Hiroshima Day 6th august: दूसरे विश्वयुद्ध में जापान को रोकने के लिए अमेरिका ने उसके पांच शहरों पर परमाणु हमले की योजना बनाई थी। छह अगस्त 1945 को पहला हमला हिरोशिमा पर हुआ और 9 अगस्त को दूसरा हमला नागासाकी पर।
इनोला गे के पायलट थे 509 कंपोजिट ग्रुप के कर्नल पॉल टिबेट्स। हिरोशिमा पहुंचने से पहले कर्नल टिबेट्स इनोला गे को ऑटो पायलट पर सतह के बहुत नजदीक उड़ा रहे थे, ताकि जापानियों के रेडार से बच सकें। टारगेट एरिया पर पहुंचते ही इनोला गे ने तेजी से ऊंचाइयों की ओर उड़ान भरी। 31 हजार फीट पर पहुंच कर टिबेट्स ने नीचे देखा।
अब तक नहीं हुए थे हिरोशिमा पर हमले
इतनी ऊंचाई से नीचे कुछ दिखाई तो नहीं दिया लेकिन उस समय सुबह सवा आठ बजे की धूप खिली हुई थी। जापानी सैनिक परेड ग्राउंड में वर्जिश कर रहे थे। लोग साइकिलों से इधर-उधर जा रहे थे, इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। पूरा शहर जिंदगी से भरा था। दूसरे विश्व युद्ध में अब तक हिरोशिमा पर हवाई हमले नहीं हुए थे।
साढे़ चार हजार किलो वजनी बम
हमले इसलिए नहीं हुए क्योंकि अमेरिकियों ने 1945 की अप्रैल में ही तय कर लिया था कि जिन शहरों पर परमाणु हमले होने हैं वहां पहले कोई हवाई हमले न किए जाएं ताकि परमाणु हमलों के बाद हुई तबाही का सही-सही आंकलन और विश्लेषण किया जा सके। बहरहाल… कर्नल पॉल टिबेट्स ने रिलीज बटन दबाया और करीब साढे़ चार हजार किलो वजनी यूरेनियम गन टाइप बम ‘लिटिल बॉय’ हिरोशिमा के ऊपर गिरने के लिए रवाना हो गया।
टिबेट्स को डर था कि 31 हजार फीट की ऊंचाई पर भी परमाणु धमाके के शॉक वेव से उनके हवाई जहाज को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए बम फायर करते ही उन्होंने अपने हवाई जहाज को आसमान की ऊंचाइयों में झोंक दिया।
43 सेकंड बाद जापान की धरती पर तबाही
ठीक 43 सेकंड बाद लिटिल बॉय हिरोशिमा के परेड ग्राउंड से 1900 फीट की ऊंचाई पर हवा में फट गया। मानों सूरज के देश जापान के शहर हिरोशिमा के आसमान में सैकड़ों सूरज एक साथ फट गए हों, इतना तेज उजाला हुआ। यह रोशनी एकदम सफेद थी, आज के फ्लैशबल्ब जैसी। रोशनी इतनी तेज थी कि जो बच गए उनके शरीर पर उनके कपड़ों के पैटर्न छप गए थे। शवों की परछाइयां खंडहर दीवारों पर उकेर दी गई थीं। पंछी हवा में ही राख हो गए, ग्राउंड जीरो के 6400 फीट के दायरे में हर चीज जलकर खाक हो गई थी। कुछ एक इमारतें ही बचीं थीं। वह भी खंडहर।
इनोला गे तक पहुंची धमक
धमाके की धमक साढे अठारह किलोमीटर की ऊंचाई पर हवा में मौजूद इनोला गे तक भी पहुंची। विमान में मौजूद क्रू ने समझा उनके जहाज से भी कुछ आकर टकराया है। जब जमीन से टकरा कर उठी सेकंड शॉक वेव ने इनोला गे को हिला दिया तो कर्नल टिबेट्स ने पीछे नीचे झांक कर देखा। नीचे वही ऐतिहासिक बदसूरत धुएं और आग का गुबार दिख रहा था जिसे मशरूम क्लाउड कहते हैं।
डेढ़ लाख लोग मारे गए
तेज गर्मी, शॉक वेव, उड़ते हुए मलबे की टक्कर और परमाणु विकिरण की वजह से ग्राउंड जीरो के आधे मील की दूरी में मौजूद 10 में से 9 लोग मारे जा चुके थे। शहर की केवल 10 फीसदी इमारतें बची थीं। अनुमान था कि एक से डेढ़ लाख लोग इस हमले में मारे गए। शहर के 100 मील दूर भी धुएं का गुबार देखा जा सकता था।
15 अगस्त को जापान ने किया सरेंडर
लेकिन युद्ध की विभीषिका यहीं नहीं थमी, तीन दिन बाद, यानि 9 अगस्त को जापान के दूसरे शहर नागासाकी पर एक और बम ‘फैट बॉय’ गिरा। इसमें करीब 80 हजार लोग मारे गए। हमले से टूटे हुए जापान ने 15 अगस्त 1945 को हार मान ली वरना कोकुरा, योकोहामा और नीलगाता पर अगले परमाणु हमले होते।