‘बहुत तेज़ बारिश हो रही थी उस दिन, आंगन में पानी भर गया था. मां सो रही थी और पापा ने मां को पीटना शुरू कर दिया, मैं 9वीं में थी और भैया कॉलेज में था. मां बेहोश थी उसके शरीर से निकाला खून पूरे फ़र्श पर था. मैंने मां को बचाने की कोशिश की लेकिन पापा ने मुझे भी मारा. मेरे कान के पर्दे फट गए. मुझे लगा कि मां नहीं बचेगी. मैं बाहर भागी और मैं शोर मचाने लगी कि मम्मी को बचा लो, बारिश की वजह से सब घर के अंदर थे, सामने रहने वाले अंकल आये और मदद की. वो वकील हैं, मां को उन्होंने ही बचाया. पापा ने मां को गाली दी, मेरे सामने. उस दिन मेरी नज़रों में पापा पूरी तरह गिर गए.’
‘नहीं नहीं मेरे पापा ऐसा कभी नहीं करेंगे.’ ‘ये पड़ोसियों के घर होता है.’ सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए भी ऐसी टिप्पणियां की जा सकती हैं. लेकिन सिर्फ़ एक बार ख़ुद को उस जगह पर रख कर देखिए, क्या ये संभव नहीं कि उस स्थान पर मैं आप या कोई और हो सकता है. दुख की बात है कि जिस घटना को हम अपने जीवन में सोचने भर की भी जगह नहीं देते, वो घटना असंख्य बच्चों की ज़िन्दगी की हक़ीक़त है. वो रोज़ उसे जीते हैं. ‘पास्ट को भूल जाओ ‘ वाला लॉजिक यहां कभी काम नहीं करता. और कुछ ऐसी ही कहानी थी गरिमा सिंह की.
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी को तो सभी जानते हैं लेकिन उसके पास बसे गोला को कम लोग ही जानते होंगे. गोला में पली-बढ़ी गरिमा ने वो सब देखा, झेला जो हमने सिर्फ़ न्यूज़, कन्फ़ेशन्स या फ़ेसबुक पेज के पोस्ट्स पर ही पढ़ा है.
अब्यूज़, प्रताड़ना, शोषण, देखते हुए झेलते हुए बड़े हुए एक बच्चे की मानसिक स्तिथि पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस पर हमारा समाज बातचीत करने से कतराता है. ऐसे बच्चे आजीवन अपने दिमाग़ या दिल के कोने में उन बुरी यादों को बंद करके रख लेते हैं. न जाने कितने बच्चे हैं जो ये कह नहीं पाते कि उन्हें वो याद अंदर से खाये जा रही है. वक्त से साथ सब ठीक नहीं होता.
गरिमा का जीवन भी आसान नहीं रहा. जैसे बाकी मां-बच्चों के रिश्ते होते हैं, गरिमा और उसकी मां का रिश्ता वैसा नहीं था. गरिमा ने बताया,
“बचपन से ही मेरा और मां का रिश्ता मुश्किल रहा है. घर पर काफ़ी समस्याएं थी. बचपन से ही मुझे ऐसा लगता था कि मेरे और मेरे भाई के बीच भेद-भाव किया जा रहा है. और ये शायद स्वभाविक है, हमारे माता-पिता को लगता है कि वो हमारे साथ एक जैसा व्यवहार कर रहे लेकिन ये सच नहीं था. इस वजह से बचपन में मां के साथ रिश्ता अच्छा नहीं था.”
16 साल की उम्र में जब गरिमा बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी पढ़ने गई, उसे मानो नए पंख मिल गए. उसका न सिर्फ़ दुनिया को देखने का चश्मा बदला बल्कि अपनी मां और घर को देखने का भी एक नया चश्मा उसे मिल गया. गरिमा ने कहा, “पिता जी घर पर बहुत अब्यूज़िव थे. मां मेरे भाई के प्रति बहुत प्यार-दुलार और दया दिखाती थी लेकिन मुझसे ढंग से बात तक नहीं करती थी. मुझे लगता है ये मेरी मां की झल्लाहट थी जो मुझ पर निकलती थी. वो डिप्रेशन में थीं लेकिन ये अब समझ आया है.'”
घर, घर जैसा नहीं था
गरिमा आज आर्कियोलॉजी से पीएचडी कर रही है लेकिन उसकी ज़िन्दगी का सफ़र आसान नहीं रहा. एक कमरे के घर में दुपट्टा बांधकर बचपन बिताने से लेकर एक नामचीन प्रोफ़ेसर के अंडर में शोध करने तक का उसके सफ़र में उसकी मां का सबसे बड़ा हाथ रहा है. पिता घर पर ध्यान नहीं देते थे और आर्थिक मदद भी नहीं करते थे. मां ने आंगनबाड़ी में काम करते हुए बच्चों को पाला-पोसा. गरिमा ने बीए करने की ज़िद्द की तब मां ने ही सभी की बात को अनसुना करते हुए उसे घर से बेहद दूर बनारस भेजा.
गरिमा ने बताया, “वो कुछ नहीं देते थे लेकिन उन्हें सिर्फ़ कंट्रोल करना था. मेरी मां एक स्कूल में 700 रुपये की नौकरी कर रही थी. उसी स्कूल में मैं पढ़ रही थी, मेरे स्कूल की फ़ीस 60 रुपये थे, मां वहां पढ़ा रही थी तो मेरी फ़ीस माफ़ थी, मेरे भाई की स्कूल फ़ीस 300 रुपये थी. 4 लोगों के घर में 400 रुपये में महीना चलता था. हम भाई-बहन को समझ नहीं आता था कि ऐसा क्यों हो रहा है. मेरी मम्मी को अच्छी गवर्मेंट जॉब मिल रही थी, मेरे पिता ने करने नहीं दिया. मां के पास मास्टर्स डिग्री थी लेकिन पापा ने नौकरी नहीं करनी दी.”
