गाजीपुर: गाजीपुर के गांव युवराजपुर में रहने वाले शांति भूषण सिंह (shanti bhusan singh) ने छोटे से गांव से बॉलिवुड तक का मुश्किल सफर तय किया है। पिता और परिवार की इच्छाओं के खिलाफ उन्होंने अपने जीवन की दिशा फिल्मों, निर्देशन, लेखन में तलाशी। उन्हें काफी कामयाबी भी मिली। उन्होंने टीवी शो अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो, प्रतिज्ञा, इश्क का रंग सफेद, नमक इश्क का, डॉक्टर बीआर अंबेडकरकी स्क्रिप्ट लिखी। आमिर खान (amir khan) की फिल्म पीके में उन्हें भोजपुरी बोलना सिखाया। लेकिन आज भी शांति भूषण सिंह यह तय नहीं कर पाए हैं कि उनके गांव के लोग उन्हें इज्जत की नजर से देखते हैं या हिकारत से। पर यह भी सच है कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता।
एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में शांति भूषण ने बताया वह बेहद सामान्य परिवार से हैं। बचपन से साहित्य के प्रति उनका आकर्षण रहा। इसकी वजह यह थी कि उनके पिता जो स्वयं पेशे से शिक्षक थे, उन्हें पत्र-पत्रिकाओं के साथ ही कविता, नाटक वगैरह पढ़ने को प्रेरित करते थे। शांति जब बच्चे थे उसी वक्त उनके पिता ने गांव के युवाओं को इकट्ठा करके उन्हें रामलीला का मंचन करने के लिए तैयार किया था।
पिता थे नाटकों के खिलाफ
इस नाटक मंडली को शांति के पिता स्वर्गीय मुरली सिंह ने आर्थिक मदद भी दी। लेकिन इस सब के बावजूद शांति भूषण को वह रामलीला में हिस्सा लेने नहीं देते थे। शांति कहते हैं कि यह वह वह दौर था जब रंगमंच पर काम करने वाले लोगों को बहुत सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता था। प्राथमिक शिक्षा गांव और गांव के बगल के स्कूल में पूरी करने के बाद शांति पहले गाजीपुर फिर इलाहाबाद पहुंचे।
इलाहाबाद में पकड़ी नाटक मंडली
लेकिन इलाहाबाद में रहते हुए शांति ने कई नाटक मंडलियों में रहते हुए अलग-अलग नाट्य मण्डली के साथ अलग-अलग रोल अदा किए। शांति ने बताया कि उनका नाटकों की दुनिया में आना भी महज इतेफाक था। उनका सपना था, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला लेना। इस दौरान उनके एक जिगरी दोस्त ने बताया कि एनएसडी में दाखिले के लिए नाटक मंचित/एक्टिंग करने का एक्सपीरियंस भी जरूरी होता है। इसके बाद एनएसडी की पात्रता पूरी करने के लिए शांति निरंतर नाटक मंडलियों से जुड़कर नाटकों का मंचन करते रहे।
मुंबई जाने का मन बना लिया
इस दौरान करीब 6 साल उन्होंने आकाशवाणी के इलाहाबाद केंद्र में उदघोषक की भूमिका भी अदा की। इसके अलावा वह पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से आर्ट एंड कल्चर के कॉलम में कॉलमनिस्ट के तौर पर लिखते भी रहे। इस दौरान उनके संपर्क में रहे कई मित्र मुंबई का रुख कर चुके थे। शांति ने खुद को मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार कर लिया था कि उन्हें मुंबई जाकर बॉलीवुड में अपना भविष्य तलाशना और तराशना है।
साल 2000 में पहुंचे ‘सपनों की नगरी’
शांति इस बीच मुंबई से लखनऊ, इलाहाबाद आदि जनपदों को शूटिंग के लिए आने वाली सिनेमा यूनिट को स्थानीय स्तर पर मदद करते थे। उन्होंने बताया कि इलाहाबाद में रहते हुए उन्होंने नामचीन सिनेमा निदेशक तिग्मांशु धूलिया की शूटिंग में मदद की। शांति को यह कनेक्शन उनके मुंबई में रह रहे मित्रों और एक साथ थिएटर में काम कर चुके लोगों के संपर्क के कारण मिला। साल 2000 में वह अपने दोस्तों के बुलावे पर और खुद सिनेमा इंडस्ट्री में कुछ करने के संकल्प को अमलीजामा पहनाने के लिए मुंबई पहुंचे।
शुरू हुआ संघर्षों का सिलसिला
शांति भूषण उस दौर को याद करते हुए बताते हैं कि सबसे पहले काम के सिलसिले में उनकी मुलाकात मशहूर निर्माता, निदेशक प्रकाश झा से हुई। प्रकाश झा ने कहा कि फिलहाल वह किसी फिल्म के निर्माण को लेकर नहीं सोच रहे हैं, उनके पास काम हुआ तो वह शांति को जरूर अपने साथ जोड़ेंगे। झा ने शांति को तब तक सीरियल या किसी अन्य प्रोजेक्ट पर काम करने की सलाह दिया।
पहले-पहल असिस्टेंट डायरेक्टर
