भारत में कुछ चेहरे ऐसे हुए हैं जिन्हें जानने की दिलचस्पी हमेशा रहती है. भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एक ऐसी ही शख्सियत हैं. सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर रहते हुए उन पर आरोप लगे कि उन्हें कुर्सी विरासत में मिली. उन्हें गूंगी गुड़िया भी कहा गया. कई बड़े नेताओं से इंदिरा के आंकड़े हमेशा छत्तीस के रहे, लेकिन उन्होंने अपने कठोर फैसलों से अलग पहचान बनाई और अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया.
‘गूंगी गुड़िया’ इंदिरा गांधी कैसे बनीं आयरन लेडी?
amarujala
इंदिरा गांधी के बारे में लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है. लेकिन राजनीति के जानकारों की मानें इंदिरा के सफर की वास्तविक शुरुआत लाल बहादुर शास्त्री के आकस्मिक मौत के बाद से हुई. इंदिरा पीएम तो बन गई लेकिन इसके साथ ही पार्टी में बगावत के सुर तेज होने लगे थे. बताया जाता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी के फैसलों से नाराज रहने लगे थे.
मोरारजी के बड़े कद को देखते हुए उन्हें उप प्रधानमंत्री बनाया गया था. बावजूद इसके वो इंदिरा गांधी के फैसलों के अक्सर खिलाफ खड़े दिखाई दिए. यह एक बड़ा कारण है कि इंदिरा गांधी भी मोरारजी को लेकर बहुत सहज नहीं रहती थी. कहते हैं इंदिरा भाषण और संसद में हमेशा बहसबाजी से बचना चाहती थी. वो बेहद कम बोलती थीं. 1969 में जब उनको बजट पेश करना हुआ था तो वो इतनी डर गई थी कि उनके मुंह से आवाज भी नहीं निकल रही थी. उनकी नर्वसनेस और असहजता पर विपक्ष के नेता डॉ राम मनोहर लोहिया ने उन्हें ‘गूंगी गुड़िया’ कहा था.
Indira Gandhi के फैसले जो हमेशा रहेंगे याद?
facebook/IndiraPriyadarshiniGandhi
इंदिरा गांधी को भले ही ‘गूंगी गुड़िया’ कहा गया, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि वो कड़े फैसलों को लेने से कभी पीछे नहीं हटती थीं. 1969 में उन्होंने 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर इसका एक बड़ा उदाहरण पेश कर दिया था. उनके इस फैसले के बाद जो बैंकिंग सेवा सिर्फ बड़े व्यापारियों को मिल रही थी वह देश की आम जनता तक पहुंचने लगी. इंदिरा गांधी को भूमिहीन किसानों के लिए भूमि सुधार नीति बनाने के लिए भी याद किया जाता है. कहते हैं इस फैसले से हरित क्रांति को बढ़ावा मिला और जल्द भारत खाद्य सामग्री का निर्यात करने लगा.
जहां एक तरफ इंदिरा लगातार कड़े फैसले ले रही थीं. वहीं मोरारजी देसाई का असंतोष बढ़ता जा रहा था. पार्टी के अंदर के कलह से परेशान होकर इंदिरा गांधी ने अपना अलग रास्ता बना लिया. इस तरह कांग्रेस दो गुटों में बट गई. एक इंदिरा गांधी की कांग्रेस थी, जिसका नाम था ‘कांग्रेस आर’. दूसरी ओर मोरारजी देसाई की कांग्रेस थी, जिसका नाम था ‘कांग्रेस ओ’.
इंदिरा गांधी ने कैसे बदल दिया था पाकिस्तान का भूगोल?
amarujala
मोरारजी की ‘कांग्रेस ओ’ को 1971 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 16 सीटें मिली थीं और इंदिरा की कांग्रेस आई को 352 सीटें प्राप्त हुई. हालांकि, अभी भी इंदिरा आयरन लेडी नहीं बनी थीं. इंदिरा गांधी को पूरी दुनिया ने तब गंभीरता से लिया जब उन्होंने एक कड़ा फैसला लेते हुए भारतीय सेना को जंग के मैदान में भेजा और अंत में 80 हजार से पाकिस्तान सैनिकों की आत्म समर्पण के साथ बांग्लादेश एक आजाद देश बना.
बताया जाता है कि यही वो इंदिरा गांधी के इस फैसले के बाद भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा नेता अटल बिहारी बाजपेई ने उन्हें दुर्गा का अवतार कहा था. आगे के सफर में 18 मई 1974 में पोखरण में परमाणु परीक्षण कराकर इंदिरा ने फिर पूरी दुनिया को अपनी और आकर्षित किया. अब तक जिस इंदिरा को ‘गूंगी गुड़िया’ का जाता था, वो भारत को एक नई महाशक्ति बनाकर खुद भी ‘आयरन लेडी’ बन चुकी थीं.
इंदिरा गांधी ने भारत में क्यों की थी इमरजेंसी की घोषणा?
