गांधारी ने 100 पुत्रों और 1 पुत्री को जन्म दिया था.
Kauravon Ki Janm Katha: महाभारत का महा-विनाशकारी युद्ध कौरव-पांडवों के बीच हुआ था. कौरव-पांडव वैसे एक ही कुल के थे और चाचा-ताऊ की संतानें थे. कौरव भाइयों की संख्या 100 थी, वहीं पांडव 5 भाई थे. आज हम आपको यहां बताएंगे कि एक ही मां से कैसे 100 कौरवों का जन्म हुआ था? क्या किसी वरदान का प्रभाव था या कुछ और? इस बारे में महाभारत में विस्तार से वर्णन किया गया है. पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि कौरव हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र के पुत्र थे. उनकी मां गांधारी थीं. दरअसल, धृतराष्ट्र और गांधारी के काफी समय तक संतान नहीं हुई थी. तब गांधारी ने ऋषि वेदव्यास जी का सत्कार कर उन्हें प्रसन्न किया. व्यासजी ने उन्हें 100 पुत्रों की मां होने का आशीर्वाद दिया. समय आने पर गांधारी को गर्भ ठहरा.
ऐसा उल्लेख है कि गांधारी 9 महीने के बजाय दो साल तक गर्भवती रहीं. बाद में प्रसव के दौरान एक मांस का लोथड़ा हुआ यानि गांधारी को एक भी संतान नहीं हुई. इससे वह घबरा गईं. तब फिर व्यासजी को बुलाया गया. व्यासजी ने कहा कि चिंता न करें आपके पुत्र अवश्य होंगे. उन्होंने कहा कि मांस के लोथड़े को 101 हिस्सों में विभाजित कर प्रत्येक टुकड़े को अलग-अलग घड़ों में रखें और उनमें घी भर दें.
राजा धृतराष्ट्र ने ऐसा ही किया. तब जाकर उन 101 घड़ों में शिशुओं का विकास हुआ. सबसे पहले दुर्योधन का जन्म हुआ. उसके बाद दु:शासन जन्मा. धीरे-धीरे इसी तरह उन सभी घड़ों से जो बच्चे निकले, उन्हें ही कौरव कहा गया. कुल 101 घड़ों में से 100 बच्चे हुए, वहीं 101वें घड़े से एक बच्ची हुई, जिसका नाम दुशाला रखा गया. वह 100 कौरवों की अकेली बहन थी. इस प्रकार गांधारी से 100 कौरवों समेत 1 कन्या का जन्म हुआ
कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध कौरव और पांडवों के बीच जमीन के एक टुकड़े को लेकर हुआ. इस भीषण युद्ध में कौरवो की बहन दुशाला के पति सिंध नरेश जयद्रथ समेत सभी कौरव भाई मारे गए और पांडवों की विजय हुई.