कठोर पथरीला एंडोकार्प होता है। इसके कारण इसका खराब अंकुरण होता है। पिछले वर्षों में रुद्राक्ष के पौधे का एयर लेयरिंग विधि द्वारा पुनर्जनन किया गया। इसके परिणामस्वरूप पांच सफलता मिली। अपने जातीय और अन्य महत्वपूर्ण उपयोगों के कारण इस पौधे की अत्यधिक मांग है।

इसलिए बेहतर परिणाम के लिए बीजों के माध्यम से उसका पुनर्जनन करने की कोशिश की गई, जिसमें एयर लेयरिंग विधि से अधिक सफलता मिली है। हर्बल गार्डन नेरी के प्रभारी डॉ. कमल भारद्वाज ने कहा कि यहां 10 में से पांच बीज सफल हुए हैं। वैसे तो यहां एयर लेयरिंग से हर वर्ष 50 से 60 पौधे तैयार करके लोगों को उपलब्ध करवाए जाते हैं, लेकिन बीज के अंकुरण से तैयार होने वाले पौधे ज्यादा सफल हो रहे हैं। शीघ्र ही यहां इसके प्रयास तेज किए जाएंगे। संवाद

ऐसे किया प्रयोग 

उज्ज्वल दीप शर्मा ने बताया कि रुद्राक्ष के गिरे हुए फलों को अप्रैल में एकत्रित कर उन्हें छीलकर और एंडोकार्प को बहते पानी में साफ करके सुखाया गया। एंडोकार्प पंजे से फोड़ा गया। कुछ एंडोकार्प में एक ही बीज निकला। बीते 24 जून को इसे मिट्टी, रेत और गोबर की खाद के बराबर अनुपात के मिश्रण में प्लास्टिक की ट्रे में बीजा गया। बीज का पहला अंकुरण 20 जुलाई और अंतिम 30 जुलाई को देखा गया। अंकुरण शुरू होने में 28 दिन लगे और अंकुरण पूरा होने में 68 दिन लगे। 68 दिनों में 15 पौधे अंकुरित हुए। यह विधि एयर लेयरिंग की तुलना में बेहतर परिणाम देने वाली सिद्ध हुई। एयर लेयरिंग से पांच पौधों की सफलता दर्ज की गई है।

रुद्राक्ष का धार्मिक महत्व

शिव भगवान के वैदिक नाम रुद्रा से इस फल का नाम रुद्राक्ष पड़ा है। इसलिए हिंदू लोगों में यह भी धारणा है कि इसकी माला गले में डालने से भगवान शिव की कृपा से कई सकारात्मक चमत्कार देखने को मिले हैं। बौद्धिस्ट और सिख भी इसके अध्यात्मिक महत्व को भलीभांति जानते हैं।

रुद्राक्ष का औषधीय महत्व

इसका फल बाजार में महंगा बिकता है। एक मुखी से लेकर 21 मुखी रुद्राक्ष के फल आम तौर पर देखने में कई बार आए हैं, जिनकी प्रत्येक मुख के अनुसार अलग-अलग महंगी कीमत बाजार में पाई जाती है। इसको धारण करने से तनाव, मिर्गी का दौरा, माइग्रेन, अस्थमा या आर्थराइटिस जैसी बीमारियों में भी स्वास्थ्य लाभ देखने को मिला है।