ज़्यादातर लोगों के लिए साउथ इंडियन कुज़ीन का मतलब होता है- इडली और डोसा. जो खाने के शौक़ीन होते हैं या फ़ूडीज़ को ये अच्छे से जानते हैं कि साउथ इंडियन कुज़ीन मतलब सिर्फ़ इडली या डोसा नहीं होता! ख़ैर, फ़ूड का सामान्यीकरण करनेवालों पर फिर किसी दिन बात की जाएगी! अगर कुछ समझ नहीं आता और बाहर का खाने बहुत मन होता है तो अक़सर हम साउथ इंडियन कुज़ीन का रुख करते हैं. न बीमार पड़ने की टेंशन और जिभ का स्वाद भी बदल जाता है. और बात ऑर्डर करने की हो तो हम इडली या डोसा ही ऑर्डर करते हैं. एक तरफ़ सफ़ेद रुईनुमा इडली तो दूसरी तरफ़ कुरकुरा गरमा-गरम डोसा. इडली पर हम पहले बात कर चुके हैं, अब बारी से डोसे की
दक्षिण भारतीय कुज़ीन का हिस्सा (और इडली का साथी) डोसा के आविष्कार से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं.
Indian Mirror की मानें तो कन्नड़ तमिल, तेलुगू और मलयालम, हर भाषा में डोसा के लिए लगभग एक जैसा ही नाम है. डोसा न सिर्फ़ भारतीय राज्यों बल्कि श्रीलंका, मलेशिया और सिंगापुर के बाशिंदों के बीच भी मशहूर है.
डोसा का इतिहास
डोसा कहां से आया इस पर अभी तक सटीक जानकारी नहीं है. फ़ूड हिस्टोरियन्स के बीच इस विषय पर मतभेद है. इतिहासकर, पी.थनकप्पन का कहना है कि इसका जन्म उडुपी, कर्नाटक में हुआ, वहीं फ़ूड हिस्टोरियन, के.टी.अचार्य कहते हैं कि 1000 ईस्वी में ही डोसा का उल्लेख संगम साहित्य में मिलता है. हालांकि तमिल डोसा मोटा और नरम था, कर्नाटक में बना डोसा कुरकुरा और पतला था.
12वीं शताब्दी के संस्कृत विश्वकोश, मनसोल्लास में डोसा का ज़िक्र मिलता है. इसे कर्नाटक के राजा सोमेश्वर तृतीय के शासनकाल में लिखा गया था.
एक ब्राह्मण ने बनाया पहली बार डोसा?
जैसा कि पहले बताया गया है डोसा के आविष्कार या उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. Slurrp के एक लेख की मानें तो डोसा सबसे पहले कर्नाटक में बनाया गया. उडुपी के एक ब्राह्मण का ध्यान धार्मिक कर्म-कांडों से हट गया और उसके मन में मदिरा पान करने की तीव्र इच्छा जागी. चावल को गलाकर और सड़ाकर उसने घर पर ही मदिरा बनाने की कोशिश की लेकिन वो सफ़ल नहीं हो पाया. इस चावल को उसने पीसकर एक तवे पर डालकर एक व्यंजन बनाया. मदिरा और मांस का सेवन पाप कर्म माना जाता है. इस प्रचलित कथा का विश्वास करें तो ‘दोष’ से ‘डोसा’ का जन्म हुआ.
मैसूर के राजा के रसोई में बनी?
डोसा से जुड़ी एक और कहानी प्रचलित है. मैसूर के राजा ने एक त्यौहार का आयोजन किया. त्यौहार के समापन के बाद बहुत सारा भोजन बच गया. महाराजा ने अपने रसोइयों को निर्देश दिया कि खाने की बर्बादी नहीं होनी चाहिए. कहते हैं राजा के रसोइयों ने बचे-कुचे खाने से मसाले और खूब सारा घी डालकर डोसा बनाया और आलु के साथ परोसा.
मसाला डोसा के पीछे की अजीबो-ग़रीब कहानी
अगर कभी ग़ौर किया हो तो कहीं डोसा त्रिकोण तो कहीं लंबे तो कहीं अंदर कुछ भरकर परोसा जाता है. एक लंबे समय तक डोसा में मसाला नहीं था और ये सादा या प्लेन ही बनाया जाता था. The Socians के एक लेख के अनुसार, पहले प्लेन डोसा को आलु की तरी वाली सब्ज़ी के साथ परोसा जाता था. ये दक्षिण भारत के होटल, मेस, कैंटीन में नाश्ते में परोसा जाता था. पहले डोसा में प्याज़ नहीं पड़ता था. अब अगर आलु कम पड़ जाए तो रसोइया क्या करेगा? प्याज़ डालकर तरी की मात्रा बढ़ाएगा? लेकिन तब प्याज़ खाना पाप के सामान था! ऐसे में रसोइयों ने आलु में प्याज़ मिलाकर उसे डोसे के अंदर ही भरकर बनाना शुरु किया. और ऐसे डोसे में मसाले ने एंट्री मार ली.
आज अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से डोसा बनाया जाता है. कहीं सांभर और चटनी के साथ परोसा जाता है तो कहीं इडली पोड़ी (एक मसाले का मिश्रण) के साथ. एक्सपेरिमेंट करते हुए लोग डोसा में पनीर, चीज़, चॉकलेट, आइसक्रीम सबकुछ भरने लगे हैं. लेकिन जो बात मसाला डोसा, सांभर और बादाम चटनी में है वो किसी और में कहां?