Idi Amin: युगांडा से भारतीयों को भगाने के हुए 50 साल, तानाशाह ईदी अमीन ने 80 हजार लोगों को निकलने के लिए दिया था 90 दिन का समय

Idi Amin: युगांडा से एशियाई लोगों के निष्कासन की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर एक बार फिर लोगों ने ईदी अमीन के क्रूर शासन को याद किया है। सुलह संबंधी मामलों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त विशेषज्ञ मोहम्मद केशवजी ने कहा कि जब लोकतांत्रिक व्यवस्था ढह जाती है तो कोई भी सुरक्षित नहीं रह जाता।

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ईदी अमीन।

जोहानिसबर्ग: सुलह संबंधी मामलों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त विशेषज्ञ मोहम्मद केशवजी ने कहा कि तानाशाह ईदी अमीन द्वारा युगांडा से 50 साल पहले हजारों एशियाई लोगों को निष्कासित किए जाने की घटना को देशवासियों द्वारा सीखे गए सबक के लिए याद किया जाना चाहिए। ब्रिटेन निवासी केशवजी ने कहा, ‘‘जब लोकतांत्रिक व्यवस्था ढह जाती है तो कोई भी सुरक्षित नहीं होता।’’ केशवजी खुद दो बार विस्थापन का दंश झेल चुके हैं। उनका परिवार दक्षिण अफ्रीका में दमनकारी शासन से बचने के लिए 1960 के दशक में प्रेटोरिया से केन्या चला गया था। पड़ोसी युगांडा में संकट सामने आने के बाद उनके परिवार को केन्या छोड़कर कनाडा जाना पड़ा था।

केशवजी युगांडा से एशियाई लोगों के निष्कासन की 50वीं वर्षगांठ को याद करने के लिए ब्रिटेन में गठित संचालन समिति के सदस्य हैं। अमीन ने अगस्त 1972 में देश के करीब 80,000 लोगों को युगांडा से जाने के लिए मात्र 90 दिन का समय दिया था। उन्होंने एशियाई लोगों पर देश के प्रति वफादार न होने, सामाजिक एकीकरण का विरोध करने और व्यापार संबंधी कदाचार में शामिल होने का आरोप लगाया था। इसके बाद कई एशियाई लोग ब्रिटेन, कनाडा, भारत, पाकिस्तान और केन्या जैसे देशों में चले गए थे।

भारतीय समुदाय के लोग रहे भाग्यशाली
केशवजी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘अत्याचार जाति, वर्ग, रंग या पंथ के बीच आमतौर पर कोई अंतर नहीं करता। मनुष्य पर संकट पैदा हो जाता है और उसे जहां जगह मिलती है, वह वहां शरण ढूंढता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय समुदाय के लोग कुल मिलाकर भाग्यशाली रहे, क्योंकि वे ऐसे देशों में पहुंचे, जहां उन्हें मर्जी या बगैर मर्जी के शरण दी गई।’’ केशवजी ने कहा, ‘‘अफसोस की बात है कि अमीन के आतंक के शासन की सबसे क्रूर परिस्थितियों में युगांडा में कई अफ्रीकियों ने भी अपनी जान गंवाई।’’

केशवजी ने बताया कि उनके परिवार ने ईदी अमीन के शासन में युगांडा के पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं पूर्व अटॉर्नी जनरल जो जेक की जान बचाई थी। उन्होंने कहा, ‘‘दक्षिण अफ्रीकी पासपोर्ट रखने वाले केन्या के एक भारतीय परिवार के लिए जेक को शरण देना जोखिम भरा काम था।’’ जेक और उनके परिवार के देश से जाने के लिए आवश्यक यात्रा दस्तावेज बड़ी कठिनाई से प्राप्त करने के बाद केशवजी का परिवार उन्हें और उनके परिवार को लंदन ले जाने में कामयाब रहा, जहां से वे अंततः अमेरिका में बस गए।

तंजानिया को कब्जाना चाहता था ईदी अमीन
केशवजी ने कहा, ‘‘जेक के अनुभव ने पूर्वी अफ्रीका के अन्य हिस्सों में रह रहे एशियाई लोगों के बीच भय को जन्म दिया और केशवजी परिवार समेत कई प्रवासी भारतीय केन्या से कनाडा चले गए, जहां आज वे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।’’ केशवजी को 2016 में जॉर्जिया के अटलांटा स्थित मोरेहाउस कॉलेज में मार्टिन लूथर किंग जूनियर इंटरनेशनल चैपल ने इकेदा शांति पुरस्कार से नवाजा था। उन्हें मध्यस्थता, शांति और मानवाधिकार शिक्षा में उनके योगदान के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया किया था। अमीन ने तंजानिया पर कब्जा करने की कोशिश की थी, जिसके चलते उन्होंने युगांडा के भीतर विद्रोही बलों को सहयोग दिया। इसके परिणामस्वरूप अमीन को 1979 से अपदस्थ कर दिया गया। वह अपने परिवार के साथ लीबिया चले गए और अंतत: सऊदी अरब में बस गए, जहां 2003 में उनका निधन हो गया।