इन दिनों हमदर्द फिर चर्चा में है. दरअसल हमदर्द ने हाईकोर्ट का रुख किया था. उसका कहना था कि उसके हिट प्रोडक्ट रूह आफजा को ई कामर्स साइट पर कई कंपनियां गलत तरीके से बेच रही हैं, ये सभी उत्पाद पाकिस्तान में बने हुए हैं. कोर्ट ने हमदर्द इंडिया फाउंडेशन के फेवर में फैसला देते हुए इससे संबंधित कंपनियों के विज्ञापन को ई साइट्स को हटाने को कहा है. वैसे हमदर्द की भी तीन देशों में बंटने की कहानी कोई कम रोचक नहीं है.
हमदर्द इन दिनों फिर चर्चा में है. पिछले दिनों वो तब चर्चा में आया था जबकि वो कुछ समय पहले मार्केट से एकदम गायब हो गया था. अबकी बार चर्चा की वजह अलग है. इस बार भारत में इसे बनाने वाली कंपनी हमदर्द नेशनल फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में शिकायत की थी कि कुछ पाकिस्तानी कंपनियां फेक प्रोडक्ट बनाकर इसको ई-साइट्स से बेच रही हैं. कोर्ट ने इसको रोकने का आदेश दिया है.
हमदर्द ऐसा ब्रांड है, जो आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान में भी है, भारत में भी और बांग्लादेश भी. तीनों रूह आफजा बनाते हैं और तीनों के प्रोडक्ट्स में खींचतान भी चलती रहती है. हकीकत ये भी है कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में अलग हमदर्द कंपनियों द्वारा बनाया रूह अफज़ा हू-ब-हू एक जैसा है. वो उन्हीं चीजों से बनता है, जैसे भारत में तैयार होता है. फार्मूला वही है. आखिर ऐसा क्यों है.
रूह अफज़ा का किस्सा पुरानी दिल्ली की इस कासिम गली के इस हवेली के दवाखाना से जुड़ा है. इस दवाखाने का नाम हमदर्द था. इसे हकीम अब्दुल मजीद चलाया करते थे. 1900 में यूनानी पद्धति की चिकित्सा वाला ये दवाखाना जब उन्होंने यहां खोला तो ये लोकप्रिय होने लगा. ये वो अपने नुस्खे पर दवा बनाया करते थे और रोगियों में देते थे. उसी जमाने में उन्होंने गर्मियों में शीतलता देने वाली एक खास दवा बनाई.
जब ये दवा शीतल पेय के रूप में लोकप्रिय होने लगी तो उन्होंने इसे 1907 में बड़े पैमाने पर बाजार में बेचना शुरू किया. इसका नाम रखा गया रूह अफज़ा. रूह अफज़ा ने हकीम मजीद की किस्मत बदल दी. पुरानी दिल्ली की कासिम गली से निकलकर उन्होंने इसकी एक फैक्ट्री बनाई जहां उसका उत्पादन शुरू किया. साथ ही हमदर्द लेब्रोरेटरी नाम से कंपनी शुरू की. हमदर्द ब्रांड और रूह अफज़ा दोनों हिट होने लगे. बंटवारे से पहले ये देश के सबसे लोकप्रिय शरबत पेय के रूप में शुमार किया जाने लगा.
जब 1947 में देश का बंटवारा हुआ तो हकीम मजीद के दो बेटों में बड़े बेटे तो भारत में रह गए, लेकिन छोटे बेटे कराची चले गए. उन्होंने कराची में 1948 में हमदर्द लेब्रोरेटरी शुरू की, जो पाकिस्तान में इस ब्रांड से रूह अफज़ा और दूसरे चिकित्सा प्रोडक्ट बनाने लगी. ये कंपनी भी पाकिस्तान में समय के साथ ना केवल बढ़ी बल्कि पाकिस्तान में बनने वाला रूह अफज़ा भी खासा लोकप्रिय हो गया और पाकिस्तान के बड़े ब्रांड्स में शुमार होने लगा.
इसके बाद पाकिस्तानी हमदर्द ने बांग्लादेश में कंपनी की नींव डाली. हां इन तीनों देशों में बनने वाली ज्यादा दवाओं और रूह अफज़ा का फार्मूला एक ही था, जो तीनों जगह बनाए जाते थे. यही वजह है कि रूह अफज़ा भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी बाजारों में खूब बिकते हैं. जब कुछ समय पहले भारत से रूह अफज़ा गायब हुआ तो पाकिस्तानी हमदर्द की चांदी हो गई. उसके मालिक ने एक ट्वीट करके लिखा भी कि हमारे रूह अफज़ा की डिमांड में अचानक काफी बढोतरी हो गई. निर्यात बढ़ गया है.