दुनिया में कई आइलैंड्स हैं जो मस्ती मजे से लेकर तरह तरह के जानवरों के लिए प्रसिद्ध हैं लेकिन क्या आप जानते हैं एक ऐसा आइलैंड भी है जो कभी कोढ़ के रोगियों के लिए प्रसिद्ध था लेकिन आज ये दुनिया का सबसे वीरान आइलैंड बन चुका है. आज हम आपको इसी आइलैंड की कहानी बताने जा रहे हैं.
कुष्ठ रोगियों को भेजा जाता था यहां
वैसे तो कोढ़ से पीड़ित रोगियों को हमेशा से हीन भावना से देखा जाता रहा है. आम लोगों ने इन रोगियों से हमेशा दूर बनाई है. भारत में इस भयानक रोग से पीड़ित रोगियों को कुष्ठआश्रम में भर्ती किया जाता है लेकिन यूरोप के ग्रीस और यूनान जैसे देशों ने अपने यहां के कुष्ठ रोगियों को आम लोगों से दूर एक आइलैंड पर भेज दिया था. ये आइलैंड स्पिनालॉन्गा नाम से जाना जाता है.
यूनान के सबसे बड़े द्वीप क्रीट के पास स्थित ये आइलैंड भूमध्य सागर में मिराबेलो की खाड़ी के मुहाने पर स्थित है. हालांकि कभी कुष्ठ रोगियों के लिए जाना जाने वाला ये द्वीप आज पूरी तरह से वीरान है और यहां बेहद कम लोग आते जाते हैं. क्रीट के गांव प्लाका से थोड़ी दूरी पर स्थित इस आइलैंड में बहुत कम लोगों की दिलचस्पी है.
पुराना है इस आइलैंड का इतिहास
वेनिस के राजा ने इस आइलैंड को सबसे पहले सैनिक अड्डे के रूप में स्थापित किया था. इसके बाद तुर्की के ऑटोमान साम्राज्य द्वारा यहां किलेबंदी की गई. इसके बाद क्रीट के लोगों ने साल 1904 में अपने यहां से तुर्कों को अपने देश लौटने पर मजबूर कर दिया. अब यहां उनकी किलेबंदी नहीं रही. स्पिनालॉन्गा को तुर्कों से मुक्त कराने के बाद यहां कुष्ठ रोगियों का केंद्र बना दिया गया. यूरोप के देशों के कुष्ठ रोगियों को यहीं भेजा जाने लगा. कुष्ठ रोगियों का ये केंद्र 1957 तक चल पाया क्योंकि तब तक दुनिया को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
यूनान हुआ था शर्मिंदा
1957 में दुनिया को इस केंद्र के बारे में एक ब्रिटिश एक्सपर्ट ने बताया. वह यहां आए और यहां का हाल देखने के बाद दुनिया भर में इसकी आलोचना की. इससे यूनानी सरकार को दुनिया भर की आलोचना झेलनी पड़ी और वे बेहद शर्मिंदा हुए.
ब्रिटिश एक्सपर्ट के इस कदम के बाद यूनानी सरकार ने कुष्ठ रोगियों के इलाज की व्यवस्था की तथा इस आइलैंड पर बने केंद्र को बंद कर दिया. कुष्ठ रोगियों के जाने के बाद स्पिनालॉन्गा आइलैंड वीरान हो गया.
असल में स्पिनालॉन्गा द्वीप पर कुष्ठ के मरीजों का केंद्र तो बना था लेकिन ऐसा सिर्फ उन्हें आम स्वस्थ लोगों से अलग रखने के लिए किया जाता था. यहां उनके लिए इलाज का कोई इंतजाम नहीं था. यहां तैनात एकमात्र डॉक्टर भी तब ही इस द्वीप पर आता जब किसी कुष्ठ रोगी को कोई और बीमारी हो जाती. हालांकि इस केंद्र से पहले ही साल 1904 में कोढ़ का इलाज खोज लिया गया, इसके बावजूद यहां के रोगियों को किसी तरह का इलाज नहीं मिलता था.