विभाजन के बाद अंशवीर के परिवार को अपना कारोबार और आलीशान घर पाकिस्तान में छोड़ना पड़ा। इसके बाद उन्होंने कानपुर में जीरो से शुरुआत की और आज शहर के सबसे बड़े साइकिल स्टोर के मालिक हैं। उन्होंने अपने स्टोर में दर्जनों लोगों को रोजगार भी दिया है।
कानपुरः पाकिस्तान के झेलम जिले से विस्थापित होकर अंशवीर सिंह का परिवार कानपुर में बस गया। जब वे यहां आए थे, तब उनके पास कुछ नहीं था। सब कुछ शून्य से शुरू करना पड़ा लेकिन अपने हौसलों के दम पर उनके परिवार ने वह हासिल किया है, जिसने उनकी जिंदगी बदल दी। कानपुर में अंशवीर सिंह एक सफल कारोबारी के तौर पर गिने जाते हैं। उनके शहर में दो-दो साइकिल स्टोर्स हैं और दर्जनों लोगों को उन्होंने अपने इस कारोबार में रोजगार दे रखा है।
अंशवीर सिंह विभाजन की कहानियां सुनते-सुनते बड़े हुए हैं। उनके परिवार ने उस दौर में जो तकलीफें झेलीं, वह सब सुनकर आज भी उनका दिल भर आता है। अंशवीर ने बताया कि पाकिस्तान से किसी तरह जान बचाकर उनका परिवार भारत आया था। झेलम के चकवाल के भौंड़ गांव में उनका जमा-जमाया कारोबार ता। आलीशान घर और खेत-खलिहान थे लेकिन एक झटके में सब कुछ छोड़कर उन्हें विस्थापित होना पड़ा।
अंशवीर के परिवार को कई रातें पटियाला के नाभा में फुटपाथ पर भी बितानी पड़ीं। परिवार को पालने के लिए उनके पिता छोटे-मोटे काम-धंधे शुरू करने लगे। काम की ही तलाश में वह साल 1950 में कानपुर के गोविंद नगर में आकर रहने लगे। उनकी मां जसवंत कौर बनारसी साड़ियां बेचती थीं। जैसे-तैसे घर चलता था। अंशवीर ने बताया कि जब वह बड़े हुए तो उन्होंने साइकिल रिपेयरिंग का काम शुरू किया। फिर उसके एजेंट बने और दूसरे जिलों से ऑर्डर लेने लगे।
दिनरात मेहनत के बाद उन्होंने खुद की एजेंसी शुरू की। उन्होंने अपने छोटे भाई सत्यवीर सिंह के साथ इस कारोबार को गति देनी शुरू की। साल 1976 में उन्होंने बिरहाना रोड पर पहली दुकान खोली। साल 1991 में उनकी दूसरी दुकान भी खुल गई। फिलहाल दोनों ही दुकानें कानपुर की सबसे बड़ी साइकिल स्टोर कही जाती हैं। उनके इस कारोबार में कई लोगों को रोजगार भी मिला है। उनका परिवार तो इसमें लगा ही हुआ है, इसके अलावा उन्होंने 25 अन्य लोगों को भी रोजगार दिया है।