शांति ने बताया कि बॉलीवुड में उनके आकलन के अनुसार और उनकी क्षमता के अनुसार डायरेक्टर के तौर पर कार्य करना उन्हें सहज लगा। उन्होंने असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर पहली नौकरी की थी। एक्टिंग पर वह ज्यादा समय नहीं दे पाए। उनके ऊपर निरंतर आर्थिक दबाव बढ़ता जा रहा था। मुंबई जाने से पहले उनकी शादी हो चुकी थी और उनके ऊपर दो बच्चों के परवरिश की जिम्मेदारी आ चुकी थी।
पंजाबी सीरियल से समझा काम
मुंबई में उन्हें काम तलाशने में खासी मशक्कत करनी पड़ी। मुंबई में जब भी वह काम मांगने जाते तो उनसे लोग सवाल पूछते कि उनके पास फिल्म इंडस्ट्री में काम करने का पहले का कोई अनुभव है या नहीं। तब उन्होंने अपने एक मित्र की सहायता से निर्माणाधीन पंजाबी सीरियल में काम सीखने की नियत से शूट पर आना-जाना शुरू किया। चार-पांच दिनों तक वह चुपचाप शूटिंग की बारीकियों को एकाग्रता से देखते समझते रहे। उसके बाद उन्होंने एक प्राइवेट कंपनी में अपना बायोडाटा भेजा।
नौकरी के सिलसिले में जब उन्होंने कंपनी में फोन किया, तो कंपनी की ओर से उनसे यह पूछा गया कि क्या आप वही हैं जिन्होंने हिंदी में अपना बायोडाटा भेजा है। इस कंपनी में उन्हें नौकरी मिल गई। नौकरी के दौरान उन्हें असिस्टेंट डायरेक्टर रखा गया वह सेट पर फाइनल हो चुके सीन के स्क्रिप्ट उठाकर संकलित करते थे। एक बार डायरेक्टर के पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि मैं दिन में फाइनल हो गई डन सींस (फिल्मांकित हो चुका दृश्य) की फाइलिंग कर रहा हूं। तबसे सेट के लोग उन्हें मजाक के तौर पर ‘डन सीन’ के नाम से पुकारने लगे।
प्रतिज्ञा ने दिलााई पहचान
शांति भूषण ने साल 2009 से ही टेलीविजन सीरियल के पटकथा लेखक के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था। ‘अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो’ और ‘प्रतिज्ञा’ जैसे शो उनके बेहद प्रचलित रहे। शांति ने फिल्म ‘पीके’ के दौरान आमिर खान को भोजपुरी में बातचीत करना भी सिखाया। यह अनुभव उनके लिए बहुत अच्छा रहा।
फिर एक दिन आया वह फोन
इसके बारे में उन्होंने बताया कि साल 2009 में उनका सीरियल प्रतीक्षा टेलीविजन पर खासा पॉपुलर हो चुका था। आमिर खान की मां इस सीरियल को लगातार फॉलो करती थी। आमिर भी मां के साथ सीरियल देखा करते थे। इस दौरान पीके फिल्म बनाने वाले राजकुमार हीरानी से आमिर खान ने कहा कि वह प्रतिज्ञा सीरियल देखते हैं और उसमें किरदार श्याम जिस अंदाज में बोलते हैं वह उन्हें बहुत पसंद आता है। एक दिन शांति भूषण के मोबाइल पर एक कॉल आई। कॉल करने वाले ने खुद को राजकुमार हीरानी बताया। शांति को भरोसा नहीं हुआ कि यह मशहूर बॉलिवुड डायरेक्टर राजकुमार हीरानी ही हैं। बहरहाल, हीरानी ने शांति भूषण को अपने ऑफिस बुलवाया।
आमिर खान से हुई मुलाकात
हीरानी ने शांति भूषण से कहा कि उनकी अगली फिल्म के लिए स्थानीय भाषा के पुट वाले डायलॉग चाहिए। ऐसा कहकर उन्होंने फिल्म पीके के कुछ डायलॉग दिए। शांति भूषण ने उन्हें भोजपुरी का टच देकर उनके सामने रखे। हीरानी ने वे डायलॉग आमिर खान के पास भेजे। आमिर को यह भोजपुरी अंदाज पसंद आया। आमिर पहले उनसे अपने ऑफिस में मिले, बाद में अपने घर बुलवाया। इस मुलाकात में शांति भूषण को आमिर को समझने में मदद मिली।
15 महीनों तक रहे पीके के सेट पर
शांति भूषण फिल्म की शूटिंग के दौरान आमिर को भोजपुरी लहजा सिखाने लगे। उन्हें लगा कि कुछ दिनों में उनका काम पूरा हो जाएगा। लेकिन आमिर खान ने जोर दिया कि फिल्म की शूटिंग पूरी होने तक शांति भूषण फिल्म के सेट पर ही रहें। आखिरकार, शांति भूषण ने अपने बाकी के सारे प्रोजेक्ट कुछ देर के लिए टाल दिए और अगले 15 महीनों तक वह पीके के सेट पर बने रहे।
‘बॉलिवुड में होना ही सुख देता है’
आज जब शांति भूषण से पूछा जाता है कि उनके गांव, घर में लोग उन्हें इज्जत से देखते हैं या आज भी हिकारत की नजर से देखा जाता है तो वह कुछ तय जवाब नहीं दे पाते। वह कहते हैं कि अब मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता। मुझे इस बात की खुशी है कि जीवन में जो काम करना चाहता था मैं उसे कर रहा हूं। बॉलीवुड में काम करना उन्हें असीमित सुख देता है। शांति भूषण ने बताया कि वह आने वाले दिनों में कुछ और प्रोजेक्ट पर वह काम कर रहे हैं जो कि जल्द ही सिल्वर स्क्रीन पर देखने को मिलेगा। (रिपोर्ट: अमितेश कुमार सिंह)