वैलेंटाइन वीक का तीसरा दिन चॉकलेट डे के रूप में मनाया जाता है. कपल्स इस दिन एक दूसरे को चाकलेट गिफ्ट करते हैं. लोग चॉकलेट की मिठास से अपने रिश्ते में भी मिठास घोलने की कामना करते हैं. वैसे भी चॉकलेट भला किसे पसंद नहीं होती. डार्क चॉकलेट के लिए तो यहां तक कहा जाता है कि ये शरीर के लिए काफी फायदेमंद है. लोग स्ट्रेस कम करने से लेकर शरीर की थकावट दूर करने के लिए ये खाते हैं. अब जब चॉकलेट के इतने फायदे हैं तो ये भी जान लेना जरूरी है कि आखिर ये सबकी मनपसंद चॉकलेट आई कहां से और कैसे इतनी प्रचलित हो गई?
4000 हजार साल पुराना है चॉकलेट का इतिहास
बताया जाता है कि इस मीठी चॉकलेट का इतिहास लगभग 4000 साल पुराना है. आज के समय में खुशियों और मिठास का प्रतीक मानी जाने वाली चॉकलेट कभी तीखेपन से भरपूर हुआ करती थी. इसे कोको से बनाया जाता है. कोको अमेरिका के जंगलों में पर्याप्त मात्रा में पाई जाती थी इसीलिए मान्यता है सबसे पहले चॉकलेट की खोज अमेरिका में ही हुई थी.
हालांकि आज के समय के हिसाब से देखा जाए तो दुनिया भर में कोको की सबसे ज्यादा आपूर्ति करने वाला देश अफ्रीका है. यहां दुनियाभर के 70% कोको का उत्पादन होता है.
स्पेन के राजा से जुड़ी है एक कहानी
इसके अलावा एक कहानी स्पेन और मैक्सिको भी जुड़ी है. दरअसल 1528 में स्पेन ने मैक्सिको पर हमला किया और इस देश को अपने कब्जे में ले लिया. इस हमले से पहले मैक्सिको में कोको के बीज काफी प्रचलित थे. इसी वजह से स्पेन के राजा मैक्सिको से कोको के बीज और अन्य सामग्री भी अपने साथ स्पेन ले गए. यहीं से स्पेन में शुरू हुआ कोको का चलन. हालांकि ये भी कहा जाता है कि तब तक चॉकलेट खाने वाली नहीं बल्कि पीने वाली चीज थी. कुछ ही समय में कोको स्पेन के लोगों का ये पसंदीदा पेय बन गया.
कभी चॉकलेट में डाले जाते थे मसाले मिर्च
आज भले ही चॉकलेट मीठा और स्वादिष्ट लगता हो लेकिन अमेरिका में जब सबसे पहले चॉकलेट चॉकलेट बनाया गया तो इसके स्वाद में कुछ तीखापन था. ऐसा इस लिए भी था क्योंकि अमेरिका के लोग कोको के बीज के साथ कुछ मसाले और मिर्च भी पीस कर मिलाते थे. कहा जाता है कि 1828 में कॉनराड जोहान्स वान हॉटन नामक एक शख्स ने कोको प्रेस नामक एक मशीन बनाई. उसी मशीन की मदद से चॉकलेट के तीखेपन को दूर किया गया.
ऐसे बनी मीठी चॉकलेट
इसके बाद 1848 में ब्रिटिश की एक चॉकलेट कंपनी, जे.एर फ्राई एंड संस ने कोको में मीठापन घोला. कंपनी ने कोको में बटर, दूध और चीनी मिलाकर इसे सख्त बनाया और चॉकलेट का रूप दिया. इसके बाद समय के साथ साथ चॉकलेट के स्वाद में भी बदलाव आता गया. वहीं इस चॉकलेट को बनाने का श्रेय वैज्ञानिक डॉ. सर हैस स्लोने को भी दिया जाता है. कहा जाता है कि उन्होंने ही इस पेय पर कुछ प्रयोग किए और एक नई रेसिपी तैयार की. इसके बाद पीने वाली ये चीज सालिड फॉर्म में बदल गई और खाने वाली चॉकलेट बन गई. कहते हैं इसका नाम कैडबरी मिल्क चॉकलेट रखा गया.