2022-09-01
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कैप्सीकम का ऐसे पड़ा शिमला मिर्च नाम
शिमला मिर्च से ऐसा प्रतीत होता है कि यह सबसे पहले शिमला में ही उगी होगी। कैप्सीकम यानी शिमला मिर्च मूल रूप से दक्षिणी अमेरिका की एक सब्जी है। वहां सदियों से इसकी खेती होती है। अंग्रेज जब भारत में आए तो कैप्सीकम का बीज भी साथ लेकर आए। उन्होंने शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया तो यहां की पहाड़ों की मिट्टी और मौसम इसे उगाने के लिए अनुकूल था। इसके बाद यहीं इसकी खेती शुरू हुई। तभी लोगों ने इसका नाम शिमला मिर्च रख लिया। आज इसे पूरे भारत में शिमला मिर्च के नाम से ही जाना जाता है। अब किसान लाल और पीली शिमला मिर्च की भी खेती कर रहे हैं, जिसके उन्हें अच्छे दाम मिल रहे हैं।
कांगड़ा चाय ने भी बनाई प्रदेश में नई पहचान
हिमाचल प्रदेश में चाय उत्पादन के अंतर्गत 2,310,71 हेक्टेयर क्षेत्र आता है। इसमें वर्ष 2020-21 के दौरान 11,45 लाख किलोग्राम चाय का उत्पादन हुआ है। चाय की खेती मुख्य रूप से कांगड़ा, चंबा और मंडी जिलों में की जाती है। राज्य में करीब 6,000 चाय उत्पादक हैं।
केंद्र और प्रदेश सरकारों ने दवाओं और उर्वरकों पर सब्सिडी खत्म कर दी है। वर्ष 1958 में विदेशों से सेब का आयात बंद हुआ था लेकिन वर्ष 1990 में इसे दोबारा खोल दिया गया। अब फ्री ट्रेेड शुरू हो गया है। हमारा मुकाबला भारतीय मंडियों मेें अटे पड़े अमेरिका, ईरान, तुर्की और अफगानिस्तान के सेब है। इन देशों में 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन हो रहा है जबकि हमारे यहां मात्र चार से पांच टन प्रति हेक्टेयर सेब उत्पादन किया जा रहा है। प्रदेश में सेब बागवानी को बागवानों ने अपने बूते खड़ा किया है। हिमाचल प्रदेश में 1971-72 में बागवानी विभाग बना है, लेकिन सेब बागवानी की उन्नति के लिए इसकी कोई विशेष उपलब्धि नहीं है।
सेब ही नहीं अनार, नाशपाती, कीवी और खुमानी की पैदावार में भी हिमाचल आगे
सेब के अलावा हिमाचल प्रदेश अब अनार, नाशपाती, कीवी, खुमानी और अन्य फलों के उत्पादन के साथ ही फलोत्पादन मेें आगे बढ़ रहा है। यहां पर हर तरह की भौगोलिक विशेषताएं हैं और कई तरह के फलों के उत्पादन के लिए अनुकूल जलवायु भी है। यानी मैदान भी हैं तो गगनचुंबी पहाड़ भी हैं। लगभग साढ़े नौ लाख से अधिक परिवार सीधे तौर पर बागवानी से जुड़े हैं। हर साल अकेले सेब का करीब 5,000 करोड़ से अधिक का कारोबार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर होता है। 11 लाख से अधिक लोगों का रोजगार सेब और अन्य फलों के उत्पादन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा है।
हिमाचल प्रदेश में फल उत्पादन की स्थिति, लाख मीट्रिक टन में
फल वर्ष 2018-19 2019-20 2020-21 2021-22 2022-23 संभावित
सेब 3.68 7.15 4.81 6.02 7.00
अन्य समशीतोष्ण फल 0.37 0.49 0.40 0.35 0.45
नींबू प्रजाति के फल 0.29 0.32 0.33 0.10 0.30
अन्य उष्ण कटिबंधीय फल 0.56 0.43 0.64 0.48 0.50
कुल 4.95 8.45 6.24 6.97 8.25
अगर ऐसा नहीं होगा तो उसका उत्पादन कहां से होगा। इनपुट भी अंतराष्ट्रीय स्तर का होना चाहिए। वैज्ञानिक बैकअप भी चाहिए। पोस्ट हार्वेस्टिंग तकनीक भी होनी चाहिए। सेब का 30 से 40 भाग है, जो हर साल खराब होता है। यह दुनिया में प्रोसेसिंग में जाता है। 60 फीसदी बाजार में बिकता है। इसके लिए पोस्ट हार्वेस्टिंग तकनीक होनी चाहिए। सरकार प्रोसेसिंग कर रही है। मार्केटिंग इनसे हो नहीं रही। इस बारे में इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को बुलाए जाने की जरूरत है। सीए स्टोर होने चाहिए। सेब की फसल ऐसी है, जिसे 300 दिनों तक बेचा जा सकता है। हमें एमएसपी नहीं एमआरपी चाहिए। बागवान पेटियों पर एमआरपी लिखे तो बेहतरीन व्यवस्था होगी। सीए स्टोर इतने बनने चाहिए कि जिनमें तीन करोड़ पेटियां स्टोर की जा सकें। एपीएमसी मार्केटिंग फीस लेकर इन्हें केवल सड़कों पर खर्च कर रही है। इससे ही आधारभूत ढांचा तैयार किया जाना चाहिए। अभी बार्गेनिंग पावर आढ़ती और खरीदार के बीच में है, जब तक ये बागवान के हाथ मेें नहीं आएगी तो वे ऊपर नहीं उठ पाएंगे।– हरिचंद रोच, प्रगतिशील बागवान
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