सूबे में क्षेत्र विशेष को दर्शाती वेशभूषा। हाथों में चंवर या रुमाल। बांसुरी, ढोल, नगाड़ों, रणसिंघा, करनाल और शहनाई की मधुर धुन पर झूमते और नाजुक अंदाज में घुटने झुका नाटी डालते पहाड़ के लोग हर पर्व में उल्लास के रंग भरते हैं।

नाटी लोकनृत्य हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का एक प्रतिबिंब है। इस समृद्ध परंपरा के बिना देवभूमि का लोक जीवन अधूरा है। सूबे में क्षेत्र विशेष को दर्शाती वेशभूषा। हाथों में चंवर या रुमाल। बांसुरी, ढोल, नगाड़ों, रणसिंघा, करनाल और शहनाई की मधुर धुन पर झूमते और नाजुक अंदाज में घुटने झुका नाटी डालते पहाड़ के लोग हर पर्व में उल्लास के रंग भरते हैं। लोक नृत्य की इस विधा की विशेषता है कि यह हमेशा माला में नाची जाती है। मतलब, माला की गोलाई की तरह गोल-गोल घूमकर की जाती है। जिसमें अगुआ नृतक या नर्तकी के साथ पैरों और हाथों की गति का अनुसरण कर उसके पीछे सभी नाचते हैं। देवभूमि के इतिहास में नाटी की उत्पत्ति का कहीं स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। ऐसी मान्यता है कि नाटी प्राचीन काल में देवी-देवताओं के समय से चली आ रही है। हिमाचल में नाटी लोकनृत्य कई प्रकार के हैं। कुल्लू में कुल्लवी, लाहुल-स्पीति में लाहुली, पांगी में पंगवाली, भरमौर में गादी और डंडारस, किन्नौर में कायंग, शिमला में महासुवीं और चौहारी, सिरमौर में सिरमौरी समेत मंडी के ऊपरी क्षेत्रों में सराजी, सुकेती, ढीली नाटी आदि नाचने की विशेष परंपरा है।
क्षेत्र और परिवेश के आधार पर नर्तकों के पहनावे लय व ताल और गीतों में भिन्नता के कारण नाटी के विविध स्वरूप में अलग-अलग मिलते हैं, जो अपना-अपना क्षेत्रीय प्रभाव लिए हुए हैं। नाटी लोकनृत्य का हिमाचल के ऊपरी क्षेत्रों में अधिक प्रचलन है। यह देवी देवताओं को रिझाने, मनोरंजन या हर खुशी को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। इस सांस्कृतिक विरासत से लोग आधुनिकता की चकाचौंध में अटूट विश्वास के साथ जुडे हैं। मेले, धार्मिक आयोजन, शादी ब्याह, राजनीतिक जलसा या कोई भी खुशी का पल, नाटी के बिना सब फीका है। देवी-देवताओं को रिझाने के लिए उनकी पूजा के समय देवलु देवनाटी भी डालते हैं। बजंतरी देव ध्वनियां पारंपरिक वाद्य यंत्रों से छेड़ते हैं और देवलु देवरथों के साथ झूमते गाते सुख समृद्धि की कामना करते हैं। ऐसे में नाटी का नाम आते ही आंखों के सामने एक ताल पर झूमते पारंपरिक पोशाकों में मुस्कुराते पहाड़ी नजर आते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्तमान दौर में भी नाटी सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्य है। लेकिन, इंटरनेट और ग्लैमर से भरी भावी पीढ़ी भी इन लोकनृत्यों को इसी तरह संजो कर रखे, इसके लिए मंथन और प्रयास की कहीं अधिक जरूरत है।
हर क्षेत्र की प्रतीकात्मक हिमाचली टोपी भी खास पहचान
नाटी प्राचीन अंदाज में आज भी बजंतरियों के साथ लोगों के एक समूह द्वारा प्रदर्शित की जाती है। नृत्य समूह में पुरुष और महिला दोनों सम्मिलित होते हैं, जिसका नेतृत्व प्राय: चंवर पकड़े एक पुरुष करता है। हाथ से हाथ पकड़कर नृत्य समूह में सबसे आगे चलने वाले पुरुष के नृत्य अंदाज की पोशाक गद्दी या हिमाचली विविधता को दर्शाती है। पुरुष ऊनी वस्त्र पहनते हैं। पीठ के निचले हिस्से पर लंबे कमरबंद बंधे होते हैं। अभी भी अपने क्षेत्र के हिसाब से प्रतीकात्मक हिमाचली टोपी नाचने वाले पहनते हैं। टोपी के ऊपरी हिस्से पर फूल लगाए जाते हैं। दूसरी ओर, महिलाएं चूड़ीदार, चोला, गहने पहनती हैं और रंगीन स्कार्फ से अपना सिर ढकती हैं, जिसे धाटू कहते हैं। बजंतरी वाद्य यंत्र से खास संगीत बजाते हैं। कुछ नाटियों में महिलाएं-पुरुष, बच्चे-बूढ़े सभी भाग ले सकते हैं। सभी एक-दूसरे का हाथ पकड़कर पैर आगे पीछे रखते हुए और लोक ध्वनियों की लय के अनुसार शरीर के अन्य अंगों को हिलाते हुए गोल चक्कर बनाकर नाटी करते हैं, जबकि कुछ में केवल पुरुष या केवल महिलाएं भाग लेती हैं।
लोकनृत्य नाटी के विविध रंग
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मंडी की नाटी
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शिमला की नाटी
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चंबा की नाटी
सिरमौरी नाटी
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किन्नौरी नाटी के कायल थे दिवंगत वीरभद्र, सराजी नाटी सीएम जयराम की पहली पसंद
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बिना नाटी सब आयोजन नीरस: डा. कृष्ण लाल सहगल
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