गरिमा ने आगे बताया कि उसकी मां के पास मास्टर्स डिग्री थी, उस ज़माने में लेकिन उन्हें कुछ करने नहीं दिया. पिता के बारे में बात करते हुए गरिमा ने बताया, ‘वो खुद डबल मास्टर्स हैं, वकील हैं लेकिन जब भी हम उनसे कुछ मांगते वो हमेशा ना ही कहते. मैं अपनी मासी की बेटी की पुरानी यूनिफ़ॉर्म पहनकर स्कूल जाती थी. जूते खरीदने के पैसे नहीं होते थे. गर्मियों में मां पुरानी कॉपीज़ के बचे पन्ने को बैठकर सिलती थी और नई कॉपी बनाती थी, हम उसमें नई क्लास में लिखते थे.’
मां का समर्थन मिला, बस दिखा नहीं
गरिमा ने मां के साथ अपने रिश्ते में कई उतार-चढ़ाव देखे. उसका कहना है कि उसकी मां ने उसका हमेशा साथ दिया लेकिन वो ये देख नहीं पाई, कभी समझ नहीं पाई. गरिमा ने कहा, ‘जब मैं कॉलेज गई, बाहर गई और जब घर आती थी तब मां के साथ बॉन्ड बहुत मज़बूत सा होता गया.’
भाई-बहन ने दिया मां का साथ, करवाया मां का तलाक
गरिमा के घर में बहुत सी समस्याएं रही हैं. एक अब्यूज़िव व्यक्ति अगर आपके घर का मुखिया हो, तो आपको हर दिन हर पल कुछ न कुछ झेलना पड़ता ही है. कई साल तक प्रताड़ित होते इस परिवार ने एक दिन इस क़ैदखाने से बाहर निकालने की ठान ली. गरिमा ने बताया, “समस्याएं इतनी थी कि हम तीनों का रिश्ता मज़बूत होता गया. मेरा भाई, मैं और मेरी मां एकसाथ खड़े हुए और अपने पापा के खिलाफ़ चले गए. हमने 2013 में डिवोर्स फ़ाइल किया, बहुत कठिनाइयां आई लेकिन 2018 में फ़ैसला हमारे हक़ में आया.”
मां और बच्चे एक साथ ‘बड़े’ हुए
बड़ा कोई तब होता है जब वो विकसित होता है, उसका आत्म विकास होता है. उम्र से बड़े तो सभी हो जाते हैं. इस छोटे से परिवार की भी ख़ासियत यही है कि न सिर्फ़ इसमें बच्चे ‘बड़े’ हुए बल्कि मां, कुसुम सिंह ने भी सेल्फ़ ग्रोथ का मौका नहीं गंवाया. गरिमा ने बताया कि उसका भाई, उसकी मां और तीनों का रिश्ता एकसाथ विकसित हुआ, पहले से बहेतर और मज़बूत बना.
“मैं अपनी नाकामयाबी, ब्रेकअप्स सब मां से कह सकती हूं. उसने कभी मुझे कोसा नहीं कि मां-बाप का कहना न मानने पर यही होता है. उसने मुझ से यही कहा कि तुम और अच्छा डिज़र्व करती हो, वो लड़का लायक नहीं था. और ये एक नई सदी की शुरुआत जैसा ही है.”
दुनिया प्री वेडिंग, प्रेगनेंसी फ़ोटो शूट्स करवाती है, गरिमा ने मां के साथ फ़ोटोशूट करवाया
मां के साथ अपने रिश्ते को सेलिब्रेट करने के लिए एक दिन है, मदर्स डे. गरिमा ने इससे अलग जाकर उस रिश्ता को सेलिब्रेट करने के बारे में सोचा जो आज केी तारीख में शायद उसके सबसे करीब है. कपड़े, ज़ेवर वगैरह पहनकर गरिमा और उसकी मां कुसुम तय लोकेशन पर पहुंचे. और तस्वीरें खिंचवाई. गरिमा ने जब ये तस्वीरें फ़ेसबुक पर डाली तब उसे लोग बधाई देने लगे, कब है शादी पूछने लगे. बस इसी से समझ जाइए कि समाज के दिमाग में बैठ चुका है कि बाग में बस मंगेतर ही फ़ोटोज़ खिंचवाते हैं.
पैरेंट्स के साथ तस्वीरें खिंचवाना नॉर्मलाइज़ करना चाहिए
गरिमा ने बताया, “मेरे घर में हम लोगों की सिर्फ़ 3-4 तस्वीरें ही होंगी. पापा बहुत ही कंट्रोलिंग थे तो कोई खुशी का मौका था ही नहीं इसलिए तस्वीरें भी नहीं हैं. मुझे हमेशा परिवार के अच्छी तस्वीरें चाहिए थीं. मां और भाई के साथ एक भी तस्वीर नहीं थी. भैया की शादी में जब हमने फ़ोटोग्राफ़र हायर किया तब मैंने सबसे पहले यही कहा था कि मां के साथ अच्छी तस्वीरें खिंचवाऊंगी. तस्वीरें इतनी अच्छी थी कि अपलोड किए बिना नहीं रह पाई, अकसर लड़कियां अपने पार्टनर के साथ ही तस्वीरें अपलोड करती हैं, मैंने मां के साथ की.”
गरिमा ने लोगों के लिए ये भी कहा कि हो सकता है आपका रिश्ता आपके माता-पिता के साथ मज़बूत न हो लेकिन ये रिश्ता सेलिब्रेट करना चाहिए.