कहते हैं भाषा किसी की मोहताज नहीं होती, न देश, न परदेस, न जात-पात, न धर्म और न कोई समुदाय. कौन सी भाषा कब किसकी जुबान पर चढ़ जाए कोई नहीं जानता. कुछ ऐसी ही कहानी है हिन्दी का प्रचार प्रसार करने वाली संस्था केंद्रीय हिंदी संस्थान और उसके संस्थापक की. जी हां, केंद्रीय हिंदी संस्थान आज देश के अलावा विदेशियों को भी हिंदी भाषा की शिक्षा देता है. इसकी स्थापना के पीछे किसी हिंदीभाषी साहित्यकार या हिंदी-सेवक का नहीं, बल्कि एक तेलगू भाषी आंध्रप्रदेश के निवासी डॉ. मोटूरि सत्यनारायण का योगदान रहा.