ICICI बैंक लोन धोखाधड़ी मामला: कैसे शुरू हुई 3250 करोड़ की हेरा फेरी की कहानी

आईसीआईसीआई बैंक और वीडियोकॉन बैंक लोन मामले में आज फिर से बड़ी गिरफ्तारी हुई है। 3250 करोड़ रुपये के लोन धांधली मामले में चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर की गिरफ्तारी के बाद अब इस मामले में वेणुगोपाल धूत की गिरफ्तारी के बाद मामले में और तेजी आ गई है।

नई दिल्ली: आईसीआईसीआई-वीडियोकॉन बैंक लोन मामले ( ICICI Videocon Bank loan) में आज एक बार फिर से बड़ी गिरफ्तारी हुई है। सीबीआई ( CBI)ने इस मामले में पहले आईसीआईसीआई के पूर्व एमडी चंदा कोचर ( Chanda Kochhar) और उनकी पति दीपक कोचर (Deepak Kochhar) को गिरफ्तार किया तो वहीं अब इस केस में वीडियोकॉन (Videocon) के संस्थापक वेणुगोपाल धूत ( Venugopal Dhoot) की बड़ी गिरफ्तारी हुई है। इन गिफ्तारी के बीच आइए इस पूरे मामलों को समझते हैं, कि आखिर ये केस हैं क्या और इन गिरफ्तारियों का क्या मतलब है?

क्या है ICICI-वीडियोकॉन बैंक लोन मामला

आईसीआईसीआई बैंक और वीडियोकॉन का ये मामला 3250 करोड़ रुपये के लोन से जुड़ा है। नियमों की अनदेखी कर जिस तरह से आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकॉन समूह को ये लोन बांटे उसका खुलासा 2019 में हुआ, जब ईसी ने मामला दर्ज किया। जिस वक्त से लोन बांटा गया उस वक्त चंदा कोचर बैंक की सीईओ थीं। चंदा कोचर पर नियमों की अनदेखी के साथ भारी भरकम लोन बांटने और निजी फायदा पहुंचाने का आरोप लगा।

कहां से शुरू हुई 3250 करोड़ की हेरा फेरी

ICICI और वीडियोकॉन के बीच लोन की हेरा फेरी की कहानी साल 2012 में शुरू हुई। वीडियोकॉन समूह को आईसीआईसीआई बैंक की ओर से 3250 करोड़ रुपये का लोन मिला। कंपनी ने 20 अलग-अलग बैंकों से कुल 40 हजार करोड़ का लोन लिया था। इसी कड़ी में कंपनी ने आईसीआईसीआई से भी 3250 करोड़ रुपये का लोन लिया। इस लोन को लेने के 6 महीने बाद ही वीडियोकॉन मामले में चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की एंट्री हुई।

कैसे हुई दीपक कोचर की एंट्री

चंदा कोचर के पति दीपक कोचर ने साल 2008 में वीडियोकॉन के चैयरमैन वेणुगोपाल धूत के साथ मिलकर नूपावर रीन्यूएब्लस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की शुरूआत की। इस कंपनी में धूत की हिस्सेदारी 50 फीसदी की थी। बाकी की 50 फीसदी की हिस्सेदारी दीपक कोचर और उनके परिवार के सदस्यों के पास था। साल 2009 में वोणुगोपाल ने इस कंपनी के निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया और अपने 25 हजार शेयर दीपक कोचर को मात्र 2.5 लाख रुपये में बेच दिए। इतना तक की ठीक थी,. लेकिन इसके 6 महीने के बाद ही इस कंपनी को सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड की ओर से 64 करोड़ का लोन मिला। यहां ये जानना जरूरी है कि सुप्रीम एनर्जी वेणुगोपाल की ही कंपनी थी।

कंपनी के बीच चलता रहा हेरा-फेरी का खेल

वीडियोकोन के चैयरमैन वेणुगोपाल धूतावर अपनी कंपनियों के बीच पैसों का हेरफेर कर रहे थे। साल 2009 में नूपावर रीन्यूएब्लस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी (NRPL) को धूत की कंपनी सुप्रीम एनर्जी से 64 करोड़ का लोन मिला और मार्च 2010 में NRPLने अपने अधिकतम शेयर सुप्रीम एनर्जी को ट्रांसफर कर दिए। यानी एक बाद फिर से NRPL के अधिकांश शेयर और कंपनी का नियत्रंण दोनों वेणुगोपाल के पास पहुंच गया। सुप्रीम एनर्जी के पास NRPL के 95 फीसदी शेयर थे, जबकि दीपक कोचर के पास मात्र 5 फीसदी शेयर थे।

आखिरी स्टेप में ऐसे दिया अंजाम

ये पूरा खेल अपने अंतिम चरण में तब पहुंचा जब साल 2013 में आईसीआईसीआई बैंक का लोन उनतक पहुंचा। वेणुगोपाल ने 3250 करोड़ रुपये के लोन के बदले दीपक कोचर को फायदा पहुंचाया। कंपनी की 95 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली कंपनी सुप्रीम एनर्जी की पूरी होल्डिंग अपने करीबी महेश चंद्र पुंगलिया को सौंप दी। दो साल बाद यानी 2013 तक पुंगलिया ने सुप्रीम एनर्जी की पूरी होल्डिंग मात्र 9 लाख रुपये में दीपक कोचर की कंपनी पिनेकल एनर्जी को दे दी। यहां समझने वाली बात है कि साल 2012 में वीडियोकॉन को ICICI बैंक से 3250 करोड़ का बड़ा लोन मिला था।

चंदा कोचर पर आरोप

आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व एमडी चंदा कोचर पर आरोप लगा कि उन्होंने नियमों को ताख पर रखकर वीडियोकॉन को ये लोन दिया। इतना बड़ा लोन देते वक्त आईसीआईसीआई बैंक ने अपने नियमों, अपनी पॉलिसी से भी किनारा कर लिया। चंदा कोचर पर आरोप लगे कि उन्होंने इस लोन के जरिए अपने पति को लाभ पहुंचाया। वीडियोकॉन कंपनी को दिए गए इस लोन को साल 2017 के NPA में डाल दिया गया।