Deccan Herald
इंदिरा अपने दौर की सबसे मजबूत नेता के रूप में स्थापित हुईं, लेकिन उन पर कई सवाल भी उठे. खासतौर पर उन्होंने जिस तरह से भारत में आपातकाल की घोषणा की थी, उसके लिए उन्हें आज भी बुरा-भला कहा जाता है. लेकिन सवाल यह है कि25 जून 1975 के दिन ऐसा क्या हुआ था कि इंदिरा गांधी को भारत में इमरजेंसी लगानी पड़ी थी. इसका जवाब है राज नारयाण Vs इंदिरा गांधी कोर्ट केस जो इंदिरा हार गई थीं.
बात 1977 के लोकसभा चुनाव की है. इंदिरा गांधी राय बरेली से चुनाव लड़ रही थी और राज नारायण ने गांधी के खिलाफ़ संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से पर्चा भरा. 7 मार्च को चुनाव हुआ, और 10 मार्च को चुनावी नतीजे आए, जिसमें इंदिरा ने 1 लाख से भी ज़्यादा वोटों से जीत दर्ज की. कहते हैं, राज नारायण को ये हार बर्दाशत नहीं हुई क्योंकि वो अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थे. इंदिरा के खिलाफ बोलना आसान नहीं था, लेकिन राज नारायण शांत नहीं रहे और उन्होंने इंदिरा गांधी पर चुनाव में भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाए और सांवैधानिक तरीके से उनसे लड़ने का निर्णय लिया.
राज नारयाण Vs इंदिरा गांधी केस का परिणाम क्या रहा?
File
Live Law के अनुसार, राज नारायण का आरोप था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी अफसरों की मदद ली. राज नारायण ने अपनी अपील में कहा कि इंदिरा गांधी ने सेना के जवानों की, वायु सेना के हेलीकॉप्टर्स की मदद से राय बरेली में रैलियां की. राज नारायण ने आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी ने पुलिस बल की, राय बरेली के मैजिस्ट्रेट भी मदद ली. राज नारायण ने यह भी आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश सरकार के होम सेक्रेटरी की मदद से अपनी रैलियों में लाउडस्पीकर लगवाए. इसके अलावा इंदिरा गांधी पर शराब बांटने, धोतियां और कंबल बांटने और वोटर्स को रिझाने के भी आरोप लगे.
केस की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पाया कि 1 फरवरी 1971 से 25 फरवरी 1971 तक इंदिरा गांधी ने सरकारी अफ़सरों की मदद ली. हाई कोर्ट ने इसे Representation of the People Act के सेक्शन 123(7) का उल्लंघन माना और 12 जून, 1975 को जस्टिस जगमोहन लाल सिंह ने फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर दिया और उन पर 6 साल का प्रतिबंध लगा दिया
इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले को इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी देश की उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के फैसले पर सशर्त स्टे लगा दिया और इंदिरा गांधी को पीएम के पद पर रहने की अनुमति दी, लेकिन संसद में मतदान करने से रोक दिया ये तारीख थी 24 जून, 1975, अगले ही दिन यानी 25 जून, 1975 को देश में इमरजेंसी लगा दी गई.
‘निजी ज़िंदगी’ में कैसी थीं भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी?
TOI
इन्दिरा का जन्म 19 नवंबर, 1917 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के यहां हुआ था. 1934–35 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात, इन्दिरा ने शान्तिनिकेतन में विश्व-भारती विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और अपने जीवन में आगे बढ़ीं. इसके बाद वो उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गईं. इस दौरान उनकी मुकालात फिरोज़ गांधी से हुई, जोकि बाद में 16 मार्च 1942 को उनके पति बने.
इंदिरा गांधी की जीवनी लिखने वाली पुपुल जयकर के मुताबिक इंदिरा ने जिस वक्त फिरोज से प्यार किया था, उस वक्त वो राजनीतिक से दूर थीं और अपनी पूरी जिंदगी सादगी से बिताना चाहती थीं. लेकिन शादी के बाद जब फिरोज गांधी से उनकी दूरियां बढ़ने लगी तो इंदिरा ने राजनीति में शिरकत करनी शुरू कर दी. 1950 के दशक में वो अपने पिता के साथ राजनीति में सक्रिय हो गई थीं.
जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद 1964 में इंदिरा राज्यसभा सदस्य के रूप में सदन पहुंचीं. इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं और फिर लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद देश की प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर बैठीं. 31 अक्टूबर 1984 को 66 साल की उम्र में इंदिरा गांधी के अपने सुरक्षाकर्मियों ने ही गोलियों से उनका शरीर छलनी कर दिया दिया था. गंभीर हालात में उन्हें एम्स लेकर जाया गया था, लेकिन डॉक्टर उन्हें बचा नहीं सके थे. अब इंदिरा भले ही हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी स्मृतियां हमेशा जीवंत रहेंगी.