इन दिनों राज्य के निचले क्षेत्रों में सेब के बगीचों में फूल खिल रहे हैं। विभिन्न क्षेत्रों में सिरफिड मक्खी को खूब देखा जा रहा है। राज्य में शुरू से ही जंगली मक्खी बगीचों तक पहुंचती रही है। जैसे-जैसे बागवानों ने कीटनाशकों और दवाओं का इस्तेमाल बढ़ाया, जंगली मक्खी दूर भागती चली गई है। आज भी जिन सेब बगीचों में जहरीले कीटनाशकों का छिड़काव कम होता है, वहां यह मक्खी परागण में मददगार साबित हो रही है। यह दुश्मन कीटों को अपना भोजन बनाती है और सेब के पेड़ों को विभिन्न रोगों से बचाती भी है। इस मक्खी पर कोई खर्चा नहीं होता है और यह अपना काम बखूबी करके जंगलों में लौट जाती है।
सेब बागवान पड़ोसी राज्यों से जुटाते हैं मौन बक्से
हिमाचल के बागवान हर साल सेब से पेड़ों में फूल खिलने और फलों की सेटिंग के लिए पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से मधुमक्खियों के बक्से किराये पर लाकर बगीचों में रखते हैं, ताकि फलों की अच्छी सेटिंग और सेब की पैदावार ज्यादा हो। 500 पेड़ों के लिए पांच-छह बक्से रखने पड़ते हैं।
सिरफिड मक्खी बागवानों को देती है मुफ्त सेवाएं
राज्य में सिरफिड मक्खी बागवानों को मुफ्त सेवाएं देती है और इसके बदले बागवानों को सेब उत्पादन अधिक मिलता है। इसके अलावा सेब की पैदावार अच्छी होने पर अधिक दाम मिलते हैं।
गुसैल सिरफिड मक्खी ठंड कर सकती है बर्दाश्त
बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एसपी भारद्वाज ने बताया कि यह मक्खी परागण में मदद करती है और कई बागवान इनके रुकने की व्यवस्था भी करते हैं। यह मक्खी गुसैल होती है और डंक भी मारती है। यह ठंड बर्दाश्त कर सकती है।