Surendran K Pattel: केरल में बीड़ी रोलर का काम करने वाले सुरेंद्रन के पटेलअमेरिका में काउंटी जज बन गए हैं। बीड़ी बांधने के काम से लेकर अमेरिका में जज बनने के बीच सुरेंद्रन की कहानी हर किसी को प्रेरणा देने वाली है। पढ़ाई और परिवार के लिए पैसों की जरूरत ने सुरेंद्रन को ऊंचाई के उस मुकाम तक पहुंचा दिया जिसके वे हकदार हैं।
गरीबी के चलते छोड़नी पड़ी थी पढ़ाई
सुरेंद्रन के पटेल का जन्म उन माता-पिता के छह बच्चों में से एक के रूप में हुआ था। जो कि कासरगोड के सुदूर बलाल गांव में दिहाड़ी मजदूर थे। दसवीं कक्षा के बाद सुरेंद्रन को कुछ समय के लिए अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। जिसके बाद एक साल तक उन्होंने बीड़ी बांधने वाले के तौर पर काम किया। सुरेंद्रन का कहना है कि, ‘चूंकि मैं एक बहुत गरीब परिवार से था। इसलिए हमें गंभीर वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जब मैं कक्षा 9 में था तब मैंने बीड़ी रोलर के रूप में काम करना शुरू किया और अन्य मजदूरी के काम भी किए। एसएसएलसी पूरा करने के बाद मैंने एक साल तक बीड़ी मजदूर के रूप में काम किया। लेकिन उस एक साल के ब्रेक ने भविष्य के बारे में मेरा नजरिया बदल दिया। अगले साल मैंने प्री-डिग्री कोर्स के लिए एलेरिटाट्टू के सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया।’
परिवार की तंगी दूर करने के लिए दिनो रात की मेहनत
सुरेंद्रन ने साल 1992 में पैयन्नूर कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। जिसके दौरान उन्होंने परिवार के पैसों की जरूरत पूरा करने के लिए रातों दिन, यहां तक की वीकेंड पर भी काम किया। इसके बाद जब सुरेंद्रन ने कोझिकोड के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में एलएलबी कोर्स के लिए दाखिला लिया। तो पटेल ने अपनी शिक्षा के साधन खोजने के लिए शहर के मालाबार पैलेस होटल में हाउस कीपिंग बॉय के रूप में काम किया। यह वो दौर था जब उन्होंने साल 1996 में होसदुर्ग में वकील के रूप में प्रैक्टिस करना शुरू किया।
जिसे उन्होंने नौ साल तक जारी रखा और बाद में अपनी पत्नी सुभा के एक अस्पताल में नर्स के रूप में शामिल होने के बाद नई दिल्ली आ गए। सुरेंद्रन ने तीन साल तक सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस की। दरअसल सुरेंद्रन की पत्नी को अमेरिका में एक प्रमुख चिकित्सा सुविधा में काम करने के लिए चुना गया था और उन्हें स्थायी निवासी वीजा प्राप्त हुआ। जिसके बाद सुरेंद्रन 2007 में टेक्सास के ह्यूस्टन चले गए। पटेल ने टेक्सास में बार की परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में इसे पास कर लिया।
विरोध का करना पड़ा सामना
सुरेंद्रन ने ह्यूस्टन लॉ सेंटर विश्वविद्यालय में एलएलएम की परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराया और साल 2011 में इसे पास कर लिया। उन्होंने परिवार कानून, नागरिक और वाणिज्यिक मुकदमेबाजी, रियल एस्टेट, आपराधिक रक्षा आदि सहित क्षेत्रों में अपनी खुद की कानूनी फर्म के जरिए प्रैक्टिस शुरू की। सुरेंद्रन के लिए यह सब इतना आसान नहीं था और इस बीच उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। अपने नामांकन को सुरक्षित रखते हुए सुरेंद्रन ने डेमोक्रेटिक पार्टी प्राइमरी में सिटिंग जज के साथ प्रतिस्पर्धा में रिपब्लिकन नॉमिनी को हरा दिया। पटेल ने ‘फर्म ऑन लॉ, फेयर ऑन जस्टिस’ के नारे के साथ चुनाव लड़ा और न्याय तक समान पहुंच के मुद्दे पर प्रकाश डाला। सुरेंद्रन ने कहा कि उन्हें विरोधियों से कई नकारात्मक प्रचार का सामना करना पड़ा। क्योंकि उनके उच्चारण, जन्म स्थान आदि पर भी हमला किया गया था।
सुरेंद्रन ने पेश की नजीर
सुरेंद्रन ने अपने व्यक्तित्व से नजीर पेश की। उन्होंने कहा कि, ‘हमने नकारात्मक अभियान का जवाब नहीं दिया। लेकिन अपने अभियान के नारों और अपने वादों के साथ लोगों के पास जाने का फैसला किया।’ हालांकि मीडिया और लोगों के साथ मेरी बातचीत के दौरान, मैंने कहा कि एक काउंटी के रूप में जो देश में सबसे विविध में से एक है। लोगों के बीच लहजे, दिखावे और सांस्कृतिक अंतर में विविधता होना स्वाभाविक है। सुरेंद्रन के मुताबिक तब तक आप एक अच्छे जज कैसे हो सकते हैं। जब तक आप किसी अन्य व्यक्ति के लहजे को बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं रखते। उन्होंने पत्नी सुभा के हाथ पर रखी भगवद गीता और अमेरिकी संविधान के तहत शपथ ली। इस दौरान दंपती की बेटियां अनघा और सांद्रा बगल में खड़ी थीं। पटेल ने ग्रेटर ह्यूस्टन के 2,500 सदस्यीय मलयाली एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया है।