मुंबई. देवेंद्र गंगाधरराव फडणवीस…ये वो नाम है जिसने उद्धव ठाकरे को उसकी ही सेना से मात दिलवा दी. और ये फडणवीस का ही दिमाग़ है कि उद्धव के लिए हालात ये हो गये हैं कि सरकार के साथ-साथ पार्टी भी हाथ से जाती हुई दिखाई दे रही है. सत्ता के इस खेल में उनका सुनाया हुआ एक शेर बहुत वायरल हो रहा है- ‘मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना…मैं समंदर हूं लौटकर वापस आऊंगा.’
1 जून 2022…मौक़ा था पुणे में पहले महाराष्ट्र अंतरराष्ट्रीय ओपन ग्रैंडमास्टर शतरंज टूर्नामेंट के उद्घाटन का. इसी दौरान फडणवीस ने शह और मात का संकेत देते हुए कहा था कि 2019 विधानसभा चुनाव में अपने विरोधियों को ग़लत तरीक़े से समझने के कारण एक ग़लत चाल से उन्होंने सत्ता का खेल खो दिया था… इसलिए खेल अच्छे से खेलें… और इस बार सत्ता की शतरंज में उन्होंने कोई चूक नहीं की. शिवसेना को शिवसेना से ही शह और मात दिलवा दी
पर्दे के पीछे मिशन को दिया अंजाम
महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी का खेल बिगाड़ने की पटकथा बहुत पहले ही देवेंद्र फडणवीस ने लिख दी थी. लेकिन कोई चूक पहले की तरह न हो इसके लिए वो सही समय का इंतज़ार करते रहे. इसलिए इस बार वो गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ मिलकर पर्दे के पीछे काम करते रहे. और योजना भी ऐसी बनाई कि जिसमें वो चाणक्य ज़रूर रहे लेकिन आखिर तक सामने नहीं आए. इस प्लानिंग के तहत हिंदुत्व की विचारधारा को ही सामने किया गया. कहा जा रहा है कि शिवसेना के वरिष्ठ और क़द्दावर नेता एकनाथ शिंदे से वो क़रीब एक साल से संपर्क में थे. लेकिन किसी को इसकी भनक तक ना लगने दी.
हनुमान चालीसा मुद्दे के बाद हो गया खेल!
एकनाथ शिंदे हिंदुत्व के बड़े पैरोकार माने जाते हैं. ठाणे और आसपास का क्षेत्र उनका गढ़ माना जाता है. महाविकास अघाड़ी सरकार में जिस तरह से उद्धव कांग्रेस और एनसीपी के दबाव में काम कर रहे थे उससे शिंदे और उनके साथी विधायक ख़ुश नहीं थे और इसमें आग में घी डालने का काम किया हनुमान चालीसा मुद्दे ने.
अपमान का बदला!
सूत्रों के मुताबिक़ कुछ समय पहले भी किसी मुद्दे पर आदित्य ठाकरे ने भी शिंदे को अपमानित किया था. जिसके बाद शिंदे ने शिवसेना के अंदर ही अंदर फडणवीस के इशारों पर खेल शुरू कर दिया. रातों रात शिंदे के नेतृत्व में विधायकों को बॉर्डर पार करवा कर सूरत पहुंचा दिया. 2 दिनों बाद सारे विधायक गुवाहाटी पहुंच गए. जहां धीरे-धीरे बाग़ी विधायकों की संख्या 39 तक पहुंच गई. इसके अलावा वहां निर्दलीय विधायक भी पहुंच गए.
डटे रहे विधायक
इस योजना की मज़बूती को इससे समझा जा सकता है कि बाग़ी विधायकों ने एक बार भी शिवसेना पार्टी को छोड़ने की बात नहीं की. एक बार भी बाला साहेब के सिद्धांतों से हटने की बात नहीं कही. एक बार भी अलग पार्टी बनाने के बात नहीं की. बल्कि संख्या के आधार पर खुद को ही शिवसेना होने का दावा करते रहे.
बीजेपी की चुप्पी
फडणवीस और बीजेपी के किसी भी नेता का बयान इस पूरे घमासान पर केवल इतना ही आया कि ये शिवसेना का अंदरूनी मामला है. हालांकि सूत्रों का दावा है कि अपनी सरकार बचाने के लिए उद्धव ठाकरे ने फडणवीस से फ़ोन पर बात भी की थी. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान फडणवीस केवल एक बार उज्जैन में महाकाल के दर्शन के लिए निकले. बाक़ी पूरे समय वो अपने मुंबई स्थित सागर बंगले से अपने कोर टीम के सदस्यों आशीष शेल्लार, प्रवीण दरेकर के साथ शतरंज की चालें चलते रहे.
…और खेल खत्म
जब सत्ता के खेल में शह दे दी गई तब 2 दिन पहले फडणवीस ने दिल्ली जाकर गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाक़ात की और इस खेल को उसके अंजाम तक पहुंचाया. ये फडणवीस ही थे जिन्होंने इस खेल में हिंदुत्व विचारधारा को सबसे बड़ा हथियार बनाया.