पति को होमगार्ड की नौकरी के दौरान आया आईडिया, खेती छोड़ बागवानी कर 20-25 लाख कमा रहा सीकर का कपल

कहते हैं इरादे बुलंद हो तो मुश्किल से मुश्किल डगर आसान हो जाती है. इसे चरितार्थ कर दिखाया है राजस्थान के सीकर ज़िले की संतोष खेदड़ ने. 10वीं पास संतोष कुछ साल पहले महज़ एक गृहणी थीं. मगर, आज वह राजस्थान में जैविक खेती के लिए मशहूर हैं और ‘किसान वैज्ञानिक’ उपाधि से सम्मानित हो चुकी हैं. सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री वुसंधरा राजे से लेकर मौजूदा उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू तक उनकी पीठ थपथपा चुके हैं.

इंडिया टाइम्स हिन्दी से बातचीत में पुराने समय को याद करते हुए संतोष बताती हैं कि 2008 से पहले उनका परिवार परंपरागत खेती करता था, जिससे ज़्यादा कमाई नहीं होती थी. जैसे-तैसे गुज़ारा होता था. कई बार तो फ़सल ख़रीब होने के कारण अगली फ़सल के लिए क़र्ज़ भी लेना पड़ता था. एक वक्त ऐसा भी आया, जब उनका परिवार कर्ज़ तले दब गया. यह वह दौर था, जब संतोष के पति रामकरण खेदड़ होमगार्ड की नौकरी करते थे. 

होमगार्ड की नौकरी के दौरान पति को आया था आईडिया 

संतोष बताती हैं कि एक रोज़ उनके पति ड्यूटी पर थे. इसी दौरान उनकी नज़र एक अनार के पेड़ पर गई. उसको देखकर उनके दिमाग में अनार का बगीचा लगाने का आईडिया आया. घर लौटकर उन्होंने संतोष से अपने खेतों पर अनार का बगीचा लगाने की इच्छा जताई. संतोष ने हां कहते हुए तैयारी शुरू कर दी. 

संतोष बताती हैं कि अनार के बगीचे के लिए उन्होंने इधर-उधर से जुगाड़ करके पैसा एकत्र किया, तब जाकर उनके खेत में ट्यूबवेल लग पाया. तीन साल तक वो अपने बगीचे की सिंचाई करती रहीं. पहली फ़सल के बारे में बात करते हुए संतोष कहती हैं, ”तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद हम अपनी पहली फ़सल को बाज़ार तक पहुंचाने के लिए उत्साहित थे. हमें नहीं पता था कि इससे हमें कितने पैसे मिलने वाले हैं. मगर, हमें हमारी मेहनत का फल मिला.”

सालाना 25 से 30 लाख रुपए कमा लेती हैं संतोष खेदड़  

”हमें करीब तीन लाख रुपए का लाभ हुआ था. इस पैसे से हमने अपना कर्ज़ निपटाया और एक बार फिर से अपनी बागवानी में जुट गए. आगे हमने अनार के पेड़ों के बीच में मौजूद खाली जगह में नींबू अमरूद और सेब के पौधे लगाए. हमारा यह प्रयोग सफल रहा और मुनाफा सालाना 10 लाख से ऊपर चला गया.” आगे अधिक मुनाफे लिए संतोष ने अपने पौधों से एक नर्सरी की शुरुआत की, जिसके तहत वो अनार, नींबू, मौसमी, सेब, किन्नू, और आम जैसे पौधे किसानों को बेचने लगे. अब बागवानी की मदद से सालाना 25 से 30 लाख रुपए की कमाई हो जाती है.” 

खास बात यह कि संतोष खेदड़ और रामकरण खेदड़ की तरह उनका बेटा राहुल खेदड़ भी अपने माता-पिता की राह पर है. उसने अपनी ग्रेजुएशन एग्रीकल्चर से पूरी की, और परिवार की विरासत को आगे बढ़ा रहा है. राहुल अभी तक के अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि कई लोग कहते हैं कि सेब ठंडे इलाकों में होता है, गर्म इलाकों में इसकी खेती मुश्किल है. मगर, यह सही नहीं है. हम अपने एक एकड़ में बढ़िया बागवानी कर रहे हैं.”

‘किसान वैज्ञानिक’ उपाधि से सम्मानित हो चुके हैं पति-पत्नी  

”पेड़ों को सही देख-रेख चाहिए. अगर हम यह कर पाते हैं तो यह कहीं भी संभव है. राहुल कहते हैं, ”अमूमन राजस्थान का तापमान 50 डिग्री तक चला जाता है. बावजूद इसके हम 300 ग्राम तक का सेब उगाते हैं. खास बात यह कि हम सभी पौधों को जैविक विधि से ही तैयार कर रहे हैं. किसी भी तरह के रसायन का प्रयोग हम अपनी बागवानी में नहीं करते हैं. हमारे लिए गोबर की खाद ही प्रमुख हथियार है.”

बता दें, संतोष और उनके पति रामकरण कई “राज्य स्तरीय” पुरस्कारों से सम्मानित है. जहां राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री सतोष खेदड़ को उनकी बागवानी के लिए 1 लाख रुपए से पुरस्कृत कर चुकी हैं. वहीं कृषि मंत्री प्रभु लाल सैनी और मौजूदा उपराष्ट्रपति वेकैंडा नायडू इस जोड़े को ‘प्रगतिशील किसान’ के रुप में सम्मानित कर चुके हैं. खेदड़ परिवार उन लोगों के लिए एक बड़ा उदाहरण है, जो लोग कहते हैं कि खेती-किसानी से कुछ नहीं हो सकता.