संघ लोक सेवा आयोग या Union Public Service Commission (UPSC) की परीक्षा देश की सबसे प्रतिष्ठित और सबसे कठिन परिक्षाओं में से एक है. हर साल देशभर के लाखों एस्पिरेंट्स ये परीक्षा देते हैं लेकिन कुछ ही परिक्षार्थी अपनी क़िस्मत पलट पाते हैं. देश के हालात किसी से छिपे नहीं हैं, जहां कुछ छात्रों का बचपन आराम से बीतता है, उन्हें पढ़ाई से जुड़ी तमाम सुविधाएं मिलती हैं. वहीं कुछ छात्र बचपन से ही संघर्ष का मोल समझते हैं, अपने माता-पिता से कड़ी मेहनत क्या होती है, ये सीखते हैं.
IAS गोविंद जायसवाल की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. 2006 की UPSC परीक्षा में पहले ही प्रयास में गोविंद ने ऑल इंडिया 48वां रैकं हासिल किया. उनके संघर्ष की कहानी न सिर्फ़ UPSCएस्पिरेंट्स बल्कि हर किसी के लिए प्रेरणादायक है.
एक समय था घर पर पैसों की कमी नहीं थी
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IAS गोविंद जायसवाल आज जिस मकाम पर हैं उसके पीछे हैं उनके पिता. DNA के एक लेख के अनुसार, उनके पिता ने रिक्शा चलाकर अपने बेटे को पढ़ाया और काबिल बनाया. गोविंद का पूरा परिवार वाराणसी, उत्तर प्रदेश में रहता है. गोविंद के पिता, नारायण के पास 1995 से पहले तक 35 रिक्शा थे. पत्नी के बीमार पड़ने के बाद उन्हें 20 रिक्शे बेचने पड़े लेकिन पत्नी का 1995 में निधन हो गया.
बेटे का सपना पूरा करने के लिए रिक्शा चलाया
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गोविंद जायसवाल ने 2004-2005 में यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली जाने का निर्णय लिया. जब गोविंद को पैसों की ज़रूरत पड़ी तब उनके पिता ने बाकी 14 रिक्शा बेच दिए और ख़ुद एक रिक्शा चलाकर बेटे का सपना पूरा करने का निर्णय लिया.
कई रिक्शा के मालिक पिता ने रिक्शा चलाना शुरु किया लेकिन गोविंद की पढ़ाई रुकने नहीं दी.
दैनिक भास्कर के लेख के अनुसार, गोविंद ने 2012-13 में पिता के लिए एक मकान बनवाया. पहले ये परिवार जिस किराये के मकान में रहते थे गोविंद आज भी उस मकान का किराया भरते हैं.