हिंदी दिवस के आयोजन के सबसे बड़े केंद्र शिक्षण संस्थानों में पठन-पाठन और शोध के क्षेत्र में मातृभाषा हिंदी भाषा को अब तक उचित स्थान नहीं मिल सका है। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला में पिछले दो वर्षों में महज 15 फीसदी शोध कार्य ही हिंदी भाषा में हो सका है।
हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए आज देश भर में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रा है। हिंदी दिवस के आयोजन के सबसे बड़े केंद्र शिक्षण संस्थानों में पठन-पाठन और शोध के क्षेत्र में मातृभाषा हिंदी भाषा को अब तक उचित स्थान नहीं मिल सका है। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला में पिछले दो वर्षों में महज 15 फीसदी शोध कार्य ही हिंदी भाषा में हो सका है। 85 फीसदी शोध कार्य अंग्रेजी या अन्य भाषाओं में हुआ है। विभिन्न संस्थानों की ओर से शोध कार्य को समय-समय पर प्रकाशित करने वाली संस्था शोधगंगा से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2020 और 2021 में कुल 44 शोधार्थियों ने पीएचडी या एमफिल पूरी की। इनमें से सबसे ज्यादा 35 शोधार्थियों ने अंग्रेजी भाषा में अपना शोध कार्य पूरा किया है।
वहीं, महज सात शोधार्थियों ने अपना शोध कार्य मातृभाषा हिंदी में किया। बाकी दो शोधार्थियों ने अपनी थीसिस पंजाबी भाषा में जमा करवाई है। भाषा विशेषज्ञों का कहना है कि शोध हमारे ज्ञान का विस्तार करता है। यह मानव समाज की समस्याओं के हल का रास्ता सुझाता है। शोध से तार्किक और समीक्षा की दृष्टि मिलती है। इसके अलावा शोध बदलती परिस्थितियों में तथ्यों की नए सिरे से व्याख्या करना सिखाता है। वहीं, मातृभाषा भाषा किसी भी विषय को समझने या अभिव्यक्त करने का सबसे सशक्त एवं सरल माध्यम होती है। ऐसे में शोध के क्षेत्र में यदि मातृभाषा हिंदी भाषा को बढ़ावा मिले तो सामाजिक समस्याओं को दूर करने और सामाजिक चिंतन-मनन को नई दृष्टि मिलेगी। इसके लिए अब अकादमिक जगत को अपनी भूमिका को नए सिरे से रेखांकित करना होगा।