कहीं जलेबी के साथ, कहीं चाय के साथ, कहीं छोले मिलाकर, तो कहीं चाट बनाकर. कहीं तो ऊपर से दही और हरी, लाल चटनी डालकर. कहीं ये समोसा बन जाता है तो कहीं सिंघाड़ा, तो कहीं कुछ और नाम.
चाहे सुबह का नाश्ता हो, शाम का स्नैक्स या परीक्षा हॉल में इन्विजिलेटर (Invigilator) का रिफ़्रेशमेंट! समोसे को हर जगह प्रेम से अपनी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बनाया गया है! आप चाहे कितने भी ‘बर्गर-पिज़्ज़े’ खा लें, समोसा के लिए हिन्दुस्तानियों की चाहत कभी कम नहीं होगी.
समोसे की तारीफ़ और हमारी ज़िन्दगी में उसकी एहमियत के लिए कुछ उद्धरण काफ़ी हैं:
1. 1997 में आई बॉलीवुड फ़िल्म ‘Mr. & Mrs. Khiladi’ का गाना, जब तक रहेगा समोसे में आलु, तेरा रहेगा ओ मेरी शालू
2. और एक बहुत ही मशूर चुनावी नारा- जब तक रहेगा समोसा में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू (लालू यादव) तक बन गए.
जिस देश की फ़िल्मी दुनिया से लेकर राजनैतिक संसार तक समोसा घुस चुका हो, वहां अब कोई दलील लिखी-पढ़ी या सुनी जानी चाहिए क्या?
सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष यात्रा में समोसे साथ लेकर गई थीं
जानकर हैरानी और गर्व दोनों होगा. भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) अंतरिक्ष यात्रा के दौरान अपने साथ समोसा लेकर गई थीं. नहीं ये अतिश्योक्ति अंलकार नहीं हक़ीक़त है. Outlook से हुई बात-चीत में विलियम्स ने ख़ुद ये बात कही.
समोसे को सिर्फ़ एक स्ट्रीटफ़ूड का नहीं बल्कि ऐतिहासिक कलाकृति का दर्जा ही मिलना चाहिए. जिस तरह इस दिव्य खाद्य पदार्थ का बाहर का कुरकुरा हिस्सा टूटता है, मन के सारी भ्रांतियां भी टूटती मालूम होती हैं!
आख़िर ये कुरकुरी आलूदार चीज़ आई कहां से?
समोसे की बनावट जिस तरह सिप्लाइफ़ाइड लगती है, इसका इतिहास उतना ही पेंचींदा है. BBC के लेख की मानें तो जब समोसा अभी हम चखते हैं उसमें सदियों का स्वाद है. ये सिर्फ़ एक डिश नहीं बल्कि ख़ुद भारत की कहानी है! समोसे का जन्म भारत की धरती पर नहीं हुआ. The Better India के एक लेख के मुताबिक, ये मध्य एशिया से सफ़र करके भारत पहुंचा.
ईरान के आस-पास हज़ारों साल पहले किसी राज्य में समोसे का जन्म हुआ. मिडिल ईस्टर्न कुज़ीन के 10वीं सदी के खाद्य सामग्री साहित्य, ख़ासकर मध्य युग के फ़ारसी खाद्य साहित्य पर नज़र डालने पर समोसा का सबसे पुराना रिश्तेदार, ‘Sanbosag’ का ज़िक्र मिलता है.
यहां इसका नाम ‘Sambosa’?
The Times of India के एक लेख के अनुसार, समोसे का पहला ज़िक्र, Abolfazi Beyhaqi के ‘Tarikh-e-Beyhaghi’ में मिलता है. यहां इसका नाम ‘Sambosa’ था. वहीं कई इतिहास की क़िताबों में ‘Sanbusak’, ‘Sanbusaq’ या ‘Sanbusaj’ का ज़िक्र मिलता है. ये एक तरह का त्रिकोणिय नाश्ता था जिसे व्यापारी लंबे सफ़र पर साथ रखते थे और आग के आस-पास बैठ कर खाते थे.
मिडिल ईस्ट के शेफ़ के ज़रिए पहुंचा भारत
शुक्र है इन घुमंतू व्यापारियों का कि ये दिव्य खाने की वस्तु, इनके साथ घूमते-घूमते मध्य एशिया से उत्तरी अफ़्रीका, पूर्वी अफ़्रीका और दक्षिण एशिया तक पहुंच गई. दिल्ली सल्तनत के शासनकाल में मिडिल ईस्ट के खानसामों ने हिन्दुस्तानियों को समोसा चखाया और ये यहीं का होकर रह गया. अमीर खु़सरो के मुताबिक, समोसा पहले मांस, घी और प्याज़ से बनाया जाता था.
ख़ुसरो ने तो समोसे पर पहेली भी बनाई थी:
‘जूता पहना नहीं
समोसा खाया नहीं’
इसका जवाब था- तला न था. जूते के सोल को भी तला कहा जाता था.
14वीं शताब्दी में इब्न बत्तूता ने Sambusak (उर्फ़ समोसे) का ज़िक्र करते हुए लिखा कि ये मांस, पिस्ता, बादाम, अखरोट और मसालों से बनता था और इसे मोहम्मद-बिन-तुगलक के दरबार में परोसा जाता था.
शाही रसोई और गली-नुक्कड़ दोनों ही जगह कढ़ाई में तला गया
मुग़ल काल में लिखे गए ‘आइन-ए-अकबरी’ में भी समोसे को जगह मिली और वहां ये ‘Sanbusah’ नाम से दर्ज है. अबुल फ़ज़ल के मुताबिक मुग़ल भी समोसे के शौकीन थे.
आमतौर पर शाही रसोई और आम लोगों के खाने में अंतर होता है. समोसा इन दोनों के बीच का पुल बनकर सामने आया. जितना प्यार इसे महलों में मिला उतना ही गली-नुक्कड़ो में.
अंग्रेज़ों को भी समोसा भा गया और वो इसे अपने साथ दुनिया के कोने-कोने तक ले गए. और समोसा जहां भी पहुंचा इसे खुली बांहों से अपनाया गया.
दुनियाभर में मिलते हैं किस्म-किस्म के समोसे
हम भारतीय तो समोसे के अंदर आलू ही जानते हैं लेकिन भारत में ही पिज़्ज़ा समोसे, कीमा से लेकर नूडल समोसा, खोवा समोसा तक मिलता है!
मिडिल ईस्ट में समोसे को चीज़, प्याज़, मसाले, मांस से बनाया जाता है. इज़रायली इसे चने और चिलगोज़े के साथ बनाते हैं. वहीं पुर्तगाल में मीट से भरा Chamucas और ब्राज़ील में Pasteis के रूप में मिलता है. उज़बेकिस्तान, कज़ाखिस्तान में इसे Ughyur स्टाइल दे दिया गया.
समोसे से जुड़ी हर याद अपने आप में खास है!
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