कैंसर की दवाओं पर 5,000% तक मुनाफा कमा रहे अस्पताल, 225 की दवा 2600 में बिक रही, रिपोर्ट में आए चौंकाने वाले आंकड़े

Why Cancer Medicines are Expensive : निजी अस्पताल मरीजों को जमकर लूट रहे हैं। जो दवा उन्हें 225 रुपये में मिल रही है, उसे वे 2600 रुपये एमआरपी पर बेच रहे हैं। माइहेप इंजेक्शन अस्पतालों को 2150 रुपये में मिलता है। इसकी एमआरपी 12000 रुपये है। ऐसा ही कई सारी दूसरी दवाओं का हाल है।

why Cancer medicines are expensive
कैंसर की दवाओं पर जमकर मलाई लूट रहे हैं अस्पताल

नई दिल्ली : कैंसर (Cancer) जैसी गंभीर बीमारी अब आम बनती जा रही है। आप भी अपने आस-पास कई ऐसे लोगों को जानते होंगे, जिन्हें कैंसर है। भारत में कैंसर के मरीज काफी बढ़ रहे हैं। इस साल भारत में कैंसर के दर्ज मरीजों की संख्या 19 से 20 लाख रहने का अनुमान है। हालांकि, FICCI and EY की एक रिपोर्ट के अनुसार, कैंसर के मरीजों की वास्तविक संख्या रिपोर्ट हुए मामलों से 1.5 से 3 गुना अधिक हो सकती है। कैंसर जितना आम हुआ है, इसका इलाज उतना ही पहुंच से दूर होता जा रहा है। अगर मरीज गरीब परिवार से है, तो पहले तो पूरा इलाज ही नहीं मिल पाता। अगर इलाज कराया भी जाए, तो उस पर आने वाले खर्च से परिवार कई वर्षों के लिए कर्ज में डूब जाएगा।

पहुंच से दूर हो रहा प्राइवेट अस्पतालों में इलाज

बात प्राइवेट हॉस्पिटल्स की करें, तो वहां के खर्चे परिजनों की धड़कने बढ़ा देते हैं। कैंसर के महंगे इलाज के पीछे एक बड़ा कारण दवाओं की भारी-भरकम कीमते हैं। हॉस्पिटल्स इन दवाओं को एमआरपी पर बेचकर भारी मार्जिन कमा रहे हैं। यह मार्जिन इतना है कि आप सुनकर चौंक जाएंगे। हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार, निजी अस्पताल द्वारा बेची गई दवाओं पर ट्रेड मार्जिन 2,000 फीसदी से भी अधिक होता है। कई मामलों में यह 5,000 फीसदी तक भी होता है। यहां बताते चलें कि जो दवाएं आवश्यक दवाओं की लिस्ट में शामिल होती हैं, उनकी कीमतें सरकार ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (DPCO) के माध्यम से तय करती है

जमकर मलाई लूट रहे अस्पताल
निजी अस्पताल जिस तरह से मरीजों से भारी-भरकम फीस वसूलते हैं, उससे कोई भी यह समझ सकता है कि वे जमकर मलाई लूट रहे हैं। एलायंस ऑफ डॉक्टर्स फॉर एथिकल हेल्थकेयर से जुड़े डॉ जीएस ग्रेवाल ने दवाओं पर अस्पतालों एवं केमिस्ट को हासिल होने वाले ट्रेड मार्जिन को लेकर एनपीपीए को हाल में एक दस्तावेज सौंपा है। इस दस्तावेज में दो दर्जन दवाओं का ब्योरा दिया गया है। इन दवाओं की वास्तविक कीमत और एमआरपी में भारी अंतर है। निजी अस्पताल इन दवाओं को एमआरपी पर मरीजों को बेच रहे हैं और भारी मुनाफा कमा रहे हैं।

225 की दवा 2600 में बेच रहे

रिपोर्ट के अनुसार, जो दस्तावेज पेश किये गए हैं, वे दवाओं की वास्तविक कीमत और एमआरपी में 2,000 फीसदी तक का अंतर बता रहे हैं। जैसे- हेपेटाइटिस सी के इलाज में काम आने वाली दवा एल्बुमिन अस्पतालों को 3900 रुपये की पड़ती है। लेकिन इस दवा पर एमआरपी 6605 रुपये लिखी हुई है। अस्पताल मरीजों को एमआरपी पर ही यह दवा बेचते हैं। हेपेटाइटिस सी की ही दूसरी और भी दवाए हैं, जिनमें अस्पताल भयंकर ट्रेड मार्जिन कमा रहे हैं। रेटलान इंजेक्शन अस्पताल को 225 रुपये में सप्लाई होता है और इसकी एमआरपी 2600 रुपये है। यह इंजेक्शन ब्लीडिंग रोकने में काम आता है। माइहेप ऑल की बात करें, तो यह अस्पतालों को 6800 रुपये में मिलती है। अस्पताल इस दवा को 17,500 रुपये एमआरपी पर बेचते हैं। माइहेप इंजेक्शन अस्पतालों को 2150 रुपये में मिलता है। इसकी एमआरपी 12000 रुपये है। मायडेक्ला जो अस्पतालों को 750 रुपये में सप्लाई होती है, उसकी एमआरपी 5000 रुपये है।


2000 फीसदी का मुनाफा

अस्पताल कई दवाओं पर 2,000 फीसदी का मुनाफा कमा रहे हैं। एनपीपीए को सौंपे दस्तावेज में बताया गया कि कैंसर में काम आने वाली जेमसेटाबीन 1जीएम को अस्पताल 900 रुपये में खरीदते हैं और 6597 रुपये में बेचते हैं। इसके अलावा अस्पतालों को 1350 रुपये में मिलने वाले एंटी कैंसर इंजेक्शन पीसिलिटैक्स 260 एमजी का एमआरपी 11946 रुपये है। इसी तरह ऑक्सीप्लाटीन 100 इंजेक्शन 1090 में खरीदा जाता है और 5210 रुपये एमआरपी पर बेचा जाता है। इसी तरह कई दूसरी दवाओं पर अस्पताल 2,000 फीसदी तक का मुनाफा कमा रहे हैं।